तीन चीनियों पर हमारा एक जवान भारी पडता है : एक सैनिक की जुबानी

मुझे गर्व है भारतीय सेना की अपनी उस टीम पर जिसका कई साल अभिन्न अंग रहा हूँ, जिसमें समस्त रेजिमेंटों से चुनकर आई उच्च तुंगता क्षेत्र मे माईनस पचास से उपर युद्ध कौशल व अत्यधिक ऊंचाई वाले क्षेत्र मे जिसमें युद्ध कला मे निपुर्ण व दक्ष अधिकारी व जवान शामिल थे।

शांति काल मे जहां हमारी टीम देश- विदेश के दुर्गम शिखरों पर तिरंगा लहराकर देश को गौरवान्वित करती है, वहीं आपात काल मे ये टीम बर्फीले ईलाके मे अपनी-अपनी फार्मेशन मे अग्रिम चौकियों पर मोर्चा संभालती है।

हमारी इस टीम से मै समय से पहले ही सेवानिवृत्त हो गया बाकि मेरे समस्त साथी अधिकारी आज भी देश की सरहदों पर तैनात हैं। मेरे टीम लीडर व देश के एक मात्र ऐसे पर्वतारोही, जिन्होंने अंटार्कटिका सहित सातों महाद्वीपों के सर्वोच्च शिखरों पर तिरंगा लहराते हुए तीन बार एवरेस्ट पर तिरंगा फहराने का अनोखा रिकार्ड बनाया।

आज लद्दाख मे चीनियों को अग्रिम मोर्चे पर अपनी कमांडो बटालियन का नेतृत्व करते हुए कडी टक्कर दे रहे हैं, वहीं इनमें से अधिकतर साथी उत्तरी पूर्वी लद्दाख व अरुणाचल व उत्तराखंड के अलग अलग अग्रिम मोर्चे पर तैनात हैं। मैं भगवान बद्री विशाल व पर्वतराज हिमालय से आपकी सकुशलता व आपके संघर्ष पथ को प्रशस्त करने की कामना करता हूँ।

साल 2015 अगस्त में मुझे भी डैमचौक व चुमार सैक्टर मे चीनियों पर हाथ साफ करने का अवसर मिला था। जब चीनियों ने हमारे क्षेत्र मे घुसपैठ की तो प्रारंभिक बैनर ड्रिल (जिसमें बैनर पर हिंदी चीनी भाई-भाई व अन्य उदघोष लिखे होते है) के बाद भी जब चीन नही माना तो हमारी पूरी फौज ने उसे कडी टक्कर दी। आपसी संघर्ष भी खूब हुआ।

शुरु के 14 दिन तो हम खुले आसमान के नीचे ही चीनियों को छकाते रहे। बंदूकों की नाल दोनों ओर से नीचे की तरफ थी, लेकिन बाक्सिंग, खप्पड मार बराबर जारी रहती थी। हम एक बोतल पानी मे पूरा दिन निकालते थे। 14 दिन बाद हैलीकाप्टर से सुविधा मिलनी प्रारंभ हुई और हमने डैमचौक की खून को जमा देने वाली ठंड मे चीनियों को नानी याद दिलाई।

दोस्तों यहां झूठी तारीफ नहीं बल्कि सच्चाई जाहिर कर रहा हूं, तीन चीनियों पर हमारा एक जवान भारी पडता था। वे धोखे मे हमारी आंखों पर मिर्ची झोंक देते थे लेकिन जिस पर भी मुक्का पडा वो अगले दिन नही दिखता था। हम सब साथी पहले ही अपना लक्ष्य ढूंढ लेते थे कि फलां-फलां को मै देखूंगा और तू अपना देखना। डील-डौल से भारतीय जवान जो हजारों मे एक चयन होकर भारतीय सेना का हिस्सा बनते हैं वे चीनियों पर भारी पडते हैं।

वहीं चीन पकड-पकड कर जबरदस्ती पीपुल्स लिब्रेशन आर्मी चाईना में भरती करते हैं वे जवान सच मे बच्चों जैसे लगते थे। जिन्हे चीन ने जबरदस्ती अपनी फौज मे भेजा था। कई बार तरस आता था कि बच्चों को क्या पिटना, उन पर जैसे ही थप्पड पडता साला चीनी भाषा मे गुर्राकर दूर गिरकर भाग जाता।

लेकिन कहावत है न सांप का बच्चा जहरीला ही होगा, जहां भी मिले कुचल दो और चीनियों को पीटते वक्त हमे ना घर की याद आती थी ना अपनी परवाह, सिर्फ तिरंगे के खातिर हमारे सभी साथी सर्वस्व न्योच्छावर को तत्पर होते थे। हमारी टीम का प्रत्येक सदस्य अपनी कार्य कौशलता व युद्धकला मे विशेष योगदान के लिये थल सेनाध्यक्ष के प्रशस्ति पत्र समेत राष्ट्रपति पदक से सम्मानित हैं।

चीनी सेना शारीरिक दृष्टीकोण व मौसम के अनुरुप स्वयं को ढालने मे हमारी भारतीय सेना की अपेक्षा बहुत पीछे है। जहां भारतीय जवान हर परिस्थिति मे स्वयं को ढालने मे दक्ष है वहीं चीनी बहुत ही कमजोर है।

मित्रों कल से कुछ राजनैतिक धुरंधर 16 बिहार की नियुक्ति को लेकर प्रश्न चिह्न लगा रहे है, इसलिये उन्हें स्पष्ट बताना चाहता हूँ कि भारतीय सेना की हर एक रेजिमेंट का अपना गौरवमयी इतिहास है व उसे जब जब मौका मिला उन्होंने स्वयं को श्रेष्ठ साबित किया।

भारतीय सेना का युद्ध कौशल, रणनिति, प्रशिक्षण शैली, अनुशासन व ड्रिल सब एक जैसी है और हर एक रेजिमेंट महान है तथा भारतीय सेना का अभिन्न अंग है। मुझे गर्व है भारतीय सेना की बिहार रेजिमेंट के जवानों व अधिकारियों पर जिन्होंने राष्ट्र हित मे अपना सर्वस्व त्याग किया व 43 चीनियों को मिट्टी मे मिलाते हुये सैकडों को अपंग बना दिया। मुझे गर्व है अपने उस परिवार पर जिसका 18 साल तक मैं सदस्य रहा, I proud of my Indian army जय हिंद।

(सभी फ़ोटो – सुदेश भट्ट)

सुदेश भट्ट हवलदार
(भूतपूर्व सैनिक)
उत्तराखंड, भारत