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परीक्षा परिणाम से निराश न हों विद्यार्थी

आपने  छत्तीसगढ़ माध्यमिक शिक्षा मण्डल, रायपुर द्वारा आयोजित हाईस्कूल/हायर सेकण्डरी 2024 की परीक्षाएँ दी है जिसके परिणाम सन्निकट भविष्य में घोषित किए जाएंगे, जो उत्तीर्ण होंगे उन्हें मेरी ओर से ढे़र सारी अग्रिम बधाइयाँ, परन्तु जो छात्र-छात्राएँ कतिपय कारणवश सफल नहीं हो पाएंगे, उन्हें अधिक निराश होने की आवश्यकता नहीं, मन में निराश या ग्लानि के भाव को तनिक भी स्थान न दें।

इतिहास में अनेक उदाहरण ज्ञात है असफल होने के बाद भी पुनः प्रयास करते रहने पर उनके लिए सफलता के स्वर्णिम द्वार खुल जाते हैं। दुनिया को बल्ब की रोशनी से प्रकाशमान करने वाले प्रख्यात वैज्ञानिक ‘‘थामस एल्बा एडिसन’’ बिजली के बल्ब के अविष्कार करने में एक या दो या तीन बार नहीं अपितु दस हजार बार से भी अधिक बार असफल हुए, फिर भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी, अपनी माँ की प्रेरणा से अनवरत प्रयास करते रहे, फलस्वरूप विद्युत बल्ब बनाने में सफल हुए।

स्वामी विवेकानंद जी ने अपने अनुयायियों को प्रेरित करते हुए कहा कि ‘‘उठो जागो और तब तक मत रूको, जब तक लक्ष्य की प्राप्ति न हो जाए।’’ उठने से उनका स्पष्ट आशय है आलस्यता का त्याग करके परिश्रमरत रहने को है। महाकवि गोस्वामी तुलसीदास जी ने प्रसंग वक्ता श्री जामवन्त जी के मुख से श्री हनुमान जी को उनकी भूली हुई शक्ति को जगाने के उद्देश्य से कहते हैं – ‘‘कवन सो काज कठिन जग माही, जो नहि होत तात तुम्ह पाही।’’ तदुपरान्त श्री हनुमान जी के कार्य सर्वविदित एवं वंदनीय है।

आप में भी अकूत शक्ति विद्यमान है उसे पहचानिए एवं अपने कर्तव्यपथ पर नए सिरे से जुट जाइए, सफलता आपके कदमों को अवश्य ही चूमेगी। कवि वृन्द की प्रसिद्ध पंक्ति का स्मरण कर उसका पालन कीजिए –

‘‘करत करत अभ्यास से, जड़मति होत सुजान।
रसरी आवत जात ही सिल पर पड़त निशान।।’’

बार-बार अभ्यास करते रहने से निर्जीव पत्थर पर चिन्ह पड़ जाते हैं, आप तो उर्जावान, ज्ञानवान, संवेदनशील व देश के भावी नागरिक हैं, निरंतर अभ्यास व परिश्रम करने के लिए कमर कस लीजिए आपके लिए असंभव बिल्कुल नहीं है।

अन्त में हिन्दी साहित्य के प्रख्यात कवि ‘‘श्री श्रीकृष्ण सरल जी’’ की पंक्ति का उल्लेख करते हुए नैराश्यता का भाव त्यागने व लक्ष्य बनाकर परिश्रम करने के लिए विनम्र अपील करता हूँ। संकल्पित होइए सफलता मिलने की शत्-प्रतिशत गारंटी है।

‘‘अगर तुम ठान लो तो तारे गगन का तोड़ सकते हो,
अगर तुम ठान लो तो वायु का पथ मोड़ सकते हो।’’

यदि पहले प्रयास में असफलता मिली है तो दूसरा प्रयास पूरी तैयारी और सकारात्मक सोच के साथ करना चाहिए तभी सफलता प्राप्त होगी। एक बात याद रखिए कि जब उम्मीद का अंत होता है तो निराशा/असफलता का प्रारंभ होता है इसलिए हताश न हो स्वयं पर भरोसा रखंे भरोसा भी ऐसा कि ‘‘कुछ न कुछ तो कर ही जाऐंगे। किन्तु बिना लक्ष्य के आगे बढ़ा नहीं जा सकता। जिसके लिए सही कार्य योजना/मार्गदर्शन प्राप्त कर आगे बढ़ें। निश्चित आप अपनी मंजिल तक जरूर पहुचेंगे। अतः परिणामों को जीवन का अंतिम पड़ाव मत समझिए। महत्वपूर्ण यह है कि अगर चलते-चलते कदम डगमगा गए, गिर गए तो पुनः उन्हें और संभल कर, समझ कर पुनः चलना प्रारंभ करें अर्थात् परिणाम आशा अनुरूप आने में क्या कमी रह गई है। उन्हें समझे, आकलन करें बस उसके अनुरूप अध्ययन की कार्ययोजना के साथ आगे बढ़े। निश्चित ही अगला परिणाम आपको एक मुस्कुराहट देगा।

श्री रामकृष्ण पुष्पकार
पूर्व प्राचार्य
श्री राम जानकी उ0मा0वि0 नवापारा (राजिम)

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