पंचमहाल के पथ पर पथिक : तरुण शुक्ला

आपको गुजरात के पंचमहल की यात्रा पर ले चलता हूँ, यह पंचमहाल जिला भारत के पश्चिम छोर पर स्थित गुजरात राज्य का पूर्वी क्षेत्र में स्थित है। पांच महालों से बना जिला प्राकृतिक संपत्ति से सराबोर है। यह पांच महाल ग्वालियर के महाराजा ने ब्रिटिश सत्ताधीशों को उन्नीसवीं सदी के शुरुआत में सौंपे थे।


पंचमहाल का इत्तिहास यहां के सब से पुराने चाम्पानेर शहर की इर्द-गिर्द घूमता है। चाम्पानेर शहर की स्थापना अनहिल वाड पाटण के चावड़ा राजवी वनराज ने अपने मंत्री चाम्पा के नाम से ईसा की आठवी शताब्दी में की थी।
चावड़ा सोलंकी वंश के बाद कुछ समय यहा खिलजी शासन भी रहा। खिलजी से चौहान वंश ने इसे जीत कर अपनी राजधानी बनाया। पावागढ़ पर्वत पर अपना महल और किल्ला बनाकर चौहान वंश मजबूती से शासन कर रहा था। दुर्भाग्यवश महाकाली माता के श्राप से या फिर आपसी फूट से गुजरात के सुल्तान महम्मद बेगड़ा ने उन्हें हराकर अहमदाबाद और जूनागढ़ के बाद चाम्पानेर को भी अपनी राजधानी बनाया।


काफी मस्जिद, महल और अन्य संरचनाएं बनवाई, लेकिन भौगोलिक वजह से औऱ पानी की कमी से उसे अपनी राजधानी वापस अहमदाबाद ले जानी पड़ी। तब से चाम्पानेर का पतन प्रारंभ हुआ। सुल्तानों से यह विस्तार मुगलो के कब्जे में चला गया और गोधरा इसका मुख्य मथक बना।
ईंस्वी सन 1575 से 1727 तक यह मुगलो के पास रहा। उस जमाने मे पावागढ़ के जंगल मे हाथी, शेर जैसे जानवर थे और मुगल शहंशाह यहाँ जंगली जानवर के शिकार के लिये यहां आते थे। अट्ठारहवीं सदी की शुरुआत में मुगलो से इसे मराठा जनरल सिंधिया ने हथियाया और जब सिंधिया ग्वालियर के स्वतंत्र राजा बने तब भी यह इलाका इनके पास ही रहा था।

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ईस्वीं सन 1818 में जब ब्रिटिशर्स की सत्ता सिंधिया राजाओ ने मानी तब इसे पांच महाल के रूप में अंग्रेजो को हस्तांतरित किया, तब से इस विस्तार का नाम पंचमहाल के नाम से जाना जाने लगा। यह विस्तार मुम्बई राज्य के अंतर्गत आता था।
हिन्दू राजाओं की और सुल्तानों की राजधानी चाम्पानेर, जो कि अब अपने सुवर्ण काल से आगे बढ़कर गुमनाम हालात में थी, वह भी इसी जिले का एक भाग थी। जिले का पश्चिम भाग खेती बहुल था। जब कि पूर्व भाग पहाड़ी था, वहाँ खेती कम थी, वन्य संपदा ज्यादा थी।


