डॉ. निरुपमा सरमा अउ उंकर बाल कविता

लइकन मन ल सुन्दर संस्कार देहे अउ सिक्छीत करे बर सिसुगीत अउ बालगीत सबले सरल अउ आसान साधन आय। सिसुगीत तो महतारी के कोरा ले ही लोरी के रूप म सुरु हो जाथे, एकर ले सिसु मन गोठिआय बतराय सीख जाथें, फेर बालगीत के रचना हर न तो सिसुगीत जइसे परम्परागत आय अउ न सबेच साहित्यकार मन के बस के बात आय। जे मन म वात्सल्य भावना अउ जेतके मनोवैज्ञानिक समझ होथे,ओही मन ल बाल रचना करे म सफलता मिलथें। बाल रचना सरल अउ सरस रचना आय ओमा किलस्ट (कठिन) सब्द अउ सामासिक शब्दावली के कमी होथे।

छत्तीसगढ़ राज बने के बाद इहाँ छत्तीसगढ़ी साहित्य लेखन के बाढ़ आ गय हे, महिला लेखक भी बढ़त जात हें फेर बाल रचना के बहुतेच कमी हे। खासकर महिला बाल -लेखिका मन के तो निहायतेच कमी हबय। डाँ. निरुपमा सरमा , डाँ. सत्यभामा आडिल, डाँ. उर्मिला सुक्ला, सरला सरमा, संतोष झांझी, सकुन्तला तरार, डाँ. अर्चना पाठक, सुनीता साहू, सुमन आसा सरमा, गीता विस्वकर्मा, डाँ. शैल चन्द्रा जइसे चर्चित लेखिका मन के बीच बालगीत लिखवइय्या डाँ. निरुपमा सरमा के अलगेच पहिचान हवय। उन 30-35 साल पीछू ले हिंदी अउ छत्तीसगढ़ी म सरलग लिखत आत हें। बूंदो का सागर, महाभारत के मूल्य जनक आख्यन (पद्य) चिनान के बिन्दु(गद्य) के परकासन 1997 सन के पहिलीच हो गय हे, वोइसने एहीच साल उंकर छत्तीसगढ़ी काव्य संकलन पतरेंगी के घलोक परकासन होइस त उंकर कलम के सोर हो गइस। डाँ. विनय कुमार पाठक कहिन “डाँ. निरुपमा छत्तीसगढ़ लोक जीवन को व्यापक फलक में निरखते हैं, परखते हैं,×× उनकी छत्तीसगढ़ी कविता को विवेचित विश्लेषित किया जा सकता है।

डाँ. नारायण लाल परमार के अनुसार “आप एक अच्छी गायिका है आपका चरित्र चित्रण मन को मुग्ध करता है वहीं दूसरी ओर व्यक्ति मन की प्रेमाभिव्यक्ति मन में लालित्य पैदा करती है। अइसने विचार हरि ठाकुर घलोक के हे” इस काव्य संकलन में प्रायः सभी प्रकार की रचनाएं संकलित है×× रीति कालीन काव्य में नारी सौंदर्य का नखशिख प्रचुर मात्रा में किया गया, किन्तु पुरुष सौंदर्य की ओर कवियों का ध्यान नहीं गया। डाँ. निरुपमा शर्मा ने इस कविताओं में पुरुष सौंदर्य का नखशिख वर्णन किया है, इस दृष्टि से यह महत्वपूर्ण है, कवि स्यामलाल चतुर्वेदी तो उंकर बहुतेच बड़ाई करथें, कथें डाँ. शर्मा के बहुरंगी आंचलिक भाव प्रशंसनीय है। उनकी कविताओं को पढ़कर भविष्य के प्रति आशा बंधती है। सचमुच निरुपमा जी के काव्य संकलन पतरेंगी म छत्तीसगढ़ी के उच्च कोटि के गीत मन संकलित हबय। छत्तीसगढ़ी म बहुत कवियित्री होत हुए भी बार लेखिका मन के बहुतेच कमी हे, ये बात ल अस्वीकार नइ किए जा सकत हें। फेर डाँ. निरुपमा सरमा अपन ए नवा काव्य संकलन दाई खेलन दे, ले ए अभाव के पूर्ति करे के प्रयत्न करीन हें।

