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मनुष्य की जिम्मेदारी प्रकृति एवं पर्यावरण संरक्षण

रेखा पाण्डेय (लिपि)

पर्यावरण अर्थात चारों ओर का आवरण अर्थात धरती के चारों ओर फैला प्राकृतिक परिवेश। प्रकृति में उपस्थित प्रत्येक तत्व इसका अंग है। सृष्टि की संरचना एवं जीवों की उत्पत्ति इन दोनों का अटूट संबंध है, जन्म से मृत्यु तक प्राणी प्रकृति पर ही आश्रित रहता है। पंचतत्व या पंच-महाभूत आकाश, वायु,अग्नि, जल, पृथ्वी इन पाँच तत्वों सृष्टि का प्रत्येक पदार्थ बना है। प्रकृति भी इन्ही पंचतत्वों से बनी है।

पूरे विश्व पर पर्यावरण प्रदूषण का संकट को गंभीरता पूर्वक देखें तो हमारी धरती और इसमें रहने वाले समस्त प्राणीजन, पेड़-पौधे, जीव-जन्तु सबका जीवन खतरे में है। विवेकशील मानव होने के नाते हमारा सर्वप्रथम कर्तव्य है कि जिस धरा पर हम निवास करते हैं, उसकी सुरक्षा करें, तभी विकास को सही ढंग से परिभाषित किया जा सकेगा

पर्यावरण संरक्षण एवं संवर्धन की आवश्यकता इसलिए है क्योंकि विकास के नाम पर प्रकृति के मूलस्वरूप से ही ज्ञानवान समाज खिलवाड़ कर रहा है अर्थात `जिस थाली में खाना, उसी में छेद करने` की कहावत चरितार्थ हो रही है।

धरती का बढ़ता तापमान, ग्लोबल वार्मिंग, पशु-पक्षियो, जीव-जंतुओं की विलुप्त होती प्रजातियां, प्रदूषित होती नदियां, सरोवर, ताल -तलैयां, सागर-महासागर, पहाड़ों का खनन, वनों की कटाई, अत्यधिक रासायनिक पदार्थों के प्रयोग से बंजर होती मृदा, औद्योगिकीकरण के नाम पर स्थापित होने वाले कल-कारखाने और उनसे निकलने वाली जहरीली गैसों से प्रदूषित होता समस्त वायु मण्डल एवं चारों ओर फैला कूड़ा -करकट, प्लास्टिक का अतिशय उपयोग इत्यादि से पर्यावरण को क्षति पहुँच रही है।

जलवायु परिवर्तन के कारण बर्फ़ीले क्षेत्रों एवं ध्रुवीय पारिस्थितक तंत्र पर भी प्रभाव पड़ रहा है। इस हरीतिमा से आच्छादित धरा पर जब जनसंख्या कम थी तो प्रकृति का स्वरूप भी सुरक्षित था इसलिए विशेष ध्यान की आवश्यकता ही नहीं पड़ी किन्तु जनसंख्या वृद्धि एवं विकास के नाम पर प्रकृति के साथ छेड़छाड़ स्वयं मानव जाति के लिए भारी पड़ रहा है। जिसका मूल्य मनुष्य को अपने बहुमूल्य जीवन और स्वास्थ्य को खोकर चुकाना पड़ रहा है। जो सम्पूर्ण मानव जाति के लिए अत्यंत चिंता विषय है।

रे नर मुरख चेत सके तो चेत

आधुनिकता की दौड़ से निकल कर पुनः अपने मूल को पहचानने का समय है केवल एक दिन, किसी दिवस के नाम पर मनाने के लिए सभाओ का आयोजन ,भाषण, रैली नारे, पोस्टर इत्यादि से इस समस्या का निदान नहीं है। हमें स्मरण रहना चाहिए कि वैदिक कल से ही हमारे मंत्रद्रष्टा ऋषि मुनीयों ने वेदों -पुराणों में सृष्टि के कल्याणनार्थ प्रकृति व पर्यावरण की महत्ता एवं उसे दूषित होने से बचाने तथा संरक्षण -संवर्धनके लिए अनेक सिद्धांत व नियम बनाए और उनका पालन भी किया।

विभिन्न व्याधियों एवं उससे रक्षा और उपचार हेतु स्वास्थ्य के प्रति प्रकृति में उपस्थित जड़ी-बूटियों, पेड़-पौधों से औषधियों को तैयार करने हेतु प्रकृति की उपासना एवं सुरक्षा भी की। ’क्षिति, जल,पावक, गगन, समीरा’ यही प्रकृति है। इन्ही तत्वों को देवतुल्य मानते हुए इनकी किसी न किसी रूप में पूजन-अर्चन भी किए जाने की परंपरा आदिकाल से चली आ रही है।

