भारत-अमेरिका व्यापार समझौता: अंतिम दौर की वार्ता शुरू, कृषि और तेल आयात पर बनी सहमति की उम्मीद
भारत और अमेरिका के बीच व्यापार समझौते को लेकर अंतिम दौर की सीधी वार्ता शुक्रवार को वाशिंगटन में शुरू हो गई। यह वार्ता ऐसे समय में हो रही है जब 9 जुलाई की समय-सीमा नज़दीक है, जिसके बाद दोनों देशों के बीच पारस्परिक टैरिफ स्थगन समाप्त हो सकता है।
इस बीच, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने संकेत दिया है कि भारत और अमेरिका एक बड़ा व्यापार समझौता कर सकते हैं। उन्होंने कहा, “हमने हाल ही में चीन के साथ एक समझौता किया है। अब भारत के साथ भी एक बड़ा समझौता संभव है, जिससे भारत के बाज़ार खुलेंगे।”
वार्ता के दौरान सबसे बड़े विवाद के मुद्दे कृषि उत्पादों पर बाज़ार पहुंच को लेकर हैं। अमेरिका चाहता है कि भारत उसके सोया और मकई जैसे प्रमुख कृषि उत्पादों के लिए अपने बाज़ार खोले। वहीं भारत ने इन मांगों को लेकर सतर्क रुख अपनाया है, खासकर घरेलू उत्पादकों के हितों की रक्षा के लिए।
सूत्रों के मुताबिक, पिछली बैठकों में कोई बड़ी सफलता नहीं मिली थी, जिससे अब के दौर की बातचीत पर अतिरिक्त दबाव है। “यदि इस बार भी कोई समझौता नहीं हुआ, तो अमेरिका भारत पर जवाबी टैरिफ लगाने का दबाव बना सकता है,” एक अधिकारी ने बताया।
अमेरिका फिलहाल भारत द्वारा लगाए गए ऊँचे शुल्क और गैर-टैरिफ बाधाओं को लेकर भी असंतुष्ट है। हालांकि, अमेरिका के पास इस समय वैध ट्रेड प्रमोशन अथॉरिटी (TPA) नहीं है, जिससे वह कानूनी रूप से टैरिफ कम नहीं कर सकता। इससे समझौते की स्थायित्व पर सवाल खड़े हो रहे हैं।
भारत ने हाल के महीनों में अमेरिका से कच्चे तेल की खरीद में बढ़ोतरी की है, जिससे व्यापार घाटा कुछ हद तक संतुलित हो सकता है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, मार्च 2025 में भारत ने अमेरिका से कच्चे तेल का आयात 11.49 प्रतिशत बढ़ाकर 63 अरब डॉलर तक पहुँचा दिया है।
एक सरकारी नीति-पत्र में यह सुझाव भी दिया गया है कि भारत सोयाबीन तेल आयात पर कुछ रियायतें देकर अमेरिका से संतुलन बना सकता है, जिससे घरेलू उत्पादकों पर असर भी नहीं पड़ेगा और द्विपक्षीय व्यापार घाटा भी कम होगा।
रक्षा और तेल आयात जैसे क्षेत्रों में अमेरिका के साथ सहयोग बढ़ाना भारत की रणनीतिक प्राथमिकताओं में शामिल है। भारत की तेल पर निर्भरता अप्रैल 2025 में 90% तक पहुँच गई है, जिससे ऊर्जा आपूर्ति का विविधीकरण बेहद जरूरी हो गया है।
अब देखना यह होगा कि आगामी दिनों में दोनों देश किस हद तक एक-दूसरे की मांगों को मानते हैं और क्या यह व्यापार समझौता वास्तव में अमलीजामा पहन पाता है या नहीं।