दाई खेलन दे म एकतीस रचना सकलाय हें जेमा मातृभाषा ,देसभक्ति, प्रकृत बरनन ,तीज-तिहार , गणित आदि के सिक्छाप्रद गीत मन संकलित हें असल म ए संकलन के नामे म जादू हे,लगथे कोनो लइका खेल म विधुन होथे अउ महतारी बेरा होय म ओला नहाय ,धोय,खाय पहिरे स्कूल जाय के सुरता कराथे फेर लइका अउ खेले बर मन बनाय हे।

डाँ. सरमा के अधिकांस समे लइका मन ल पढ़ात लिखात म बीते ह त उन बच्चा मन के मनोविज्ञान अउ रुचिमन ल बहुतेच समझथें। उन जानथे लइका मन ल खेल खेल म बहुत महत्त्व के बात सिखोय जा सकत हे। उन सबले पहिली तो लइका मन ल छत्तीसगढ़ी मनसे के चाल-ढाल सुभाव ल बता के उनमा छत्तीसगढ़ी होय के गुमान करे के सीख देथे-

छत्तीसगढ़िया सब ले बढ़िया। एमन सरल सुभाव के होथे उन मिलनसार होथे, बासी खाके खेत म अन्न उगाथे,अपन घर पहुना ल बासी खवाके प्रेम से बिदा करथे, खुदे उघरा रइथे , आने ल तन ढंके बर ओन्हा देथें। छलकपट कभू नइ जानै फेर सच कहे बर फुर बोलिक होथे , देस भक्ति के रूप म उन तिरंगा झंडा के गुणगान करथें, बताथे के लइका मन स्कूल म 15 अगस्त अउ 26 जनवरी के तिरंगा झंडा फहराथे, झंडा ऊंचा रहे हमारा जइसन गीत गाथे अउ भारत माता के जय बोलाथे। लइका मन म स्कूल के प्रति ललक जगाथें। ओमन ल नित्य क्रिया के सन्देस देके स्कूल जाय के संदेस देथे-

कंउवा करिस कांव कांव , तोला नींद ले उठांव
लीम के दतुअन कराव, जड़ जुड़ पानी म नहवांव

बच्चा तियार हो जाथे –
लहुवा रोटी खाँव, बांसी खांव
बस्ता धर के इस्कूल जांव

निरुपमा जी लइका मन म पूजा अर्चा के भाव भी भरथे। चंदा अउ सूरुज के गीत लिखथें, उंकर महत्तम ल समझाथें – सूरज उगे ले बिहनिया चिराई चुरगुन बोले लगथें। पवन के संचार होथे, फूल खिले लगथे, ओकर खूसबू चारो तरफ बगरे लगथे एकरे बीच उन कर्म के सन्देस घलोक देथें-
सूरज फजर उजेला करथे
दिन भर काम करौ तुम कइथे

झांड़ – झरोखा के मानवीकरण करके लइका मन के मन म अनजाने ही प्रकृति – सौंदर्य के चेतना भरथें। आसपास के परिवेस अउ वातावरण के प्रति रुचि पैदा करथे, बचपने म उनला जीव-जन्तु के प्रति प्रेम जगाथे, हिंसा से घृणा करे बर सिखलाथें गैया ,बछरू तुलसी माता के गीत म उन बच्चा मन के अबोध हिरदै म प्रेम के बीच बोथें –
गाय दूध देके हमर
माता जइसे पालन पोसन करथें

लइकन मन के मन बछरू के प्रति बहुतेच प्रेम होथे –
तोला सबले पहिली बछूरू
दाई के दूध पियाथें
दूध ल पीथस बछरू तें सुखरू

