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सामाजिक समरसता और राष्ट्रभाव का प्रतीक तीर्थयात्राएं

इस महाकुंभ में पचास करोड़ से अधिक लोगों ने डुबकी लगा चुके हैं। सबने एक दूसरे का कंधा पकड़कर, एक दूसरे का सहयोग करके डुबकी लगाई। किसी ने किसी से जाति नहीं पूछी, अमीरी और गरीबी का भेद नहीं था, अधिकारी और सामान्य का भी भेद न था। सबकी एक ही पहचान “सनातनी हिन्दू”।

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एक राष्ट्रभक्त आर्य संन्यासी स्वामी श्रद्धानंद का बलिदान

आर्यसमाज के प्रखर वेदज्ञ वक्ता, उच्चकोटि के अधिवक्ता, ओजस्वी वक्ता, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और क्राँतिकारियों की एक पूरी पीढ़ी तैयार

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आर्यावर्त का द्वार द्वारका और श्रीकृष्ण मिथकीय नहीं

द्वारका 3102 ईसा पूर्व समुद्र के डूब में आ गई। द्वापर युग का अंत और कलियुग का प्रारंभ हुआ इस दौरान यह प्राकृतिक घटना घटी। श्रीमद्भागवत पुराण व अन्य ग्रंथों में इसका उल्लेख किया गया है। सूर्य सिद्धांत के अनुसार कलियुग 18 फरवरी 3102 ईसा पूर्व की मध्य रात्रि से शुरू हुआ। द्वापरयुग से कलियुग में पृथ्वी में प्रवेश किया

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