पंकज शर्मा : घुम्मकड़ी से ज्ञान और अनुभव दोनों ही मिलेंगे।
1 – आप अपनी शिक्षा दीक्षा, अपने बचपन का शहर एवं बचपन के जीवन के विषय में पाठकों को बताएं कि वह समय कैसा था?
आपके पहले ही प्रश्न “बचपन” ने पता नहीं यादों की किस हसीन दुनिया में पंहुचा दिया। गाँव खेत, ढोर-डांगर, मेले-झूले, गुब्बारे-बाजे, गुल्ली-डंडा, कंचे-पतंग, नाना नानी, अम्मा-बाबा, मामा-मौसी, भाई-बहन, यार-दोस्त, कालू-पीलू-नीलू, चंगु-मंगू के साथ साइकिल के पुराने टायर को लकड़ी से पेलता हुआ एक बच्चा, कभी खाट पर लेटे हुए रात को बड़े-बड़े तारों को गिनता, तो लालटेन में कहानियां सुनता वो बच्चा और न जाने क्या क्या, बहुत कुछ याद आने लगा।
जी हाँ ऐसा ही था, आप हम सबकी तरह मेरा भी बचपन, अपनेपन से लबालब, मस्ती से लबरेज, रोने-हँसने से भरपूर, बड़ों के डर और सम्मान के साथ साथ आज़ादी का अहसास लिए हुए, जीवन के वो ऐसे पल लौटकर न आने के लिए अनेको यादें और सीख दे गए।
मेरा जन्म उत्तर प्रदेश के एक छोटे से गाँव के एक संपन्न एवं संयुक्त परिवार में हुआ। अपनी पीढ़ी में खानदान का पहला चश्म-ओ-चिराग रहा। बाकी मेरा बचपन शुरू से अलग-अलग जगह पर बीता। छुटपन के एक दो साल गाँव में, फिर मेरठ में मेरे सबसे प्रिय अम्मा-बाबा जी यानि मेरे पिता जी के मौसा जी के सानिध्य में फिर कुछ साल और शुरुवाती शिक्षा सहारनपुर में, फिर उसके बाद काफी साल ताऊ जी ताई जी के साथ हरियाणा के प्राचीन इंडस्ट्रियल शहर जगाधरी में पला बढ़ा और १२ वीं वही से हरियाणा बोर्ड से पास की। स्नातक किया यमुनानगर के खालसा कॉलेज से, वो भी टूरिज्म एंड ट्रेवल मैनेजमेंट से। ये डिग्री लेने वाला हमारा यूनिवर्सिटी का पहला ही बैच था और फिर उसी डिग्री के सहारे दिल्ली पहुंच गया। फिर १५-१६ साल वहीँ और आसपास रहकर विभिन्न क्षेत्रो जैसे कि ट्रेड-फेयर, ट्रेवल, होटल, ऑफिस जॉब, फार्मा, बैंकिंग एवं इन्श्योरेंस और इंडस्ट्रियल मार्केटिंग के क्षेत्रो में जीविकोपार्जन के साथ-साथ नए-नए और अच्छे-बुरे अनुभव किये।
2 – वर्तमान में आप क्या करते हैं एवं परिवार में कौन-कौन हैं?
बाकी परिवार में मम्मी-पापा, धर्मपत्नी जी जो कि वकालत और अध्यापन में रही है लेकिन आजकल हमारे हमारे छोटे साहब रुद्राक्ष के बचपन को संवारने में घर पर ही व्यस्त है। बाकी मुझसे छोटी दो बहने अपने शादीशुदा जीवन मे खुशहाली से व्यस्त है।
3 – घूमने की रुचि आपके भीतर कहाँ से जागृत हुई?@ हा हा हा ..”घूमने के रूचि” ये तो बड़ा ही रोचक सवाल है। अब जबकि आपको विदित हो ही गया कि कैसे बचपन से लेकर आजतक जीवन ही अलग अलग गांव, शहरों, महानगरों और राज्यों में गुजरा, इसके अलावा बचपन से ही रिश्तेदारियों में आना-जाना, बाकी आस-पास के पहाड़ और मंदिर जैसे नाहन, सराहन, पौंटा साहिब, रेणुका झील, चौरासी घंटो वाली माँ त्रिलोकपुरी मंदिर, शाकुम्बरी देवी और कुछ कुछ धूमिल यादों के शहर और मेले बचपन के शुरुवाती सालों से ही घूमते-फिरते रहे। तो लगता है नहीं कि ये रूचि कभी सोई भी थी कि जागृत हो पाती। ये तो वो कहते है न कि स्वयंभू है।
4 – किस तरह की घुमक्कड़ी आप पसंद करते हैं, ट्रेकिंग एवं रोमांचक खेलों भी क्या सम्मिलित हैं, कठिनाइयाँ भी बताएँ ?