एमेर सुखरू हर मया -पीरा के सूचक सब्द आय।बछरू बर बड़ मय – प्रीत करथे –
तोला सबले पहिली बछरू दाई के दूध पियाथे
गइया दाई के दूध ल पीके मेंछराथस तैं सुखरू

इहाँ ‘सुखरू’नाम मया – प्रेम के सूचक आय निरुपमा जी घर के छानी उजडैया बेंदरा घलोक मन बर , लइका मन के मनोरंजन करे बर सुग्घर गीत लिखें हे- बेंदरा गजब उतिलहा
मिलके मार भगाथन त खिसखिस ले दांत देखाथे
देखा – देखा के हमला चिढ़ाथे, आघात फेंकत जाथे
बच्चा मन ल परदुख कातरता सिखाय बर निरुपमा जी सुन्दर सुन्दर बिम्ब मन के कल्पना करें हवंय-
पानी भर के टांगें हांवय सींका म मैं सबो पराई
भूख – पियासे तैं झन रहिबे
नई देखव मैं तोर करलाई

लइका मन ल उंकर परिवेस के संग पर्यावरण के भी ग्यान कराना चाहिए। इंहा कवियित्री प्रकृति सौंदर्य के माध्यम ले एकरो ग्यान देथैं। फूलमाला , नदिया, गरमी के दिन, पानी आगे जइसे गीत मन बड़ ध्वन्यात्मक अउ चित्रात्मक हें, तुलसी माता के बहाने प्रकृति प्रेम के भी इहाँ उदाहरन हें। छोटे छोटे जीव जन्तु खातिर कवियित्री के मया पीरा हर फुरफुंदी,मिट्ठु भैया, बाम्हन चिराई, चिराई मर जाही जइसन गीत म छलकत हे-
झन मारौं रे गुलले चिराई मर जाही
कोकरो ओहर नहीं बिगारै तोर काय जाही अउ
तोला पकड़ के लइका मन सब पूछी बांध उड़ाथे
करलाई तोर होथे फुरफुंदी देखके दुख मोह लगाथे

कवियित्री एमेर लइका मन ल प्रानी मन के प्रति दया मया के भाव देखाथे, ‘फुरफुंदी के मगन होके नाचे के उन सुखद कल्पना करथे, एईसने उन जीव जन्तु मन के भूख पियास घलोक के लइकन मन ल सुरता कराथें-
आजा आजा मोर अंगना म
नानकुन मोर बाहमन चिराई
धान फरी मैं टांगें हांवव
हमर दुवारी के सुघराई

उन मिट्ठू के मीठ बोली घलोक कती लइकन मन के धियान ल बंटाथें-
कभू चना ल कुटुर कुटुर खा
कहिथस हमला तपत कुरु
मीठ बोल के राम बोल के
मन ल करथस हरू हरू
हमर बन जा गुरू गुरू

कवियित्री लइका मन के बीच बुग बाय टेंगना अउ हुड़का बेंदरा म उकंर सुभाव के चित्रण कर के हास्य रस के सृष्टि करथें- उनमा विनोद के भाव जगाथें। बूग बाय टेंगना बिघवा के रेंगना ध्वन्यात्मक प्रयोग बहुतेच सुन्दर हे। हुड़का बेंदरा म वोकर उछलकूद अउ उपद्रव के बरनन हे लइका घलोक उपद्रवी सुभाव के होथें, ओहू उनला देखके उपद्रव करे लगथें-
कुछु सुखोले छानी म तै बाराबाट मचाथे
हुड़ंका गजब उतिलहा ब़ेदरा गजब उतिलहा
मिलथे मार भगाथन खिसखिस ले दांत देखाथे
देखा देखा के हमला चिढाथे आधा ल फेंकत जाथे

