कैसे हों कोरोना काल में पर्व और त्यौहार

भारत को उत्सवों एवं पर्वों का देश माना जाता है, यहाँ वर्ष के प्रतिदिन कोई न कोई त्यौहार या पर्व होता है। सप्ताह के प्रत्येक दिन किसी न किसी देवता को अर्पित होते हैं। उसी तरह प्रत्येक पक्ष में एकम से लेकर पूर्णिमा या अमावश्या तक कोई न कोई पर्व होता है। भारत अनेकता में एकता का देश है। इसकी झलक त्यौहारों के मौकों पर भी देखने को मिलती है। हमारे देश में ऐसे कई पर्व और त्योहार हैं, जिन्हें लोग सामुहिकतापूर्वक बड़े ही उत्साहपूर्वक मनाते हैं।

त्यौहार का हमारे जीवन में विशेष महत्व है। ये हमारे जीवन में उमंग और उत्साह का संचार करते हैं। साथ ही ये हमारे जीवन में प्रसन्नता और परिवर्तन का अवसर लाते हैं। ये त्यौहार सम्पूर्ण भारत के हिन्दू मनाते हैं। परन्तु यहाँ यह भी है कि त्यौहार देश, काल एवं परिस्थिति को देखकर स्थगति भी कर दिए जाते हैं और स्थिति सुधरने पर आगामी वर्ष में पुन: मना लिये जाते हैं।

वर्तमान में भी देश में कुछ ऐसी ही परिस्थिति बनी हुई है, देश में कोरोना वायरस के कारण हाहाकार मचा हुआ है। लोगों के संक्रमित होने का खतरा बढ़ता चला जा रहा है और प्राणों पर संकट आन पड़ा है। लगातार संक्रमित लोगों की संख्या बढ़ती जा रही है !

कोरोना वायरस ने पूरे विश्व को अपने लपेटे में ले रखा है, जिसके चलते दुनिया भर में करीब 20 लाख से अधिक लोग वायरस की चपेट में आ गए हैं एवं डेढ लाख अधिक लोग यमालय को जा चुके हैं।

संसार की गति एकदम थम गई है। पूरा विश्व घरों में कैद है। सारे भोग विलास के साधन जस के तस धरे रह गए हैं, साथ है तो अपना परिवार और अपने। दो वक़्त का भोजन अपनों का साथ और मन में है ईश्वर से अपने परिवार और विश्व की कुशलता के लिए सर्वे भवन्तु सुखिन: प्रार्थना का भाव।

कोरोना वायरस के लेकर सभी लोग सहमे हुए हैं। हर कोई अपने स्तर पर प्रयत्नशील है। लोग तरह-तरह की सतर्कता बरत रहे हैं। इस महामारी से बचाव के लिए सामाजिक दूरी के नियम को बनाये रखना और उसका पालन करना सबसे अधिक महत्वपूर्ण है, जिसका हमें लम्बे समय तक पालन करना होगा।

इस महामारी के समय में हमारे देश के हर धर्म विशेष के पर्व और त्यौहार का आना भी निश्चित है, इस संकट काल में हम सभी को अत्यंत सावधानी व धैर्य की आवश्यकता होगी, जिसे अपनाकर हम अपना, अपने परिवार, समाज और देश का हित कर सकते हैं। पर्व त्यौहार तो आगे भी आएंगे, जिन्हे हम और अधिक हर्ष और उल्लास से मिल-जुलकर मना सकते हैं। लेकिन उसके लिए हमारा सुरक्षित व जीवित रहना आवश्यक है।

आज आपके साथ अपना संस्मरण साझा करना चाहूंगी इन्ही त्यौहारों की श्रृंखला में कुछ दिन पूर्व ही हनुमान जयंती मनाई गई, जिसे हम सब सामुहिक रुप से मनाते हैं और उत्सव का वातावरण रहता है।