@ हम्म्म! किस तरह कि घुमक्क्ड़ी? सच कहूं तो मेरे लिए तो घुमक्कड़ी मतलब घुमक्क्ड़ी ही है जब जहाँ जैसा मौका और माहौल हो उसी का आनंद ले लेता हूँ फिर चाहे वो कोई ऐतिहासिक समारक हो, धार्मिक स्थल हो, छोटा सा गांव या फिर बड़ा सा शहर, कोई नदी या किनारा या फिर हिमायल के रमणीक पहाड़ो का ट्रेक सबका अपना ही अलग मज़ा और अनुभव होता है अमूमन मुझे भीड़ वाली जगह जाना कतई पसंद नहीं। ज्यादातर पहाड़ों में अनछुए और अपनी वात्विकता संजोए शांत जगह मुझे ज्यादा पसंद है, जहाँ मैं खुद से प्रकृति के रूबरू हो सकूँ। ट्रेकिंग, हाईकिंग, जंगल सफारी, राफ्टिंग, साइकिलिंग, लाँग ड्राईव, ये सब भी करने में खूब मज़ा आता है। लेकिन इन सबसे जायदा मुझे उत्तराखंड के पहाड़ों में लोगो के साथ उनकी दिनचर्या, उनके खेल, उनके सांस्कृतिक कार्यकम और वहां के बच्चो के साथ बतियाने और और उनके सुख दुःख साझा करने में ज्यादा आनंद कि प्राप्ति होती है।
यह सब करते हुए जब उनकी कठिनायों के रूबरू होता हूँ तो एहसास होता है कि नियति हम पर बहुत मेहरबान है और उसी से एक नया जोश फिर से जीवन में संचारित होने लगता है।
रही कठिनाइयों की बात, तो घुमक्क्ड़ी में कठिनाइयां व्यक्ति विशेष पर आधारित होती है किन्तु फिर भी एक सामान्य सी कठिनाई जो मुझे सबसे ज्यादा महसूस होती है कि मैं पक्के वाला शाकाहारी हूँ, सो बहुत सी जगह सभी तरह का खाना-पीना एक ही जगह बनता और खिलाया जाता है तब।
बाकी अन्य कठिनाईंयों से जुझते हुए जो यात्रा समूर्ण होती वही तो असली घुमक्क्ड़ी का आनंद देती है सो उन्हें बने रहने दीजिये और उनका आनंद लेते रहिये।
5 – उस यात्रा के बारे में बताएं जहाँ आप पहली बार घूमने गए और क्या अनुभव रहा?
@ आह! पहली बार.. सही से याद नहीं पड़ता, घूमना फिरना अलग रहा लेकिन फिर भी मैं आपको अपनी एक यात्रा के बारे में बताना चाहूंगा कि सही से याद नहीं शायद 1990 या 91 कि बात है जब मैं पहली बार जगाधरी शहर से हरिद्वार-नीलकंठ महादेव अपने गली के कुछ पाँच छ: लोगों के साथ कावड़ लेने गया था मुझे आज भी याद हो उठता है वो दिन कैसे सब हमारे गली और आस पास के मोहल्ले के लोग हमें बस स्टैंड तक छोड़ने आये थे। आज से लगभग पच्चीस छब्बीस साल पहले क्या जमाना रहा होगा सिर्फ कुछ लाख लोग ही हरिद्वार कावड़ लेने आते थे और वो भी बड़े बड़े नियम कानूनों के साथ, यहाँ नहीं बैठना वहां नहीं खाना, सुबह शाम नहाना पूजा आरती, पूरे रास्ते इक्का दुक्का मंदिर के अलावा कोई कैंप भी नहीं, कोई रोड नहीं रूकती थी।
हम धुप में तपते, बारिश में भीगते चुपचाप बोल बम करते पवित्र गंगाजल की गरिमा को बनाये अपने अपने गंतव्य की और बढ़ते रहते थे। न उस ज़माने में कोई गूगल मैप, न इंटरनेट और तो और यहाँ तक की मोबाइल फोन भी नहीं हुआ करते थे।
मुझे आज भी याद है गागलहेड़ी के पास एक मंदिर में हम शाम को पहुंचे। किसी को कोई खबर नहीं और हमने मिलकर वहां नलके से पानी भरकर खूब धोया साफ सफाई करी। इसी की खबर आस-पास लगी तो लोग आने लगे और सबने खूब साथ दिया। भजन कीर्तन शुरू हो गया और कुछ लोग जबरदस्ती अपने अपने घर से दुध केले लाकर हमसे आग्रह करने लगे। सच में वो निश्छलता अब कहीं खो गयी और बाज़ारीकरण ने इस कावड़ के पवित्र उत्सव को अपने पाश में ले लिया है !
