दिव्यांगओं को भी चाहिए सामान्य जीवन जीने का अवसर

विकलांगों को समाज में हीन भावना का शिकार होना पड़ता है कारण उनकी असामान्य शारीरिक संरचना एवं उसके चलते प्रभावित होने वाली जीवन शैली। इन्हीं बातों को ध्यान में रखते हुये संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा ने सन 1981 को विकलांगों का अंतर्राष्ट्रीय वर्ष मनाने एवं उन्हें पुनर्वास, सुरक्षा एवं उचित अवसर दिलाने के लिए क्षेत्रीय, राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर “सम्पूर्ण सहभागिता एवं समानता “ के अंतर्गत कार्य योजना बनाने का निर्णय लिया गया था। इस अभियान का मुख्य उद्येश्य था विकलांगों को समाज में विकसित होने, आम लोगों की तरह जीवन जीने एवं सामाजिक तथा आर्थिक उन्नति में समान अवसर दिलाना था।

संयुक्त राष्ट्र संघ की सभा ने अपने प्रयास को अंजाम देने के लिए वर्ष 1983 से 1992 की अवधि को विकलांग दशक के रूप में मनाने की घोषणा की थी। तब से लेकर आज तक विश्व स्तर पर विकलांगों के गौरव, न्याय एवं सम्मान के लिए अलग अलग वार्षिक विषय वस्तु एवं लक्ष्य के माध्यम से अनेक प्रयास जारी है।

सन 1992 से प्रति वर्ष 3 दिसम्बर को अंतर्राष्ट्रीय विकलांग दिवस के रूप में मनाया जाता है एवं विकलांगों के उत्थान के प्रति सामाजिक भूमिका तथा सरकारिक स्तर पर बनाई गई नीति व उसकी गति पर चर्चा की जाती है। संयुक्त राष्ट्र संघ की सामान्य सभा द्वारा 1982 को दिया गया शीर्षक विकलांगों का अंतर्राष्ट्रीय वर्ष का नाम दिनांक 18 दिसम्बर 2007 को सभा के संकल्प (रीजोल्यूशन) 62/127 के तहत बदल कर विकलांगता से जुड़े लोगों का अंतर्राष्ट्रीय दिवस कर दिया गया। प्रतिवर्ष अंतर्राष्ट्रीय विकलांग दिवस के उपलक्ष्य में अलग अलग विषय वस्तु निर्धारित की जाती है ताकि विकलांगों की स्थिति एवं विकास में गुणात्मक सुधार होता रहे।

भारत सरकार द्वारा विकलांगों के हितों की रक्षा एवं विकास के लिए विकलांग अधिनियम 1995 जारी किया गया है जिसके अंतर्गत विकलांगों के लिए समान अवसर, सुरक्षा एवं सम्पूर्ण सहभागिता मुहैया करने का प्रावधान है। भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने दिव्यांगों के हितों की रक्षा एवं उन्हें अतिरिक्त सुविधाएं तथा अवसर प्रदान करने की बात कई बार दोहराई है। उनके सम्मान की रक्षा हेतु नया नाम दिव्यांग प्रदान किया गया है।

दिव्यांगों के हितों की रक्षा के लिए भारत सरकार द्वारा दिव्यांगजन नियम-2016 को संशोधित करके दिनांक 10.3.2017 को दिव्यांगजन नियम- 2017 जारी किया गया है जिसमें नौकरी के दौरान दिव्यांगों को पर्याप्त सुविधा, प्रशिक्षण एवं बेहतर अवसर प्रदान करने का प्रावधान है। विकलांगता अभिशाप नहीं है ईश्वर द्वारा निर्मित उत्कृष्ट रचनाओं मे से एक है। बहुत से ऐसे उदाहरण मौजूद हैं जो यह दर्शाते हैं कि दिव्यांगों ने अवसर मिलने पर सामान्य लोगों से बेहतर कार्य किया है।

