रामायण विश्व महाकोश निर्माण को गति देने संस्कृति एवं पर्यटन मंत्री डॉ नीलकंठ तिवारी ने बैठक ली

रामायण विश्व महाकोश की तैयारी की यह २१ वी बैठक थी जो माननीय संस्कृति एवं पर्यटन मंत्री डॉ नीलकंठ तिवारी जी की अध्यक्षता में सॉय ४.३० बजे प्रारंभ हुई। इस बैठक में बंगाल टीम की समन्वयक डॉ अनीता बोस, म प्र टीम के समन्वयक डॉ राजेश श्रीवास्तव , छत्तीसगढ़ टीम के समन्वयक डॉ ललित शर्मा के साथ बीज वक्तव्य प्रो राणा पी वी सिंह जी ने दिया , परियोजना की विस्तार से रूपरेखा प्रो सूर्य प्रसाद दीक्षित जी ने रखी व सफल संयोजन डॉ प्रभाकर सिंह ने किया।

आज गुरू पूर्णिमा के शुभ अवसर पर तैय्यारी बैठक की अध्यक्षता करते हुये माननीय संस्कृति मंत्री जी ने कहा कि सातवीं शताब्दी से भारत पर अनेकानेक कारणों से लगातार हमले होते रहे , आर्थिक, सामाजिक , सॉस्कृतिक व धार्मिक क्षेत्रों में अपूरणीय क्षति पहुचाई गयी। यहॉ तक कि सुनियोजित रूप से इतिहास लेखन कर सर्वथा अनुचित व असंगत इतिहास लेखन किया गया। वर्तमान काल सॉस्कृतिक पुनर्जागरण का काल है जिसके सबसे बड़े प्रतीक राम है।

माननीय मंत्री जी एक अत्यंत महत्वपूर्ण बात कही कि जब रामलीला खेलते समय प्रारम्भ, मध्य व अंत में राजा राम जी का जैकारा लगाया जाता है तो उसका भी बिशेष अर्थ व संकेत है , चाहे बाबा तुलसी का समय हो या पराधीनता का काल था उस समय राजा ही आततायी था, इसी से मुक्ति के लिये राम राज्य की परिकल्पना जनमानस में थी। राजा तो हमारा राम जैसा ही होना चाहिये।

बीज वक्तव्य में प्रो राना पी वी सिंह जी ने सुस्पष्ट कर दिया कि महाविश्वकोश का लेखन विशेष लेखन है इसमें श्रद्धा, आस्था विश्वास बहुत ज़रूरी है। रामायण संस्कृति के बारे में बारे में भौगोलिक , आध्यात्मिक,साँस्कृतिक व वैज्ञानिक दृष्टिकोण रखना होगा,अपने विश्वास के साथ विश्व विरादरी के मान्यताओं का भी सम्मान करना होगा।

प्रो सूर्य प्रसाद दीक्षित जी ने अपने सम्बोधन में बड़े विस्तार से परियोजना की सिनापसिस से अवगत कराया। सभी भाषाओं बोलियों के लिखित अलिखित साहित्य के साथ मूर्त व अमूर्त विरासत के राम तत्वों को विशद अन्वेषण समय की आवश्यकता है।

छत्तीसगढ़ के समन्वयक डॉ ललित शर्मा ने छत्तीसगढ़ की तैयारी की संक्षेप में ही विस्तृत रूपरेखा प्रस्तुत की है जनजातीय जीवन से लेकर छत्तीसगढ़ के सभी क्षेत्रों को सम्मिलित करने के लिये पुरातात्विक विशेषज्ञों, नृतत्वशास्त्रियों, समाज शास्त्रियों, संस्कृति मर्मज्ञों तथा साहित्यकारों की सशक्त टीम बनाकर निरंतर विचार विमर्श कर कार्य को गति दी जा रही है।

डॉ राजेश श्रीवास्तव निदेशक रामायण केंद्र भोपाल ने म प्र की तैयारी से अवगत कराया ।डॉ श्रीवास्तव ने यह भी अवगत कराया कि उनके द्वारा व्यास परम्परा का संकलन भी कराया जा रहा है। रामायण केंद्र भोपाल द्वारा शोध मित्रों का चयन भी किया जा रहा है। आपने एक पत्रिका के नियमित प्रकाशन किये जाने का सुझाव दिया जिसमें इनसाइक्लोपीडिया के लिये संग्रहित जानकारी का नियमित प्रकाशन भी होता रहे।

डॉ अनीता बोस ने बंगाल की तैय्यारी पर एक प्रस्तुति करण भी दिखाया। बंगाल में रामायण की परम्परा अत्यंत प्राचीन व सुदीर्घ है। सभी क्षेत्रों के बिशेषज्ञ चयनित किये जा रहे है। यहॉ तक कि आई आई टी खडगपुर इस योजना में सहभागिता पर सहमत है।

प्रो नीतू सिंह ने मैदानी रामलीला पर कार्य हेतु योजना पर चर्चा की। श्री मनीष ने वाराणसी की अनेक परम्पराओं में राम संदर्भों पर कार्य करने की सम्भावना से अवगत कराया। सभी महानुभावों का धन्यवाद ज्ञापन व अत्यंत सफल संचालन प्रो प्रभाकर सिंह ने किया।