अनुभव बस यही की उस यात्रा में मुझे 103 डिग्री बुखार रहा। लेकिन मैं फिर भी बाकी साथियों के साथ और बाकी साथी मेरे साथ हिम्मत बढ़ाते चलते रहे। उन परिस्थतियों में मैंने शिवजी और धर्म से लगाव के साथ साथ टीम मैनेजमेंट तो सीखा ही सीखा साथ साथ ये भी सीखा की मानसिक रूप से सशक्त होकर ओर अनुशासन में रहकर कैसी भी परिस्थिति से आसानी से पार पाया जा सकता है। सो भोलेनाथ की उसी कृपा की बदौलत ओर अनुभव के साथ जीवन यात्रा और घुमक्क्ड़ी दोनों आगे बढ़ती रही।
6 – घुमक्कड़ी के दौरान आप परिवार एवं अपने शौक के बीच किस तरह सामंजस्य बिठाते हैं?
@ बड़ा ही महत्वपूर्ण प्रश्न पूछा है आपने, आजकल के सोशल मीडिया के दौर में अक्सर लोग हम आप जैसे हो देखकर यही सोचते है की बस ये तो घूमता ही रहता है, लेकिन सिक्के का दूसरा पहलु सभी के साथ होता है। सो मैं तो यही कहना चाहूंगा की जीवन जीना ही स्वयं में एक सामंजस्य है और घुमक्क्ड़ी या शौक के लिए सिर्फ पारिवारिक ही नहीं नौकरी और व्यवसाय आदि सभी चीजों के साथ सामंजस्य बनाना पडता है। मेरा मानना है जब जहाँ हो तब सिर्फ वहीँ का सोचो और जिम्मेदारी से अपने कर्तव्य का निर्वाह करते रहो तो लोग और परिवार अपने आप आपको आपके शौक और घुमक्क्ड़ी के लिए समय और सुविधा दोनों देते रहेंगे। बाकी मेरे परिवार में बचपन से आज़ाद माहौल रहा है। जब मैं बहुत छोटा था तभी से मुझे घरेलू जिम्मेदारी ओर अन्य कारणों से घर से बाहर जाने और सीखने के मौके मिलते रहे और मैंने उन अवसरों और विश्वास का कभी नाजायज फायदा नहीं उठाया, इसी तरह सामंजस्य बनता चला गया। जो आजतक कायम है।
7 – आपकी अन्य रुचियों के विषय में बताइए?
@ अन्य रुचियों में मुझे फोटोग्राफी सबसे ज्यादा पसंद है और ये घुमक्कड़ी के पलों को संजोकर कर रखने का सबसे अच्छा माध्यम है जब जब पुरानी फोटो देखता हूँ वो पल एक दम जीवंत हो उठते है मानो आजकल की ही बात हो।
इसका दूसरा सबसे अच्छा पहलु ये है कि ये मुझे लोगों, संस्कृति और प्रकति से जोड़े रखती है। जहाँ भी सुन्दर नज़ारे, दिलचस्प लोग उनके रीतिरिवाज, रंग-रूप, मौसम और हसीन पल मिलते है उन्हें दोबारा जीने के लिए अपने कैमरे में कैद कर लेता हूँ।
इसी शौक कि वजह से मैंने हरिद्वार में अकेलेपन से तंग आकर एक दिन फेसबुक पर “हरिद्वार फोटोग्राफी क्लब” बनाया और उसी कि बदौलत इस अनजान शहर में कोई शाम अब बिना दोस्तों के नहीं गुजरती। हमारे इस क्लब में समाज के सभी तरह के लोग आज जुड़े है। उसमे महिलाएँ, युवा, बुजुर्ग, नौकरी पेशा, बिजनसमैन के साथ-साथ, कई नामी गिरामी सीनियर फोटोग्राफर है, जिनके कार्य कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पत्रिकाओं में छप चुके है। इसी क्रम में कई वर्कशॉप, फोटो प्रदर्शनी में भी भाग लिया है और गलती से मिस्टेक कहो या सौभाग्य से कई मोको पर मेरी फोटो भी TOI जैसे अखबार में छप चुकी है। इसी अक्टूबर में इस ग्रुप कि पांचवी वर्षगांठ भी आने वाली है।
बाकी रुचियां जैसे कुछ न कुछ पढ़ते रहना और हाँ लिखने का चोर हूँ और इसी वजह से २०११ में शुरू किया मेरा ब्लॉग “घुमक्क्ड हूँ यारों” आज कई सालों से मेरी राह देख रहा है। लोगों की फंसी में टांग अटकाना, ये भी मेरी खास रुचियों में शामिल है।
8 – घुमक्कड़ी (देशाटन, तीर्थाटन, पर्यटन) को जीवन के लिए आवश्यक क्यों माना जाता है?
