अपने मरे ही स्वर्ग दर्शन : मनकही
मन पछितहिएँ अवसर बीते अर्थात समय रहते कुछ नहीं किया दूसरे के भरोसे बैठे रहे और आज पछताने के सिवाय कुछ नहीं मिला। तभी तो कबीर दास जी ने कहा है–
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Read moreमन चंचल होता है, मन की गति अत्यधिक तीव्र होती है। जीवन में सुख-दुःख क्या है? मन के भाव ही
Read moreभौतिक सुख-सुविधाएं मनुष्य को तभी ख़ुशी देती हैं जब तन-मन स्वस्थ्य और जीवन सुरक्षित हो, परन्तु परिस्थितियां प्रतिकूल और प्राण
Read moreविकास के साथ दुनिया बड़ी तीव्रता से बदल रही है, गाँव से लेकर शहर तक। जहाँ हम निवास करते हैं,
Read moreजीवन में सफलता निज कार्यों पर आधारित होती है। सही समय पर किया गया उचित प्रयास सफलता की संभावना को
Read moreमनुष्य जैसे यात्रा से पूर्व सारी चीजों को समेटना प्रारंभ कर देता है। वैसे ही जीवन यात्रा समाप्त होने से पूर्व जीवन मे जो मान-सम्मान, पद, प्रतिष्ठा, ईमानदारी, सभी कुछ सहेजने का समय आ जाता है। मन में एक साध रहती है किसी के साथ अन्याय न हो। ईमानदारी से जितना बन पड़े उतना काम तो कर लें क्योंकि दो दिन का जग मेला, अब चला चली का बेरा। मनुष्य अच्छे कर्म के द्वारा ही आने वाली पीढ़ियों के समक्ष अनुकरणीय आदर्श प्रस्तुत कर सदैव याद किया जाता है।
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