विकलांगता शारीरिक, मानसिक, इंद्रियज्ञान, दृष्टि, श्रवण, बौद्धिक एवं विकास किसी से भी संबन्धित हो सकती है। दरअसल विकलांगता बच्चों या बड़ों के शरीर के कमजोर लक्षण एवं सामाजिक सरोकार के बीच उत्पन्न असंतुलन की स्थिति को दर्शाती है जिसके चलते हर काम में अवरोध पैदा होता है। विकलांगों को अक्सर मज़ाक का पात्र बनने का दुख भी झेलना पड़ता है कि तुम तो अपंग हो, कुछ नहीं कर सकते वगैरह वगैरह।

असल में विकलांग एवं अपंग में बहुत अंतर होता है। विकलांग किसी काम को सामान्य की तरह ठीक से नहीं कर सकते जबकि अपंग को उसी कार्य को करने के लिए दूसरों की सहायता लेनी पड़ती है। आज दिव्यांगों के लिए राष्ट्रीय स्तर पर चिंतन एवं मनन की आवश्यकता है ताकि उन्हें उनके लिए बनाई गई योजना, रोज़गार एवं सुविधा का समुचित लाभ मिल सके।
उनके लिए जागरूकता कार्यक्रम चलाने की जरूरत है कारण कि दूर दराज गावों में बैठे दिव्यांगजन आज भी इन बातों से अनभिज्ञ हैं। मेरा मानना है कि जिला स्तर पर दिव्यांगों की गणना होनी चाहिए। उनकी योग्यता एवं अनुभव का लेखा जोखा जिला प्रमुख के पास होना चाहिए ताकि समय समय पर घोषित सरकारी योजनाओं का लाभ उन्हें मिल सके।

आज विश्व में लगभग पंद्रह प्रतिशत लोग किसी न किसी रूप में विकलांगता के शिकार हैं। विश्व विकलांग दिवस के अवसर पर विकलांगों की समस्या से जुड़े मुद्दों पर उच्च स्तरीय चर्चा तो ख़ूब होती है लेकिन उनके विकास की गति एवं नीति निर्धारित नहीं होती। दिव्यांगों की योग्यता एवं प्रतिभा का सम्मान होने के साथ उनकी नौकरी एवं आर्थिक स्थिति को सुदृढ़ बनाने संविधान में संशोधन होना चाहिए तभी अंतर्राष्ट्रीय विकलांगता दिवस मनाने का उद्देश्य सफल होगा।

सरकारी नौकरियों और शिक्षा संस्थानों में नि:शक्त व्यक्ति अधिकार बिल 2014 के तहत दिव्यांगों के लिए अब 3 के बजाय 4 प्रतिशत सीटें आरक्षित होने के बावजूद, दिव्यांगता की 7 के बजाय 21 कैटिगरी होने के कारण इस बिल का दिव्यांगो के भविष्य पर विशेष प्रभाव नहीं पड़ा है। जहाँ एक पद के लिए सात केटेगरी के दिव्यांग आपस में जूझते थे वहीं आज 21 केटेगरी के दिव्यांगो को एक पद के लिए आपस में जूझना पड़ता है या अपने पद की प्रतीक्षा में 20 केटेगरी के लोगों की नियुक्ति का इंतज़ार करना पड़ता है। इस बिल के पुनर्मूल्यांकन की आवश्यकता है ताकि सभी दिव्यांगों को उचित अवसर एवं लाभ मिल सके। 21 श्रेणी के दिव्यांग निम्नानुसार निर्धारित किए गए हैं –