मनुष्य को सदैव स्मरण होना चाहिए कि इस पृथ्वी पर जितना अधिकार उसका है, उतना ही सभी प्राणियों का है अतः सामंजस्य बनाकर कर्म करना होगा। वायु, जल, ध्वनि, खाद्य, मिट्टी एवं सम्पूर्ण सम्पदा के संरक्षण इत्यादि को वेदों में पर्यावरण को वर्णित किया गया है।

विभिन्न स्वरूपों वाली जैसे काली, पीली, भूरी, लाल मिट्टी वाली भूमि को देवी तुल्य एवं माता माना गया है। “माता भूमिः पुत्रो अहं पृथिव्याः पर्जन्यः पिता स उ नः पिपर्तु॥ (अथर्ववेद 12कांड,सूक्त1,12ऋचा) अर्थात यह भूमि हमारी माता है और हम सब इसके पुत्र हैं।’पर्जन्य’अर्थात मेघ हमारे पिता हैं और ये दोनों मिलकर हमारा पालन करते हैं।

वायु की शुद्धता एवं महत्व को वेदों को वर्णित किया है सभी प्राणियों के लिए स्वच्छ वायु और वातावरण अतिआवश्यक है। बिना वायु के किसी जीव को एक क्षण जीवित रहना असम्भव है। वायु को दिव्यशक्ति संपन्न, रूपहीन एवं अनुमेय बताते हुए समस्त प्राणीजगत को बीज रूप बताया गया है हजारों वर्ष पूर्व ही हमारे मनीषियों को ज्ञात था कि वायुमंडल, वायु समूहों (गैसों) का समूह है। जिनकी भिन्न प्रवृति (गुण-अवगुण) है।

वायु भी दो प्रकार की होती है पहली शुद्ध वायु जो श्वसन योग्य है अर्थात प्राणवायु, जिसे आधुनिक वैज्ञानिक भाषा में ऑक्सीजन कहा जाता है । शुद्ध वायु औषधि समान होती है। दूसरी दूषित वायु। मानव शरीर की रक्तवाहिनियों में प्रवाहित रक्त का दबाव, धमनियां-शिराएं वायुमंडलीय दबाव द्वारा ही सन्तुलित होती है। हमारे ऋषि-मुनि सदैव जप-तप एवं यज्ञ,अनुष्ठान मे रत रहते थे ताकि जिस वायुमण्डल में विचरण करते हैं उसका शुद्धिकरण होता रहे। यज्ञों द्वारा समस्त मानव जाति को वायु की शुद्धता महत्व समझाया।

“यस्यां वेदिं परिगृह्नन्ति भुम्यां यस्यां यज्ञं तन्वते विश्वकर्मणा:” (अथर्ववेद 12.1.13)
अर्थात भूमि पर हम मनुष्य यज्ञवेदियों का निर्माण कर यज्ञों का विस्तार करने वाले बनें।

वैज्ञानिकों ने भी यज्ञ की उपयोगिता को स्वीकारा है। क्योंकि यज्ञ कुंड की अग्नि में जो हवन सामग्री घी, गुड़ डालने से ऑक्सीजन का निर्माण होता है तथा आम की लकड़ियों से फार्मिक एल्डिहाइड नामक गैस उत्पन्न होती है जो हानिकारक जीवाणुओं को नष्ट करती है।

जल सम्पूर्ण सृष्टि का आधार है। मानव शरीर का लगभग तीन चौथाई भाग जलीय अवयवों से निर्मित है। जल पीने के साथ-साथ औषधि के रूप में प्रयोग किया जाता रहा है। वेदों में तो कुछ पीने योग्य पदार्थों को जल के रूप में स्वीकार किया है। जल को समस्त रोगों की औषधि भी बताया गया है। इसलिए आदिकाल से ही ऋषियों, साधु-संतों, द्वारा जल की सुरक्षा की जाती रही है।

पीने योग्य शुद्ध जल के लिए गहरे कुएं खोदवाये जाते थे। मुनियों के आश्रम नदी-पर्वतों के समीप रहते थे। विश्व की अधिकांश सभ्यतायें नदी-घाटियों के किनारे ही विकसित हुईं। ताकि निवासियों को नदियों का स्वच्छ जल प्राप्त होता रहे और आवागमन का माध्यम भी बना रहे। वर्तमान में भी व्यापारिक, ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण नगरों की बसाहट नदियों एवं समुद्र जैसे विशाल जलीय स्रोतों के समीप ही है।

इस प्रकार प्रकृति प्रत्येक तत्वों की उपयोगिता तथा महत्व से लेकर इसके संरक्षण एवं संवर्धन तक का तर्क पूर्ण विवेचन, अन्वेषण हमारे ऋषियों-मुनियों ने वेदों में किया ताकि धरती सदैव अपनी अपार संपदा के साथ पुष्पित पल्लवित होती रहे।और समस्त मानव जाति ,जीव-जन्तु,पशु-पक्षी सुरक्षित रहते हुए विकास कर सकें।

