सकारात्मकता ही जीवन का मूल मंत्र : मनकही

भौतिक सुख-सुविधाएं मनुष्य को तभी ख़ुशी देती हैं जब तन-मन स्वस्थ्य और जीवन सुरक्षित हो, परन्तु परिस्थितियां प्रतिकूल और प्राण संकट में हों तब सारी सुख-सुविधाएं, जो जीवन को प्रसन्नता से भर सार्थकता प्रदान करती हैं वही निर्रथक जान पड़ती हैं।

कोरोना वाइरस के प्रकोप से बढ़ती मृत्यु दर के भयावह आंकड़ों ने समस्त मानव जगत को नकारात्मकता की ओर धकेल दिया है। प्रतिदिन हजारों लोग संक्रमित हो मृत्यु को प्राप्त हो रहें हैं। जहाँ मौत अपना तांडव दिखा रही हो, ऐसे वातावरण में कोई इंसान भला कब तक अपनी सकारात्मक सोच और ऊर्जा को बचाये रहने में सफल हो पायेगा?

मनुष्यों के चेहरे से हँसी और जीवन से खुशियां छिन गई हैं। वैसे एक सच्चाई यह भी है कि इन विषम परिस्थितियों का जिम्मेदार मनुष्य स्वयं है। उसके द्वारा की गई थोड़ी सी चूक, निश्चिंतता और वायरस को मामूली समझ कर मजाक बना कर की गई लापरवाही और छोटे-छोटे किंतु अति प्रभावकारी उपायों की अवहेलना ने ही कोरोना रूपी शत्रु को पुनः दुगुनी गति से संक्रमण फैलाने का अवसर दिया है।

मनुष्य बुद्धिजीवी प्राणी है इसलिए उसे नियंत्रित करने के लिए किसी शासन-प्रशासन, नियमों की आवश्यकता नहीं, उसे स्वनियंत्रित होना चाहिये था। आत्मबल, धैर्य के साथ उसे दृढ़तापूर्वक बार-बार दी जाने वाली चेतावनी पर मल करना था।

लोगों की रोजी-रोटी और परिवार के भरण-पोषण को ध्यान में रखते हुए शासन द्वारा दी गई सुविधाओं एवं छूट की अवहेलना करके जनता-जनार्दन अहम-ब्रम्हास्मि बन कर इस प्रकार बिना मास्क और सेनेटाइजर के भीड़-भाड़ में स्वतंत्र घूमने लगे, मानो उनका जीवन पूर्ण रूपेण सुरक्षित हो गया हो परन्तु अपनी आँखों के सामने स्वजनो को तड़पते हुये मृत्यु को प्राप्त होते देखने से बड़ा दुर्भाग्य भला क्या हो सकता है।

आज धन-संपत्ति से बढ़कर, इंसान के प्राणों की रक्षा कैसे हो? यह प्रश्न चिन्ह सबके सामने है। कितनी साँसे शेष हैं? अपनों की सुरक्षा, बच्चों के सुखद भविष्य की कामना, घर-परिवार के प्रति उत्तरदायित्व को पूर्ण करने के लिए जीवन भर मनुष्य भाग-दौड़ करता रहा परन्तु ऐसा समय भी देखना पड़ेगा, ऐसी भयावह कल्पना स्वप्न में भी किसी ने की थी।

ऐसे निराशाजनक वातावरण ने समस्त मानव जाति को नकारात्मकता से भर दिया है। इन विषम परिस्थितियों में उसे अपना आत्मबल, धैर्य बनाये रखना अति आवश्यक है। कहा गया है- “हारिये न हिम्मत, बिसरिये न राम।” इसलिये शुरुआत तो करनी पड़ेगी। मनुष्य छल-कपट, रोग-शोक, लाभ-हानि इत्यादि से शारिरिक-मानसिक कष्ट जरूर पाता है परंतु हारता नही, संघर्ष करता है।