1 .दृष्टिबाधित, रंग की पहचान में दिक्कत
2 . अल्प दृष्टि जिसमें कम दिखे, आसपास चलने-फिरने में दिक्कत
3 . कुष्ठ रोग से अंगुलियां में टेढ़ापन, त्वचा पर धब्बे, अंगुलियां सुन्न या चेहरा विकृत
4 . सुनने में कठिनाई, 70 डेसिबल तक नहीं सुनना
5 . हाथ-पैर में निशक्तता, लकवा, पोलियो या हाथ-पैर कटना
6 . कद 147 सेमी से कम 7 . हमउम्र बच्चों के समान कार्य नहीं करना, अंगों का सामान्य नहीं होना
8 . मानसिक विमंदित
9 . आंखें मिलाकर बात नहीं कर पाना, अंग हिलाते रहना 10 . सेरेब्रल पाल्सी से अंगों में जकड़न, विकृति, मुंह खुला और लार गिरना
11 . मांस-पेशियों में विकृति, पंजों के बल चलना, दौड़ने-कूदने में परेशानी
12 . दिमाग और स्पाइन कोड में असंतुलन
13 . सीखने-समझने की कमजोरी, भाषा ज्ञान कमजोर 14 .दिमाग और रीढ़ में संतुलन कमजोर, ब्रेन डेमेज 15 . स्पष्ट नहीं बोल पाना, तुतलाना, शब्दों में निरंतरता की कमी
16 . हीमोग्लोबिन की विकृति और खून की कमी
17 . हीमोफीलिया में घाव से रक्तस्राव बंद नहीं होना
18 . सिकिल सेल बीमारी से खून की अत्यधिक कमी या अंग खराब
19 . एकसाथ कई अंगों की विकृति मानसिक, मूक-श्रवण दृष्टि बाधा
20 . तेजाब के हमले से अंग प्रभावित या हाथ-पैर-आंख-गला और चेहरा प्रभावित एवं
21 . पार्किंसन से कमर झुकना, हाथों में कंपन में कदमों में संतुलन नहीं होना।
यहां एक वास्तविक भर्राशाही एवं दिव्यांग के शोषण का उल्लेख करना लाजिमी होगा ।

कुछ वर्ष पूर्व एक घटना प्रकाश में आई। एक दिव्यांग मयंक एनटीपीसी-जमनीपाली, कोरबा चिकित्सालय में तीन वर्षों से यू.पी.एल.के अधीन संविदा नियुक्ति के आधार पर डाटा एंट्री आपरेटर पद पर कार्य कर रहा था। दिव्यांग एवं शारीरिक रूप से कमजोर होने के बावजूद दिये गए हर काम को वह पूरी निष्ठा एवं ईमानदारी के साथ करता रहा। 7 अक्टूबर 2017 को चिकित्सालय के प्रभारी सी.एम.ओ.डॉ. लोकेश महेंद्रा एवं डॉ.प्रतिमा महेंद्रा द्वारा यू.पी.एल.के अधिकारियों की उपस्थिति में सामान्य श्रेणी के प्रत्याशियों के साथ उसका साक्षात्कार डाटा एंट्री आपरेटर के पद हेतु पुनः लिया गया जबकि दिव्यांगों की परीक्षा उनके लिए बनाए गए मापदण्डों के आधार पर अलग से ली जाती है। फिर कुछ दिनों बाद अधिकारिक सूचना न देते हुये उसे वहाँ काम कर रहे संविदा कर्मचारी के माध्यम से मौखिक रूप से यह सूचना दी गई कि उसकी जगह सामान्य श्रेणी के प्रत्याशी की नियुक्ति कर दी गई है, उसका पिछला तीन माह का वेतन खाते में भिजवा दिया जाएगा।

डॉ. लोकेश महेंद्रा से संपर्क करने पर उन्होंने मयंक को आम तौर पर दिये जाने वाले उत्तर (जैसे-आप शारीरिक रूप से कमजोर हैं, काम बढ़ गया है, काम नहीं कर पाएंगे, हम किसी को भी लेने स्वतंत्र हैं आप चाहो तो अटेंडेंट पद पर यहां बैठ सकते हैं आदि) उत्तर देकर उसे हतोत्साहित एवं दुखी कर दिया। किसी दिव्यांग की परीक्षा सामान्य वर्ग के लोगों के साथ तभी ली जाती है जब उनके लिए पहले से पद आरक्षित होता है।