संयुक्त राष्ट्र द्वारा विश्व पर्यावरण दिवस मनाने का उद्देश्य भी प्रकृति की प्रत्येक इकाई को सुरक्षित करना है। इसीलिए प्रतिवर्ष एक थीम बना कर उस क्षेत्र में कार्ययोजना बनाकर क्रियान्वित किया जाता है। 1973 से एक थीम अर्थात क्षेत्र विशेष पर ध्यान देने के लिए बनाई जाने वाली कार्ययोजना ताकि समस्या का समाधान हो सके।

कड़ी से कड़ी जुड़कर श्रृंखला का निर्माण होता है। पूरे विश्व के पर्यावरण एवं उससे जुड़ी समस्याओं का एक साथ एवं एक ही तरीके से समाधान असंभव है। अतः थीम बनाकर और किसी देश को उसके अनुकूल उत्तरदायित्व सौंपा जाता है जिसे वह पूरी निष्ठा व लगन से पूर्ण करने को अग्रसर रहते हुए क्रमशः समस्याओं के निवारण का उपाय खोज कर उद्देश्य पूर्ति भी करता है।

मनुष्य विकास के नाम पर प्रकृति को अंधाधुंध क्षति पंहुचा रहा है। जब समस्या मानव निर्मित है तो समाधान भी मानव को जागरूकता के साथ करना होगा। पर्यावरण और प्रकृति की सुरक्षा, विकास कार्य को अवरुद्ध किए बिना मध्यम मार्ग का अनुसरण करते हुए करना होगा।

1.वनों को बचाना होगा। क्योकि वृक्षों को धरा का भूषण कहा गया है।अधिकाधिक वृक्षारोपण कर उन पौधों की सुरक्षा का काम भी जिम्मेदारी से करना होगा। पर्यावरण की सुरक्षा के प्रति गम्भीरता पूर्वक एकजुटता के साथ अनवरत कार्य नीतियां बनाकर उन्हें कार्यान्वित करते रहने से ही हो सकेगी।

2.जल, वायु, मृदा, ध्वनि प्रदूषण के लिए उत्तरदायी सामान्य एवं छोटा सा कारक भी बढ़कर विकराल रूप धारण कर सकता है। छोटी सी चूक हुई तो पूरा परिश्रम व्यर्थ चला जाता है। इसलिये अपनी नैतिक जिम्मेदारी मानते हुए पर्यावरण की सुरक्षा हेतु सतत प्रयास करते रहना।

3.इसके अलावा शैक्षिक कार्यक्रमों, सामूहिक स्वच्छता अभियान, पर्यावरण सुरक्षा अभियान, सांस्कृतिक गतिविधियां सोशल मीडिया अभियान, समूहों तथा संगठनों द्वारा पर्यावरण सरंक्षण व संवर्धन के किये गए कार्यों के लिए पुरस्कृत करके ऐसे छोटी-छोटी इकाइयों को जोड़कर ‘हमारी प्रकृति-हमारा पर्यावरण और हमारा दायित्व“ सिद्धांत पर कार्य करके ही निश्चित ही सफलता मिलेगी।

पर्यावरण प्रदूषण पर स्टॉक होम (स्वीडन) में पहला सम्मेलन आयोजित किया गया था। जिसमे 119 देशों ने हिस्सा लिया और एक ही पृथ्वी का सिद्धांत मान्य किया गया। संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा पर्यावरण के संरक्षण एवं संतुलन को अति- आवश्यक मानते हुए लोगों को जागरूक करने के उद्देश्य से विश्व पर्यावरण दिवस मनाने की घोषणा 1972 में हुई थी। 5 जून से16 जून तक मानव पर्यावरण पर शुरू हुए सम्मेलन संयुक्त राष्ट्र आमसभा और संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम द्वारा कुछ प्रभावकारी अभियानों को चलाने हेतु विश्व पर्यावरण दिवस की स्थापना हुई। इस कारण 5 जून को ही इसे मनाया जाता है। इसी कार्यक्रम में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) का जन्म हुआ।

पर्यावरण के प्रति जागरूकता फैलाने वाला यह वैश्विक मंच है। जिसे विश्व भर में मनाया जाता है। प्रति वर्ष एक प्रभावशाली स्लोगन को शामिल किया जाता है, जो थीम के अनुरूप होता है। वर्ष 2024 की थीम का केंद्र बिंदु ”हमारी भूमि। हमारा भविष्य। हम पुनर्स्थापना पीढ़ी हैं “(Our land, Our future. We are Generation Restoration)” नारे के अंतर्गत भूमि पुनरुद्धार,मरुस्थलीकरण और सूखे से निपटने की क्षमता पर केंद्रित है। इसका मेज़बान सऊदीअरब है।

 

लेखिका साहित्यकार हैं एवं समसामयिक विषयों पर निरंतर लेखनी चलाती हैं।

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