गांधी जी की स्वदेशी नीति वर्तमान में और भी प्रासंगिक : मनकही

वैश्विक महामारी कोरोना से देश में त्राहि-त्राहि मची हुई है, इस वायरस के संक्रमण से देश की जनता को बचाने के लिए शासन ने युद्धस्तर पर प्रबंध किए हैं परंतू लॉक डाउन तीन चरण बीतते तक देश पर आर्थिक संकट आ गया। कारण देश की सारी फैक्ट्रियां, कारखाने, उत्पादन की सारी इकाईयां, बन्द पड़ी हैं। देश के व्यवसाय जगत को अत्यधिक नुकसान का सामना तो करना ही पड़ रहा वहीं लाखों लोग बेरोजगार हो गये है। इनमे मुख्य रूप से प्रवासी मजदूरों की दशा अत्यंत दयनीय हो गई। उनके सामने परिवार के भरण-पोषण की समस्या आ गई।

मजदूरों को श्रमबद्ध जीवन की इकाई माना जाता है। यदि मजदूर कन्धा डाल दे तो सारे संसार का विकास रुक जायेगा। मशीनी युग में भी मशीनों को चलाने वाले कुशल व प्रशिक्षित श्रमिक वर्ग ही होते है। आज कोरोना वायरस के कारण इन श्रमिकों का जीवन पर संकट आ गया है। ये लाखों प्रवासी मजदूर जो कभी महानगरों और शहरों के आकर्षण में अपने गृह ग्राम और वहां की जमीन को छोड़कर चले गए थे वही अपनी जान की परवाह किये बिना अपने गाँव में वापस जा रहे हैं, क्योंकि वे सच्चाई से भली-भांति अवगत हैं कि जैसे माँ अपनी संतान को भूखा नही रहने देती, वैसे उनका गांव उनकी जन्मभूमि उन्हें भूखा नही रहने देगी।

महात्मा गांधी जी ने कहा था “भारत का हृदय गांवों में बसता है। गांवों में ही सेवा और परिश्रम के अवतार किसान बसते हैं। ये किसान ही नगर वासियों के अन्नदाता और सृष्टि पालक हैं।”

भारत कृषि प्रधान देश है। भले ही गांव के युवा अपनी अमूल्य धरोहर खेती-किसानी को घर के बुजुर्गों के भरोसे छोड़ कर, शहरों में मजदूरी कर जीवनव्यापन के लिए चले गए थे, परंतु आज वे यथार्थ के धरातल पर पुनः आ गए हैं। गांधी जी ने स्वदेशी अपनाने के लिए आंदोलन चलाया था, जब अंग्रेजों ने हमारे देश में कब्जा कर रखा था।

आज हमें अपने ही देश में पुनः एक बार फिर स्वदेशी अर्थात अपने ही गांव -क्षेत्र के महत्व को स्वीकारना होगा, क्योंकि
देश और जनता जिस त्रासदी को झेल रही उससे निपटने का एक मात्र उपाय यही है।

महात्मा गांधी जी ने स्वदेशी को व्रत के रूप में अपनाया था। व्रत का अर्थ ही होता है अटल निश्चय या दृढ संकल्प। गांधी जी देश की अर्थ व्यवस्था में हो रहे बदलाव को अच्छी तरह जानते थे। इसलिए राष्ट्र और गांव को उन्नत बनाने के लिए इस बात पर जोर दिया की जो जहां निवास करता है,वहीं उपलब्ध वस्तुओं, खाद्यान और वहीं निर्मित वस्तुओं का उपयोग करे।

उन्होंने अपने देश के पारंपरिक शिल्प व उद्योग को बढ़ावा देने पर बल दिया। देशी-विदेशी कंपनी और फैक्ट्रियों के वर्चस्व से गांव के बुनकर, लोहार, बढ़ई, चर्मकार, ठठेरा, कुंभार सभी के उद्योग नष्ट होते चले गए, लोग शहरों की ओर पलायन करने लगे।