इस साक्षात्कार में वह अकेला दिव्यांग प्रत्याशी था और पहले से डाटा एंट्री आपरेटर के पद पर चिकित्सालय में कार्य कर रहा था इसलिए यह पद दिव्यांग के लिए नहीं है कहना तर्कसंगत नहीं है। पूर्व में एनटीपीसी-चिकित्सालय प्रबंधतंत्र ने उसकी दक्षता, योग्यता एवं दिव्यांग स्थिति को ध्यान में रखते हुये ही चिकित्सालय में डाटा एंट्री आपरेटर के पद पर नियुक्त किया था। उसकी तीन वर्षों की सेवा के दौरान किसी ने उसे कम काम करने या धीरे काम करने के संबंध में कोई लिखित या मौखिक जानकारी नहीं दी बल्कि अतिरिक्त काम कराने के उद्देश्य से उसके द्वारा किए गए कामों की हरदम प्रसंशा एवं सराहना की जाती रही।

आज एनटीपीसी-कोरबा चिकित्सालय के विभिन्न कामों का तीन वर्ष से अधिक का अनुभव होने के बावजूद उसका डाटा एंट्री आपरेटर पद हेतु न चुना जाना एवं सामान्य श्रेणी के लोगों का उसकी जगह चुना जाना चयन प्रक्रिया में हुई धांधली एवं भारत सरकार द्वारा दिव्यांगजन नियम-2016 तथा संशोधित दिव्यांगजन नियम- 2017 के खुले उलंघन को दर्शाता है। आज भी मयंक योग्य एवं अनुभवी होते हुए भी खाली रहने का दंश झेल रहा है।

उसके द्वारा यह प्रकरण मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री एवं इस कार्य की देखरेख हेतु नियुक्त संबंधित अधिकारियों को ध्यान देने हेतु प्रेषित किया जा चुका है लेकिन उसे अभीतक न्याय नहीं मिल पाया है। दिव्यांगों के साथ ऐसी अनेक विसंगतियाँ घटित होती हैं शासन एवं प्रशासन के लोगों को पता नहीं चल पता। इस दिशा में ध्यान देने, प्रभावितों को न्याय दिलवाने एवं दिव्यंगों के भविष्य के साथ खिलवाड़ कराने वालों के विरुद्ध कड़ी कार्यवाही सुनिश्चित करवाने की आवश्यकता है।

नि:शक्त व्यक्ति अधिकार बिल, 2014′ में यह प्रावधान भी है कि अगर कोई शख्स किसी दिव्यांग के साथ भेदभाव करता है तो उसे दो साल तक की सजा और 5 लाख रुपये तक का जुर्माना हो सकता है। इस बिल के प्रावधानों के मुताबिक सार्वजनिक इमारतों में ऐसे इंतजाम करने होंगे कि दिव्यांग उनमें आसानी से प्रवेश कर सकें। ऐसा न होने पर उस बिल्डिंग को कंपलीशन सर्टिफिकेट नहीं मिलेगा।

इसी प्रकार हर तरह के पब्लिक ट्रांसपोर्ट और अन्य सुविधाओं में दिव्यांगों के लिए जरूरी प्रबंध करने होंगे। इसमें दिव्यांग के गार्जियनशिप के लिए भी प्रावधान किया गया है। किसी भी मनुष्य को जीवन यापन के लिए कुछ बुनियादी चीजों की आवश्यकता होती हैं जैसे – रोटी, कपड़ा, मकान,. शिक्षा, नौकरी, स्वास्थ्य चिकित्सा, जीवनसाथी , परिवार, कुटुंब एवं स्वच्छ सामाजिक वातावरण की। जिनके बीच वह अपना सुख-दुख साझा कर सके।