क्योंकि “जब तक है आस, तब तक है सांस” आशा या उम्मीद समाप्त होने पर ही वह हारता है। जीवन है, तभी तो समस्याएं हैं, जो मनुष्य को दुर्बल बनाती हैं परंतु उसके पास बहुत शक्तिशाली मस्तिष्क है जो दुर्बल न बनाकर उसे सबलता प्रदान करता है। जिससे जीवन मूल्यों से परिचित होकर अपने जीवन को सार्थकता प्रदान करता है।

टेलीविजन, मोबाईल, समाचार पत्रों से प्राप्त समाचारों को देख-सुन कर लोग निराश और नकारात्मक होते जा रहे हैं। इसे दूर करना अत्यंत आवश्यक हो गया है। सकारात्मक ऊर्जा से स्वयं को भरना होगा। ऐसी बातों से दूर रहें जो निराशा बढ़ाये।

अपनी रुचियों के अनुरूप गीत-संगीत, नृत्य, चित्रकला, लेखन इत्यादि बहुत सी विधाएं है उन पर ध्यान लगाएं। अच्छी पुस्तकें सदैव ही मुनष्य की सच्ची मित्र रहीं हैं, कहानियां, चुटकुले, धार्मिक पुस्तकें, धर्मग्रंथ, पढ़कर सकारात्मक बना जा सकता है। इसके अलावा हास्य से भरपूर एवं शिक्षाप्रद, धार्मिक, ऐतिहासिक, सामाजिक फिल्मों को देखें।

घर के बच्चों के साथ समय बिताएं क्योंकि बच्चे निश्छल होतें है। उनके पास समस्याएं नहीं होती, वे वर्तमान में जीते हैं। सारी समस्याएं तो बड़े होने पर होती है। इसलिए सुव्यवस्थित दिनचर्या को अपनाते हुए योग, ध्यान, व्यायाम करें। अच्छी आदतों को अपनाएं। प्रसन्न रहें क्योंकि यह भी बहुत बड़ी जिम्मेदारी है अपने प्रति।

मनुष्य से भौतिक सुख-सुविधाएं, धन-संपत्ति सब कुछ छीना जा सकता है परंतु निर्णय लेने की क्षमता नहीं छीनी जा सकती। परिस्थितियों से घबराकर कोई निर्णय न लें क्योंकि समस्याएं मनुष्य पर हावी होकर उसे नकारात्मक बनाती हैं। शान्त चित्त से चिंतन-मनन कर ही किसी निर्णय पर पहुंचें।

विचार करें कि धरती पर ऐसी समस्याएं सदैव से आती रहीं हैं और मानव जाति ने उन समस्याओं का सामना करते हुए अपने को सुरक्षित भी रखा है तभी तो हमारा अस्तित्व है। आगे भी सृष्टि इसी तरह चलती रहेगी। समस्याएं तब भी थीं आगे भी रहेगीं। इसलिए सकारात्मक सोचें, अच्छा सोचें, बड़े सपने देखें और उन्हें साकार करने के लिये पूर्ण विश्वास के साथ उस दिशा में अग्रसर रहें।

शायद ईश्वर कुछ अच्छा करना चाह रहा है, क्योंकि उसने तो मानव बनाया था, मशीनी-मानव नहीं। भौतिक सुख सुविधाओं की चाह में जाने-अनजाने में ही सही, मनुष्य अपने जीवन को क्षति पहुंचा रहा था। ईश्वरीय कृपा से आज उसे जीने का अवसर प्राप्त हो रहा। इसके लिए प्रसन्नता के साथ ईश्वर का हृदय से धन्यवाद देते हुए प्रार्थना करें और इन विषम परिस्थितियों में भी स्वयं को सकारात्मक बनाएं रखें।

“इतनी शक्ति हमें देना दाता, मन का विश्वास कमजोर हो ना।
हम चलें नेक रस्ते पे हमसे, भूल कर भी कोई भूल हो ना।”

 

आलेख

श्रीमती रेखा पाण्डेय (लिपि)
व्याख्याता हिन्दी
अम्बिकापुर, छत्तीसगढ़