@ घुमक्कड़ी जीवन के लिए आवश्यक ही नहीं अपितु मैँ तो यही कहूंगा कि “जीवन स्वयं एक घुमक्क्ड़ी है” जो बचपन से लेकर बुढ़ापे तक लगातार चलती रहती है, कभी नहीं रुकती और इसी निरंतर चलने के प्रक्रिया का अगर भरपूर आनंद लेना है तो घूमो और जितना हो सके उतना घूमो। देशाटन, तीर्थाटन, पर्यटन जो भी नाम दो लेकिन घूमो, यही जीवन है।
बाकी स्थान विशेष कि घुमक्क्ड़ी हमें यही सिखाती है कि हम चेतन है, जड़ नहीं। इसलिए जो भी इस संसार में विद्यमान है अपनी चेतना से उसका आनंद लो। घुम्मकड़ी से ज्ञान और अनुभव दोनों ही मिलेंगे जो व्यक्तित्व को निखार जीवन के संघर्ष को आसान बना देंगे।
9 – आपकी सबसे रोमांचक यात्रा कौन सी थी, अभी तक कहाँ कहाँ की यात्राएँ की और उन यात्राओं से क्या सीखने मिला?
@ इस बात से तो आप भी सहमत होंगे, वो यात्रा ही क्या जिसमे कुछ रोमांच न हो और कुछ सीखाकर न जाए। रही मेरी एक रोमांचक यात्रा कि बात तो ऐसे तो कई सारी यादें है, पर एक यात्रा जो आज भी याद आ जाये तो खुद पर यकीं नहीं होता और पूरा याद भी नहीं आता कि कैसे पूरी हुयी। एक दम किसी बॉलीवुड फिल्म स्टाइल की कहानी जैसी।
कॉलेज खतम होने के कुछ महीनों बाद एक परम मित्र अनुज (यानी अन्नू बाबू ) जिन्होंने मेरा ब्लॉग पढ़ा है वो इनसे अच्छे से परिचित होंगे। उन साहब का चंडीगढ़ में MBA के एंट्रेंस एग्जाम में जाना था। सो उन्होंने मुझे और हमारे तीसरे साथी सचिन को साथ में चंडीगढ़ चलने को कहा, तो हमने उसे पैसे नही है कहकर मना कर दिया। लेकिन उसके जाने के दो तीन घंटे के बाद में पता नही कौन से मोहपाश मैँ और सचिन चंडीगढ़ की बस में बैठे जा रहे थे और अनुज से भी पहले चंडीगढ़ में नानी जी (अनुज की) के यहाँ पहुंच गए और उसके बाद अनुज के एग्जाम देने और हमारे चंडीगढ़ घूमने के पता नहीं कैसे हम तीनो लोग बिना बताये शिमला घूम आये। वो भी सिर्फ 282 रूपये में॥ बस से लेकर डलज स्टाइल में टॉय ट्रैन पकड़ने और छूटने के चक्कर में। रुकने के लिए गुरूद्वारे से लेकर होटल की डोरमेट्री तक और होटल में खाने के टाइम होटल वाले का चिढ़कर रोटी पर रोटी खिलाना और भी बहुत से ऐसी ही दिलचस्प किस्से कभी माल रोड की शॉपिंग, कभी जाखू हिल पर फोटोग्राफी, ट्रैन में वापसी में लोगों के टिफिन खाने से लेकर, अम्बाला से जगाधरी बस से लौटकर आने और घर आकर सच में थप्पड़ खाने तक, बहुत सी ऐसी मजेदार यादें है। समय और शब्द दोनों की सीमा पार हो जायेगी अगर लिखने बैठा तो। (इस पुरे ट्रिप पर एक ही फोटो खींची थी वो भी ऊपर झाखू हिल पर जो लोकल फोटोग्राफर ने खींच कर घर पर डाक से भेजा था) इन सब यादों को दोबारा से जीवित करने के लिए आपको बहुत बहुत धन्यवाद।