दिव्यांगजनों में भी सामान्य लोगों की तरह जीवन व्यतीत करने की बड़ी लालसा होती है। यदि मनोवैज्ञानिक दृष्टि से देखा जाए तो शरीर की दुर्बलता को छोड़कर इनकी सारी इन्द्रियाँ पूरी तरह सक्रिय होती हैं, सामान्य लोगों से कम नहीं होती। ऐसे लोगों की आय सुनिश्चित किए बगैर सरकारी खर्चे पर विवाह कर देने मात्र से जिम्मेदारी पूरी नहीं हो जाती ।आगे क्या होगा इसपर भी ध्यान देने की आवश्यकता है।

दिव्यांगजनों को नौकरी ऐसे सभी विभागों में दी जा सकती है जहां भागदौड़ न्यूनतम हो या नहीं के बराबर हो। सतयुग में जन्मे वामन विष्णु के पाँचवे मानवरूपी अवतार थे। बौने होने के बावजूद उस युग में उन्हें पूरा मान सम्मान प्राप्त था। कभी हीन भावना का शिकार नहीं होना पड़ा बल्कि आज भी उनकी पूजा अर्चना की जाती है। ईश्वर ने इस कद के लोगों का गौरव बढ़ाने स्वयं बौने का रूप धारण किया था। इसलिए ऐसे लोगों के साथ नकारात्मक रवैया रखना उचित नहीं है। हर काम सकारात्मक सोच के साथ होना चाहिए।

आज दिव्यांगों के हितों की रक्षा एवं उनके विकास हेतु निम्नलिखित सुझावों पर ध्यान देने की आवश्यकता है –
1 .प्राप्त अंकों एवं अनुभव के आधार पर सीधी भर्ती का प्रावधान होना चाहिए। ताकि चयन प्रणाली में पक्षपात की संभावना न बन सके
2 .दिव्यांगों के जन्म-मरण, शैक्षणिक योग्यता एवं अनुभव का लेखाजोखा जिला प्रमुख के पास होना चाहिए।
3 .दिव्यांगों के लिए आवश्यक सभी प्रमाण पत्र एवं सुविधाएँ उन्हें शासन द्वारा जिला प्रमुख के माध्यम से धर बैठे उपलब्ध होना चाहिए।
4 .यदि किसी दिव्यांग को नौकरी नहीं मिल पाती जो उसे शासन द्वारा योग्यता एवं अनुभव के आधार पर पेंशन देय होना चाहिए।
5 .प्रदेश एवं राष्ट्रीय स्तर पर दिव्यांगों की नियुक्ति एवं मिलने वाली सुविधाओं की जाँच हेतु विशेषज्ञों की निगरानी समिति होनी चाहिए। दोषी पाए जाने पर संबंधित अधिकारियों पर कार्यवाही एवं कड़े दंड देने का प्रवधान होना चाहिए एवं
6 .देश के प्रत्येक शैक्षणिक, अभियांत्रिकी, सूचना प्राद्योगिकी एवं चिकित्सालय आदि संस्थाओं में दिव्यांगों के अध्ययन हेतु सीट आरक्षित होनी चाहिए ताकि जीवन के हर क्षेत्र में उनकी सहभागिता बनी रहे।
यदि हम सहीं मायने में दिव्यांगों के लिए कुछ करना चाहते हैं तो उपरोक्त सुझावों पर अमल करना होगा वरना उन्हें ख़ास अवसरों पर साइकिल, फल,मिष्ठान , कृतिम हाथ – पाँव एवं छोटी मोटी सुविधाएं देकर हम अपनी पीठ ठोकते रहेंगे, इलेक्ट्रॉनिक एवं प्रिंट मीडिया में खुद को एवं सरकार को महिमा मंडित करके ख़ुश होते रहेंगे। मैं सभी दिव्यांगजनों के अच्छे स्वास्थ्य एवं उज्जवल भविष्य की कामना करता हूँ।

 

लेखक

डॉ.माणिक विश्वकर्मा ‘नवरंग’, 
क्वार्टर नंबर-ए.एस.14,पॉवरसिटी,अयोध्यापुरी
जमनीपाली,पो.जमनीपाली
जिला-कोरबा(छ.ग.) 495450
मोब.9424141875, 7974850694

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