वर्तमान में जब देश के अर्थ व्यवस्था डगमगा गई है तो पुनः गांवों के पारंपरिक लघु व कुटीर उद्योगों को बढ़ावा देना होगा। गांव के युवा जो शहरों से उच्च शिक्षा प्राप्त कर आये हैं, वे रोजगार की तलाश में शहर में भटक रहे हैं। ये युवा नई तकनीक का उपयोग करने में पूर्ण सक्षम हैं, आवश्यकता है, सरकार द्वारा सहयोग और प्रोत्साहन की। गांव को उनके मूल रूप में ही संवारा जाये, सारी सुविधाएं प्रदान की जाएँ।

इसलिए सरकार को गांव केंद्रित नीतियां बनाकर उन पर कड़ाई से पालन करना होगा। संकट की घड़ी में बहुत सी
कंपनी “वर्क फ्रॉम होम” कर रही हैं। कोरोना से निपटने के बाद देश की कार्यशैली में बहुत बड़ा परिवर्तन आना तय है
तो गांव एवं क्षेत्र विशेष में उपलब्ध वस्तुओं पर आधारित उद्योगों को स्थापित किया जाना चाहिए।

देश की उन्नति खेती से जुडी है इसलिए कृषि के विकास के लिए नई तकनीकी, नए उपकरणों से किसानों को अवगत कराया जाये। उन्नत कृषि के लिए युवाओं में जागरूकता के साथ गाँव में ही नवीन टेक्नालॉजी द्वारा उत्पादन बढ़ाने पर जोर दिया जाना आवश्यक है। पुरानी परंपरा को नए रूप में विकसित कर आस-पास उपलब्ध वस्तुओं को क्रय विक्रय करते हुए देश के हर क्षेत्र में ट्रांसपोर्ट द्वारा आयत, निर्यात आसानी से किया जा सकता है। घर से ही मोबाइल, इंटरनेट, कंप्यूटर से सभी कार्य किया जा सकता है।

देश आर्थिक मन्दी के दौर से गुजर रहा है और कोरोना वायरस से लड़ाई भी लड़ रहा है। किसी प्रकार की लड़ाई में धन का होना अति आवश्यक है और किसी भी संकट का। सामना करने के लिए दृढ निश्चय का। अब तक हमने घरों में बन्द होकर इस वायरस से जंग लड़ी। इतने दिनों शासन ने, देश की जनता ने इस वास्तविकता को स्वीकार कर लिया कि अब खुले रहकर आत्मनियंत्रण, आत्म सुरक्षित रहते हुए जिम्मेदारी के साथ लड़ते हुए पुनः देश को आर्थिक संकट से बचाना होगा।

प्रायः देखा गया है कि किसी शहर में स्थापित कारखानों में वहां के लोग काम न करके दूसरे जगह काम की तलाश में चले जाते हैं बेहतर होगा क्षेत्र विशेष के युवाओं को ही प्रशिक्षित कर उन्हें रोजगार प्रदान किया जाये। आने वाले समय में वही व्यक्ति भूखा नहीं रहेगा जिसके पास एकाध एकड़ खेत होगा।

तो क्यों ना हम इस कोरोना वायरस से एक सीख लें और गांधी जी के स्वदेशी अपनाने की नीति का पालन करते हुए अपने गांवों को ही सर्व सुविधा युक्त करते हुए रोजगारोन्मुख बनाएं। हमारे पास युवा शक्ति है जिसे बस अवसर मिलना चाहिए।

“प्रभु के दिए सुख इतने हैं विकीर्ण धरती पर।
भोग सकें जो इन्हें, जगत में कहाँ अभी इतने नर।।
और मनुज की नयी-नयी प्रेरक ये जिज्ञासाएं।
उसकी वे सुबलिष्ठ सिंधु-मंथन में दक्ष भुजाएं।।
रामधारी सिंह ‘दिनकर’

आलेख

श्रीमती रेखा पाण्डेय
व्याख्याता हिन्दी
अम्बिकापुर, छत्तीसगढ़

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