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सड़क एवं मनुष्य का जीवन एक जैसा : मनकही

बस शब्द के चार पर्याय है बस ,वश ,बस और बस। यहां पहले बस का अर्थ पर्याप्त या काफी है

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समस्या ही समाधान की जन्मदात्री है : मनकही

मनुष्य को जीवन में इन समस्या, परेशानी, मुसीबत आदि शब्दों से सामना करना पड़ता ही है, शायद ही किसी मनुष्य

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मित्रता बंधनमुक्त स्वनिर्मित अनमोल होती है : मनकही

ॠग्वेद कहता है -समानः मन्त्रः समितिः समानी, समानं मनः, सः चित्तम् एषाम (हों विचार समान सबके, चित्त मन सब एक हों।) विचारों की समानता एवं चित्त मन के एकसार होने पर निश्छल मित्रता होती है, जिसकी कोई पार नहीं पा सकता। ऐसी मित्रता के कई उदाहरण हमें वांग्मय एवं समाज में मिलते हैं।

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जीवन और संघर्ष एक दूसरे के पूरक : मनकही

कहते हैं माल खाये गंगाराम और मार खाये मनबोध। जीवन में ऐसा भी होता है कभी-कभी। मनुष्य को न जाने

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