धर्म की दीपिका अहिल्या माई : काव्य रचना
अहिल्या नाम सुगंधित, जन-जन करे बात।
धर्म-दीप जो जलाई, भूले नहीं वो मात॥
मालवा की रानी सुबुधि सुवासिनी।
धर्म-निष्ठ, नारी-सृष्टि की आभासिनी॥
महेश्वर नगरी पर जो राज किया।
न्याय धर्म सेवा से सबका काज किया॥
काशी विश्वनाथ का, मंदिर फिर बनवाया।
सोमनाथ से द्वारका, सबको साज सजाया॥
रामेश्वरम की यात्रा भी की फिर से।
अयोध्या में फिर बजी श्रीराम ध्वनि सिर से॥
तीर्थों पर घाट, धर्मशाला बनाई।
हर पीड़ित की पीड़ा भी खुद सुन पाई॥
नरसेवा ही नारायण, भाव यही अपनाया।
न्याय सिंहासन पर स्वयं विराज के पाया॥
न दिन देखा, न रैन की परवाह करी।
जन-जन की सेवा को माता ने चाह करी॥
राजा जैसी किंतु मां की ममता साथ।
दया धर्म न्याय पर रखा सदा हाथ॥
अहिल्या माई पूज्य हैं, हैं भारत की भवानी।
नारी के नव रूप में, उजियारी माता रानी॥
