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रे नर मुरख चेत सके तो चेत : सम्पादकीय

आज धरती संकट में है, धरती के साथ सभी प्राणी जगत संकट में है। अंधाधूंध जंगल कटाई ने धरती के प्राणियों का जीवन संकट में डाल दिया। जून के इस नौतपा में देश विदेश आने वाली खबरें नि:संदेह चिंताजनक हैं। लू से लोगों की मौत हो रही है, जो मरे नहीं है, वे परे हैं। गर्मी का भीषण प्रकोप का सामना करना पड़ रहा है। कूलर और वातानुकुलित उपकरण निष्प्रभावी होते जा रहे हैं, ऐसा लग रहा है कि सारा संसार ही जल उठेगा।

कुछ दिनों पूर्व राजस्थान के फ़लौदी में तापमान 52 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया था तथा आज ही एक समाचार चैनल बता रहा था कि नागपुर का तापमान 56 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया। दिल्ली के एक मोहल्ले में 51।5 डिग्री सेल्सियस तापमान मापा गया। इतना अधिक तापमान भारत में कभी रिकार्ड नहीं किया गया था।

भारत की क्या कहें लंदन जैसी ठंडी जगह के तापमान में भी लगातार बढ़ोतरी हो रही है। वहाँ तो 30 डिग्री सेल्सियस से तापमान ऊपर जाने पर हाय तौबा मचना प्रारंभ हो जाता है। क्योंकि वहां का आवास ही ठंड के अनुसार निर्मित किया जाता है। लकड़ी के फ़र्श और दीवारों की पनलिंग लकड़ी की होती है, जिससे ठंड में गर्माहट बनी रहे। युरोप का मौसम भी कमोबेश ऐसा ही बना रहता है। इससे ये तो तय है कि मौसम में गर्मी लोकल न होकर ग्लोबल है।

ग्लोबल वार्मिंग का शिकार सारी धरती हो रही है। जल स्रोत सूख रहे हैं, नदियाँ मर रही हैं। कई सदानीरा नदियाँ मर चुकी है, जो सिर्फ़ बरसात के कुछ महीनों में जीवित होती हैं। मानव सब कुछ देख रहा है, लेकिन अपने सुख के लिए धरती का वातावरण बिगाड़ रहा है। बहुत सारे पक्षियों की जातियाँ विनाश के कगार पर हैं। गर्मी में मनुष्य तो किसी तरह छाया और पानी का इंतजाम कर प्राण बचा लेता है, लेकिन बेजुबान पशु पक्षियों को काल ग्रस लेता है।

धरती सुंदर बनाने में मनुष्य के साथ साथ सभी तरह जीवों का योगदान है। जब अन्य जीव ही खत्म हो जाएंगे तो धरती का ईको सिस्टम बिगड़ जाएगा और इसका सबसे बड़ा नुकसान मानव जाति को होगा। इस तरह मानव जाति भी धीरे धीरे अपने विनाश के कगार पर पहुंच रही है। जहां एक दिन उसे खत्म होना और इसे ही महाप्रलय कहा जाएगा।

जैसे ही गर्मी बढ़ती वैसे ही संचार माध्यमों पर हो हल्ला शुरु हो जाता है कि पेड़ लगाओ, धरती बचाओ। सरकारी योजनाएं बनती पेड़ लगाने के लिए। लाखों लाख पेड़ लगाये जाते हैं। लेकिन लगाने के बाद वे पेड़ कहाँ जाते हैं, उसका किसी को पता नहीं। इतने वर्षों में इतने पेड़ लगाए जा चुके हैं कि अगर वे सारे पेड़ जिंदा होते तो भारत सघन वन हो जाता। लेकिन कहीं दिखाई नहीं देता कि पेड़ कहाँ लगे है। कहने का तात्पर्य यह है कि कार्य में इमानदारी नहीं है।

आज से तीस चालिस वर्षों पूर्व जब पानी बोतल में बिकने नहीं लगा था तब धनी मानी लोग प्याऊ की व्यवस्था करते थे। पशुओं के जल पीने के लिए कोटना का प्रबंध होता था। चिड़ियों के लिए सकोरे रखे जाते थे। अब प्याऊ कहीं दिखाई नहीं देती। कहीं प्याऊ खुली भी है तो उसे पानी बेचने वाले तोड़फ़ोड़ डालते हैं गर्मी का मौसम आते ही सकोरा कोटना बांटते हुए कुछ एन जी ओ के फ़ोटू खिंचाऊ लोग अखबारों की सूर्खियाँ बन जाते हैं। जबकि अगर वे कार्य के प्रति गंभीर हैं तो होली के बाद पशु पक्षियों के लिए पानी और दाने की व्यवस्था प्रारंभ हो जानी चाहिए, न कि मई जून के महीने में।

पर्यावरण की रक्षा का एकमात्र उपाय वृक्ष लगाना उसकी रखवाली करना तथा उसके विकास में सहयोग प्रदान करना। जिस तरह हम संतान का पालन करते हैं उसी तरह पेड़ लगाने के बाद उसकी देखभाल होनी चाहिए। कुछ वर्षों में मेरी भूटान यात्राएं हुई हैं। वहां राजा की तरफ़ से हर चार साल में मकान बनाने या मकान की मरम्मत करने के लिए एक पेड़ दिया जाता है। लेकिन वह पेड़ तब मिलता है, जब उसके स्थान पर चार पेड़ लगा कर दिखाए जाते हैं तथा उन पेड़ों के पालन की जिम्मेदारी भी लाभार्थी की होती है। इस तरह भूटान में अभी तक जंगलों की कमी नहीं हुई है।

हाहाकारी खबरों के बीच एक खबर तपती हुई धरती पर बरसात की ठंडी फ़ुहार जैसे आई। राजस्थान के अजमेर जिले में पदमपुरा नामक गाँव में आबादी से ढाई गुना अधिक नीम के वृक्ष हैं। यहाँ की आबादी 2000 है तो यहां पेड़ों की संख्या 5000 है। इन नीम के पेड़ों पर न कभी कुल्हाड़ी चली, न किसी से काटा, पीढी दर पीढी इस परम्परा का निर्वहन हो रहा है। यहाँ का किसान जमीन भी इस शर्त पर बेचता है कि जमीन पर लगा हुआ नीम का पेड़ नहीं काटा जाएगा। गांवों में इस तरह का शासन होना चाहिए, जो पर्यावरण के प्रति भी जिम्मेदार हो। क्योंकि इसका लाभार्थी वह स्वयं है।

आने वाली पीढियों को बचाने की जिम्मेदारी आज की पीढी को स्वयं लेनी होगी, एक एसी के चलने से पर्यावरण का कितना नुकसान होता है, ये जानना होगा। एसी लगाने की बजाए घर में एक फ़लदार वृक्ष लगाना श्रेयकर है, जो आने वाली पीढी को फ़ल के साथ छाया भी देगा तथा वातावरण को शुद्ध रख पर्यावरण की भी रक्षा करेगा। लेकिन इस कार्य को नैतिक दायित्व समझकर करना होगा, इमानदारी से करना होगा।

 

ललित शर्मा इण्डोलॉजिस्ट
संपादक न्यूज एक्सप्रेस, रायपुर

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