फूल माला म कवियित्री हर बाल सुलभ सौंदर्य ल पूजापाठ कती लगा देथैं सरसती अउ गणेस पूजा, दिया बाती, भोग लगा के बरदान मांगे के बात करथें। अपन परिवेस के, समे के ग्यान कराय अउ वोकर माध्यम ले प्रकृति सौंदर्य के दरसन कराय के उजोग भी कवियित्री के सूक्ष्म कल्पना के परिचायक आय देखा भला – गरमी के दिन, पानी आगे, जाड़ आगे जइसे गीत मन मा उन प्रकृति के अनेक रूप के दरसन कराथें- घाम के तिपाई अउ भोमरा के जराई म पानी घलोक हर पियासा मरथे, पेड़ पौधा मन छांव देवई घलोक भुला जाथे। मारे घमुर्री के देंह उसनाय जइसन लगथे फेर जब पानी बरसे लगथे बरसात के दिन आथे त नदी – कछार त भसके लगथे, पेड़ परछिन हवा से मन के मन घलोक जुड़ा जाथें.-
पेड़ म पाना सरसर सरसर परछिन पवन डोलावथे
नदिया के पानी कलकल छलछल सुग्घर गीत सुनावथे

जाड़ आगे म भी कवित्री ओकर परभाव के सुग्घर बरनन करथे-
कटकट कटकट दांत ह बाजै देख ना संगी जीभ कटागे
गोरसी आगी हम बारन, भुर्री बार के आगी तापन
अइसने समे अंगाकर रोटी, कथरी गोदरी अउ रवनिया
भला काला सुखकर नइ होवै

अमरइया के सैर, मड़ई देखे जाबो जइसे कविता म, दिया चुकलिया, जइसे कविता मन म कवियित्री हर इहाँ के खाई – खाजा, परब उछाह मंगल के हृदयहारी चित्रन करे हे। पुतरा पुतरी के बिहाव ए संकलन के सबले बढ़िया रचना आय। लइका मन बचपने ले पुतरा पुतरी के प्रति आकृष्ट रथे, उंकर बिहाव कराके बड़े लइका मन भी आनंद लेथे अउ सादी ब्याह के रीत नीत ल सीख जाथे। कवियित्री हर इहाँ नकल करौं सब मिलके म पसु – पक्षी के आवाज के नकल कराथे जेहर बच्चा मन बर आनंद दायक होथें।

नौ रस म उन बच्चा मन ले चित्र के माध्यम से रस के परिचय कराथे, पसु-पक्षी के सुभाव के ध्वन्यात्मक चित्रन करथे, जइसे सांप के सलंगना ,हिरना के कूदना , बादर के छाना, अउ मयूर के नाचना। एकरो नकल एक प्रकार के बढ़िया ख्याल एकर से लइका मन के ग्यान के बढ़ोतरी होथे।

बच्चा मन के भासा ग्यान बर निरुपमा सरमा के ये बाल कविता मन बड़ उपयोगी आय, उंकर परिवेस अउ पर्यावरण के भी ओमा पर्याप्त ग्यान हबय। कवितामन लयबद्ध सरल अउ सरस हे,फेर ए संकलन म एक बात खटकथे वोहर आय एमा जेतना रूप विधान आय हे सब परम्परागत आय, फेर आज के लइका मन विज्ञान के युग म बढ़त हे, उन रेडियो, टी.वी. रोबोट, सुपर सैनिक जइसे विज्ञानिक संसाधन ले परिचित होत जात हें, बहुत अच्छा होतिस डाँ. निरुपमा सरमा वैज्ञानिक संसाधन वोकर उपयोग, विधि विधान घलोक बर अपन कलम चलातीन अउ लइका म ल आधुनिक भाव – बोध ले भी परिचित करातिन। मोला विस्वास हे उन ए दिसा म अवस्य ही अपन कलम चलाहीं,वोइसे उन ए संकलन के जेतका छत्तीसगढ़ी के सेवा करे हें,वोहर उंकर स्तुत्य प्रयास आय।

आलेख

डॉ बलदेव 

प्रस्तुति:- छत्तीसगढ़ी काव्य के कुछ महत्वपूर्ण कवि
(भाग दो:- अप्रकाशित) संपादक बसन्त राघव
पंचवटी नगर,मकान नं. 30
कृषि फार्म रोड, बोईरदादर, रायगढ़,

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