हमारी कॉलोनी में विगत लगभग तीस वर्षों से सार्वजानिक रूप से हनुमान जयंती मनाई जा रही है। जिसके तहत हनुमान जन्म के एक सप्ताह पूर्व से अखंड रामनाम जाप किया जाता है। फिर हर्षोल्लास से उनका जन्मोत्सव होता है, जन्मदिन के दिन शाम को लगभग सात से आठ बजे के आसपास हनुमान जी को पूरी कॉलोनी में सुसज्जित पालकी में बिठाकर शोभायात्रा निकाली जाती है। पालकी के स्वागत में पूरी कॉलोनी की गलियां और सड़कें सुंदर – सुंदर रंगोली से सजाई जाती हैं। हर घर के द्वार पर महिलाएं – पुरुष और बच्चे अक्षत – रोली, दीपक और फूल की थाली लेकर स्वागत में खड़े रहते हैं।

जब ढोलक, इकतारे, मंजीरे और करताल की ध्वनि के साथ गाते – बजाते भक्तों के साथ श्री हनुमान जी की पालकी आती है तो अद्भुत पावन दिव्य वातावरण निर्मित हो जाता है। सबसे पहले पालकी के कहारों के चरण पखारे जाते हैं उसके बाद पूजा आरती और प्रसाद वितरण के बाद पालकी पुनः मंदिर में वापस जाती है।

इसके पश्चात् अगले दिन विशाल महाप्रसाद का आयोजन किया जाता है, जिसमें कॉलोनी सहित आसपास के लोग भी सम्मिलित होते हैं। इन दिनों में एक अलग सी ऊर्जा और आपसी मेलजोल दिखाई देता है, हम कॉलोनीवासी बड़ी ही उत्सुकता से हनुमान जयंती का इंतज़ार करते हैं। आपको बता दूँ कि यह नियम विगत तीस वर्षों से जारी है।

इस वर्ष भी हनुमान जयंती आ रही थी लेकिन महामारी आशंकाओं और डर के कारण इस उत्सव को हर वर्ष की भांति मनाना असंभव था। इस बात का उपाय कुछ इस तरह खोजा गया। कि रामनाम जाप से लेकर जन्मोत्सव तो सभी ने अपने – अपने घरों में रहकर मनाया।

पालकी के नियत समय से पहले हर घर के सामने रंगोली सजाई गई और रंगोली के आसपास दीप मालायें भी सजाई गई। सभी ने उसी नियत समय पर बजरंगबली को आरती और मंत्रपुष्पांजलि अर्पित की। घंटी – शंखों और मन्त्रों की आवाज़ से पूरा वातावरण गुंजायमान हो उठा, किसी के मन में उत्सव न मनाने का दुःख नहीं रहा।

इसके बाद अगले दिन हर घर में महाप्रसाद में बनने वाले व्यंजन बनाये गए और भगवान को भोग लगाने के बाद सभी ने प्रसाद ग्रहण किया। “मन में उत्सव न मना पाने का दुःख, ख़ुशी में बदल गया। न ही वर्षों का नियम टूटा। ”

उपनिषद कहता है – “शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम्।” शरीर ही सभी धर्मों (कर्तव्यों) को पूरा करने का साधन है। अर्थात शरीर को सेहतमंद बनाए रखना जरूरी है। इसी के होने से सभी का होना है अत: शरीर की रक्षा और उसे निरोगी रखना मनुष्य का सर्वप्रथम कर्तव्य है।

मेरे कहने का उद्देश्य यही है कि हमारे देश में आगे भी हर समुदाय, धर्मो और वर्गों के ऐसे त्यौहार-पर्व आएंगे जिन्हे हम इसी तरह मनाकर अपने परिजनों, समाज को सुरक्षित रख सकते हैं। उपनिषद का संदेश समझें और अपने पर्व तथा त्यौहार इस तरह मनाएं जिससे भविष्य में भी मनाने के अवसर रहें। ऐसा करने से हम और हमारा देश स्वतः सुरक्षित हो जायेगा।

आलेख

श्रीमती संध्या शर्मा
नागपुर, महाराष्ट्र