श्रीमान जी आप सब जैसे महान घुमक्कड़ों की तुलना में मैं बहुत ही कम घूमता हूँ, सो दक्षिण भारत और नार्थ ईस्ट को छोड़कर अमूमन बाकी सभी राज्य थोड़ा बहुत घूम चूका हूँ। सड़क यात्रा, रेल यात्रा, हवाई यात्रा के साथ साथ एक बार समुद्री यात्रा का आनंद भी एलिफेंटा केव्स जाते-आते समय लिया था। बाकी एक बार साइकिल से गंगोत्री की यात्रा भी जीवन भर याद रहेगी, छोटे मोटे ट्रैक में गोमुख, हर की दून, देवरियाताल-चंद्रशिला, मध्यमहेश्वर आदि। अलीबाग के सुनसान शानदार समुद्री तट से लेकर शिवखोड़ी जैसी एकांत स्थल, इलाहबाद के संगम से लेकर अमृतसर के पवित्र स्वर्ण मंदिर और इसी घुमक्क्ड़ी की वजह से बना अपना देशभर में फैला शानदार परिवार “घुमक्कड़ी दिल से ” के ओरछा महामिलन के आनंद में घूमने के बाद जो सिखने को मिला वो अब जीवन का फलसफा बन गया है और वो यही है कि
अंदाज़ कुछ अलग हैं मेरे सोचने का,
सब को मंजिल का शौक है और मुझे रास्तों का।
10 – नये घुमक्कड़ों के लिए आपका क्या संदेश हैं?
@ सर! सौभाग्य से आपने ये मौका दिया है सो सन्देश देने कि तो मेरी हैसियत नहीं है। हालांकि मैँ नये क्या, नये और पुराने सभी तरह के घुमक्कड़ों से निम्न निवेदन करूँगा कि
आप लोग खूब जी भरकर घूमो, जब भी मौका लगे बस।
घूमो …लेकिन ….. कचरा सड़को या जंगलो में न फेंको।
घूमो …लेकिन ….. इमारतों और दीवारों पर न लिखो न थूको।
घूमो …लेकिन …..जहाँ भी जाओ पानी और लाइट बचा॥
घूमो …लेकिन …..महिलाओ, लड़कियों और संस्कृति कि इज्जत करो।
घूमो …लेकिन …..ट्रैफिक रूल्स का पालन करो और एम्बुलेंस को रास्ता दो।
और अंत में, घूमो लेकिन जहाँ भी जाओ वहां के नियम कानून, परम्परा और व्यवस्था को बनाये रखो। आपको सच में इज्जत और आनंद दोनों कि प्राप्ति होगी।
मेरी शुभकामना है कि आप सबकी हर यात्रा सुखद एवं सफल रहे, धन्यवाद।
वाह…पंकज जी अंत मे दी सीख बहुत उपयोगी है।
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बहुत सुंदर विचार पंकज भाई ।
चलिये 8 nov.को हरिद्वार आना है मुलाकात हो जाये तो बढिया ।
बहुत कुछ जानने मिलता है भाई आपसे
पंकज भाई आपके जिंदगी के बारे में जानकर काफी अच्छा लगा ।ललित सर को धन्यवाद कि घुमक्कड़ जंक्शन जैसी सीरीज शुरू किया जिससे आप जैसे लोगों के बारे में जानकारी मिलती है।
@Gh – Pankaj Sharma भाई जी आपके बारे में लगता था बहुत जानने लगा हूँ लेकिन ललित जी के इस प्रयास के माध्यम से बहुत कुछ नया जानने को मिला और लगा अभी बहुत कुछ और नया जानने को रह गया है ?
मज़ा आ गया पंकज भाई जी ? से
बहुत बढ़िया पंकज भाई आपसे जो मुलाकात हरिद्वार में हुई थी वो जिंदगी भर याद रहेगी और गुरुदेव ललित शर्मा जी का भी शुक्रिया जिनकी वजह से आप जैसे महान घुमक्कडों के बारे में जानने का अवसर मिलता है
बहुत बढ़िया पंकज भाई . कभी फोटोग्राफी के दो चार गुर हमें भी सिखा दो .