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हिंदुत्व और विकास के एजेंडे ने भाजपा को दिलाई ऐतिहासिक जीत : महाराष्ट्र चुनाव 2024

महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव 2024 में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और उसकी सहयोगी महायुति ने बड़ी जीत दर्ज की, जिसमें भाजपा ने 133 सीटों के साथ बढत बनाकर सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरकर अपनी स्थिति मजबूत की। महायुति ने शाम पांच बजे तक कुल 288 सीटों में से 231 पर बढ़त हासिल कर विजय अपनी झोली में डाल ली। जबकि विपक्षी महाविकास आघाड़ी (एमवीए) को कड़ी हार का सामना करना पड़ा।

इस चुनाव का विश्लेषण करे तो समझ आता है कि भाजपा की आक्रामक हिंदुत्व की रणनीति और ओबीसी मतदाताओं को एकजुट करने की नीति सफल रही। इसके साथ ही, भाजपा ने महिलाओं और युवाओं के लिए योजनाओं की घोषणा की, जो उनके पक्ष में रही। भाजपा की ‘लाड़की बहन योजना’ ने महिला मतदाताओं पर सकारात्मक प्रभाव डाला। पार्टी ने महिलाओं के लिए आर्थिक सहायता और रोजगार के अवसर बढ़ाने की बात कही, जो ग्रामीण क्षेत्रों में विशेष रूप से प्रभावी साबित हुई।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के नेतृत्व ने चुनावी रणनीति को प्रभावी ढंग से लागू किया। भाजपा ने अपने एजेंडे पर स्पष्टता बनाए रखी, जबकि विपक्ष इस मोर्चे पर असमंजस में दिखा तथा बुनियादी ढांचे और आर्थिक विकास के वादों ने शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में मतदाताओं को आकर्षित किया। भाजपा ने कृषि संकट, रोजगार सृजन, और किसानों के लिए योजनाओं पर ध्यान केंद्रित किया।

महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस ने भाजपा की महायुति रणनीति को कारगर बनाने में अहम भूमिका निभाई। उन्होंने ओबीसी और गैर-मराठा समुदायों के मतों को एकजुट करने की रणनीति अपनाई, जिससे भाजपा को ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में फायदा हुआ। फडणवीस ने इस बार संगठन को जमीनी स्तर पर मजबूत किया और कार्यकर्ताओं को सक्रिय रूप से चुनाव प्रचार में जोड़ा।

फडणवीस ने चुनाव प्रचार के दौरान राज्य के विभिन्न हिस्सों में व्यापक जनसभाएं कीं। उनकी छवि एक सक्षम और विकासोन्मुखी नेता के रूप में उभरी। उनका जोर भाजपा की योजनाओं, विशेष रूप से महिलाओं और किसानों के लिए लागू की गई नीतियों, पर रहा। मराठा आरक्षण का मुद्दा इस चुनाव में बड़ा था। फडणवीस ने यह सुनिश्चित किया कि भाजपा मराठा और ओबीसी समुदाय के बीच संतुलन बनाए रखे। उनकी संवाद क्षमता और मराठा नेताओं के साथ बातचीत ने मराठा समुदाय के एक बड़े हिस्से का विश्वास जीतने में मदद की।

“बटेंगे तो कंटेंगे” नारा भाजपा की ओर से दिया गया, जिसने विपक्षी महाविकास आघाड़ी (एमवीए) पर तीखा हमला किया। नारे के माध्यम से भाजपा ने एमवीए पर आरोप लगाया कि वह समाज में विभाजन पैदा कर रही है। “बटेंगे तो कंटेंगे” का अर्थ था कि समाज में बंटवारे की राजनीति को अस्वीकार करना, जिससे भाजपा को मतदाताओं के बीच एकजुटता का संदेश देने में मदद मिली। नारा ग्रामीण क्षेत्रों और ओबीसी समुदायों में भाजपा के पक्ष में प्रभावी साबित हुआ। इसने विपक्ष पर विभाजनकारी राजनीति करने का आरोप लगाया और भाजपा की “एकजुट महाराष्ट्र” की छवि को बढ़ावा दिया। नारा भाजपा के लिए एक भावनात्मक मुद्दा बन गया, जिसने कई तटस्थ मतदाताओं को अपनी ओर खींचा।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और देवेन्द्र फडणवीस दोनों ने इस नारे का उपयोग एमवीए की आलोचना के लिए किया। उन्होंने विपक्ष को “आरक्षण के मुद्दे को भड़काने” और “समाज को बांटने” के लिए जिम्मेदार ठहराया। इससे भाजपा को हिंदुत्व और विकास के मुद्दों पर समर्थन हासिल करने में मदद मिली।

वहीं विपक्षी एमवीए में नेतृत्व की कमी और अंदरूनी मतभेदों ने मतदाताओं में भ्रम पैदा किया। कांग्रेस, शिवसेना (उद्धव गुट), और शरद पवार की एनसीपी के बीच एकता की कमी साफ दिखी। उद्धव ठाकरे का “सॉफ्ट हिंदुत्व” का रुख मतदाताओं को आकर्षित करने में असफल रहा। मुस्लिम उलैमाओं द्वारा उद्धव के पक्ष में जारी की गई मतदान की अपील ने भी हिन्दू मतदाताओं को प्रभावित किया। भाजपा के आक्रामक हिंदुत्व के मुकाबले यह कमजोर साबित हुआ।

इस चुनाव में कांग्रेस ने गठबंधन के हिस्से के रूप में चुनाव लड़ा, लेकिन पार्टी की रणनीतिक कमजोरियां, नेतृत्व का अभाव, और आंतरिक मतभेद उसके कमजोर प्रदर्शन के मुख्य कारण बने। राहुल गांधी का प्रभाव महाराष्ट्र चुनाव 2024 में इसलिए कम दिखा क्योंकि वे स्थानीय मुद्दों पर केंद्रित प्रचार नहीं कर पाए और एमवीए गठबंधन को मजबूत दिशा देने में असफल रहे।

विपक्ष के पास अपनी कमजोरी छिपाने के प्रमुख कारणों में सिर्फ़ ईव्हीएम ही होता है। इस बार भी ईव्हीएम पर आरोप लगाया जा रहा है पर इस जीत से महाराष्ट्र में भाजपा का वर्चस्व मजबूत हुआ है, जबकि विपक्ष को अपनी रणनीति पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता है। महायुति की जीत न केवल महाराष्ट्र बल्कि अन्य राज्यों में भाजपा के राजनीतिक समीकरणों को और मजबूत कर सकती है। यह चुनाव दिखाता है कि संगठित नेतृत्व और मजबूत चुनावी रणनीति कैसे निर्णायक साबित हो सकती है।

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