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अब त्योहारों में वो बात नहीं

होली मिलन दिवाली पूजा, होता है सब कुछ अब भी, पर पहले वाली मुलाकात नहीं रहती, होली और दीवाली हमको याद नहीं रहती।

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मेहनत के हक़दार

मेहनत वालों की दुनिया है, मेहनत से सब मिलता है। सूरज उगता है हम से तो, सूरज हम से ढलता है। जहाँ बहेगा खून पसीना, उसी जगह फल मिलता है। इसी बाहुबल से उगता है, उन्नत के हक़दार हैं हम।।

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डॉ. निरुपमा सरमा अउ उंकर बाल कविता

छत्तीसगढ़िया सब ले बढ़िया। एमन सरल सुभाव के होथे उन मिलनसार होथे, बासी खाके खेत म अन्न उगाथे,अपन घर पहुना ल बासी खवाके प्रेम से बिदा करथे, खुदे उघरा रइथे , आने ल तन ढंके बर ओन्हा देथें। छलकपट कभू नइ जानै फेर सच कहे बर फुर बोलिक होथे , देस भक्ति के रूप म उन तिरंगा झंडा के गुणगान करथें

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संकेत साहित्य समिति की वासंती काव्य गोष्ठी संपन्न

संकेत साहित्य समिति द्वारा वृंदावन हॉल रायपुर में कल शनिवार को भाषाविद् ,संगीतज्ञ एवं वरिष्ठ साहित्यकार डॉ.चित्तरंजन कर के मुख्य आतिथ्य, वरिष्ठ व्यंग्यकार गिरीश पंकज की अध्यक्षता और रामेश्वर शर्मा ,सुरेंद्र रावल ,लतिका भावे तथा संजीव ठाकुर के विशिष्ट आतिथ्य में वासंती काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया।

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