आदिम जाति के लोग बहुतायत में थे। जनजीवन वन्य संपदा पर निर्भर था। अंग्रेजो ने यहाँ 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के बाद B B&ICR (Bombay Baroda & Central India railway ) रेल्वे यहां बिछाई थी, जो कि जिले के बीचों बीच से गुजरती है। आज़ादी के बाद जब 1960 में मुम्बई राज्य का विभाजन हुआ और गुजरात राज्य बना तो यह भी राज्य का एक जिला बना।
ईस्वीं सन 1997 में इसमें से दाहोद जिला अलग किया गया। कुछ साल पहले इसमें से महिसागर नदिकांठा के कुछ तालुका को नया महिसागर जिला बनाकर उसमें सम्मिलित किया गया ।
अखंड पंचमहाल जिला कुदरती संपदा से सराबोर है। नदी, नाला, झरना, प्रपात, पर्वत, गुफाए, दुर्लभ वन्य प्राणी यहां पाए जाते है । यहाँ की प्रमुख नदी महिसागर, पानम, भादर , माछन , सुखी , गोमा, मेशरी, अनास वगैरह है ।
यहाँ चाम्पानेर पावागढ़ वर्ल्ड हेरिटेज साइट हैं, पावागढ़ पर्वत पर महाकाली माता का मंदिर है, जोकि शक्ति पीठ है। जहां पूरा साल लाखों भक्त दर्शन हेतु आते रहते है। पर्वत पर जाने के लिए उड़ान खटोला उपलब्ध है। यहाँ जगह जगह लोक मेले साल भर लगते है।
जिले में कई जगह शिवरात्रि और जन्माष्टमी का लोकमेला होता है। दाहोद में आदिवासी समाज के दो मेले “गाय गोहरी और गोळ गधेड़ा” होते है। जिसे आदिवासी समाज इक्कट्ठा होकर अपनी परंपरा अनुसार मनाते है। यह जिला कश्यप मुनि, शरभंग मुनि, कपिल मुनि, सुव्रत मुनि की तपोभूमि है। पांडव अपने वनवास के दौरान यहाँ आकर रुके थे।
किंवदंति के अनुसार हिडम्बा वन कहलाने वाला यह जिला भीम हिडम्बा की शादी का साक्षी है। सीधे सादे वनवासी लोगों के साथ यहाँ काफी सारे ऐतिहासिक और पुरातत्व के महत्व वाले स्थल है। पुराने रजवाड़े जैसे कि लुणावाड़ा, बारिया, संतरामपुर है।

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जबकि रतन महल, जाम्बू घोड़ा और कलेशरी वन्य क्षेत्र पूरे गुजरात को अपनी ओर खींचते है। पुराने समय मे मालवा से गुजरात का रास्ता यही से गुजरता था और दाहोद में पाटण के सोलंकी राजाओ का प्रतिनिधि अपनी सीमा पर ससैन्य हरदम तैनात रहता था ।
महिसागर जिले के बालासीनोर के पास रैयोली गांव में विश्व का दूसरा सबसे बड़ा डाइनोसॉर फॉसिल पार्क है। यहाँ पर करीब तेरह प्रकार के डाइनोसॉर रहते थे।
जिसमे सिर्फ यहाँ पर पायी गई ” Rajasauras Narmadensis ” नामक डाइनोसॉर प्रजाति भी शामिल है। यह इलाका डाइनोसॉर प्रजाति का बहोत बड़ा अड्डा था। यहाँ पर डाइनोसॉर 66 मिलियन वर्ष पहले तक थे, फिर उनका उल्कापात से या कोई और कारण से विनाश हो गया ।यहाँ पर डाइनोसॉर के अंडे पाए जाते थे।
बाद में उत्खनन और संशोधन से डाइनोसॉर के काफी अवशेष, फॉसिल्स वगैरह पाए गए। लोग अज्ञान वश डाइनोसॉर के अंडों को अपने घर ले जाकर पूजा करते थे। 1981 के बाद यहां से डाइनोसॉर के काफी सारे फॉसिल्स ढूंढ निकाले गए, जोकि कलकत्ता के म्यूजियम में रखे गए है।


कुछ फॉसिल्स गाँधीनगर गुजरात के इंद्रोडा नेचर पार्क के डाइनोसॉर पार्क में रखे है। डाइनोसॉर के जमीन में दबे हुए फोसिल्स यहाँ के पार्क के खड़को में दिखने मिलते है। 72 हेक्टर जमीन में फैला पार्क देखना और डाइनोसॉर के फॉसिल्स को महसूस करना, एक सुखद और रोमांचक अनुभव है।
काफी विद्यार्थी, वैज्ञानिक और प्रवासी इसे देखने आते है। बालासीनोर से लुणावाड़ा जाने वाले रास्ते पर कुछ दूरी पर 10-12 फिट के विशाल काय पत्थर कुछ किलोमीटर विस्तार में पड़े हुए है। जो कि विचित्र आकार के है और इसी लिए दर्शनीय है। उस पत्थरो को भीम भमेडा कहते है । क्रमश:…

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लेखक

तरुण शुक्ला

गांधीनगर (गुजरात)

6 thoughts on “पंचमहाल के पथ पर पथिक : तरुण शुक्ला

  • May 12, 2018 at 08:39
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    Nice information sir

  • May 12, 2018 at 08:40
    Permalink

    Supperb sir

  • May 12, 2018 at 09:11
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    बहुत सुंदर आलेख तरुण भाई ज्ञानवर्धक जानकारियों से भरपूर.

  • May 12, 2018 at 10:49
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    Wonderful. Tarunbhai, carry on.

  • May 12, 2018 at 15:09
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    बढिया..

  • May 12, 2018 at 20:33
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    Khubsunder lekhan tarun bhai carry on . your passion

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