ब्रजभूमि का अनूठा पर्व : फूलेरा दूज
फूलरिया दूज या फ़ूलेरा दूज भारतीय संस्कृति और हिंदू परंपराओं में विशेष स्थान रखने वाला एक अद्भुत त्योहार है, जिसे मुख्य रूप से ब्रज क्षेत्र में मनाया जाता है। यह पर्व फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को आता है और इसे श्रीकृष्ण और राधा रानी के प्रेम व होली महोत्सव से जोड़ा जाता है। इस दिन को फूलों की होली के रूप में मनाया जाता है, जिसमें रंगों की बजाय केवल फूलों का प्रयोग किया जाता है। यह पर्व विशेष रूप से मथुरा, वृंदावन, बरसाना और नंदगांव में मनाया जाता है, जहां श्रीकृष्ण की लीलाओं का प्रभाव व्यापक रूप से देखने को मिलता है।
फूलरिया दूज का महत्व धार्मिक और सांस्कृतिक दोनों दृष्टियों से अत्यधिक महत्वपूर्ण है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, इस दिन भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी बाल्यावस्था में अपने सखाओं और गोपियों के साथ फूलों से होली खेली थी। चूंकि फाल्गुन मास में वृंदावन और आसपास के क्षेत्रों में फूलों की बहार होती है, इसलिए यह उत्सव प्रकृति की सुंदरता और प्रेम का प्रतीक भी बन जाता है। इस दिन श्रद्धालु मंदिरों में विशेष पूजा-अर्चना करते हैं और राधा-कृष्ण को फूलों से सजाकर भक्ति गीतों के साथ आराधना करते हैं।
ब्रज क्षेत्र के मंदिरों में इस अवसर पर भव्य आयोजन होते हैं, जहां श्रद्धालु बड़ी संख्या में एकत्रित होकर भगवान की लीलाओं का साक्षी बनते हैं। श्रीबांके बिहारी मंदिर (वृंदावन), प्रेम मंदिर, इस्कॉन मंदिर और राधारानी मंदिर (बरसाना) में इस दिन विशेष उत्सव आयोजित किए जाते हैं, जिसमें भक्तगण श्रीकृष्ण और राधा की मूर्तियों पर फूल बरसाते हैं। यह दृश्य इतना मोहक होता है कि हर कोई भक्ति और प्रेम के इस रंग में रंग जाता है।
इस पर्व की एक विशेषता यह भी है कि यह पर्यावरण संरक्षण का संदेश देता है। चूंकि इस दिन केवल फूलों का उपयोग किया जाता है, रंगों और रसायनों का नहीं, इसलिए यह पूरी तरह से प्राकृतिक और पर्यावरण के अनुकूल पर्व है। आज जब दुनिया प्रदूषण और जल संकट जैसी समस्याओं से जूझ रही है, ऐसे में फूलरिया दूज जैसा त्योहार हमें यह सिखाता है कि उत्सव भी प्रकृति के अनुरूप मनाए जा सकते हैं।
फूलरिया दूज का प्रभाव केवल ब्रज क्षेत्र तक सीमित नहीं है, बल्कि उत्तर प्रदेश, राजस्थान, गुजरात और मध्य प्रदेश के कुछ हिस्सों में भी इसे श्रद्धा और उल्लास के साथ मनाया जाता है। गुजरात और मध्य प्रदेश में कृष्ण भक्त समुदाय इसे भक्ति और प्रेम के प्रतीक के रूप में स्वीकारते हैं और इस दिन मंदिरों में विशेष आयोजन किए जाते हैं।
यह पर्व श्रीकृष्ण और राधा रानी के दिव्य प्रेम का प्रतीक होने के साथ-साथ भक्ति, सौंदर्य और आध्यात्मिकता का संदेश भी देता है। भक्तों के लिए यह दिन न केवल भगवान की लीलाओं को स्मरण करने का अवसर होता है, बल्कि प्रेम, शांति और प्रकृति के सम्मान का भी प्रतीक बन जाता है। फूलरिया दूज का यह पावन पर्व हमें सिखाता है कि आनंद और भक्ति के उत्सव को मनाने के लिए केवल सच्ची श्रद्धा और प्रेम की आवश्यकता होती है, न कि बाहरी आडंबरों की।