सुगन्ध का जीवन में महत्व एवं प्रभाव : मनकही

माटी की महक, फ़ूलों की सुगंध से लेकर रोटी की सौंधी खुश्बू का जीवन में महत्वपूर्ण स्थान है। सम्पूर्ण प्रकृति ही सुगंधमय है। प्रकृति का कण-कण अपनी विशिष्ट संरचना, रूप-रंग, स्वाद और सुगन्ध से जाना-पहचाना जाता है। जो धरती को अद्वितीय एवं अनुपम सौंदर्य प्रदान करते हैं।

 

जब सौंदर्य और सुगन्ध का संयोग होता है तो जगत के प्राणी उस सौंदर्य और सुगन्ध से आकर्षित हो प्रत्यक्ष रूप से प्रकृति से तादात्म्य स्थापित कर उस सुगंध को अपने जीवन का हिस्सा बनाने के साथ मानसिक शांति का अनुभव करता है। सुंदरता और सुगन्ध मणिंकाँचन संयोग सौंदर्य में अप्रतिम वृद्धि कर उसे उच्च स्थान प्रदान करती है।

 

प्रकृति के साथ समस्त प्राणियों का घनिष्ठ संबंध है। शरीर की इंद्रियों पर सुगन्ध का प्रभाव पड़ने से उसके प्रति इच्छा-अनिच्छा, रुचि-अरुचि भी जागृत होती है। सुगंधित वातावरण मन-मस्तिष्क को तनाव मुक्त कर शारीरिक रूप से भी स्वस्थ एवं  प्रसन्नचित्त बनाता है। जिससे व्यक्ति की कार्यक्षमता में वृद्धि होती है।

 

हिन्दू धर्म में भी सुगंध या खुशबू का बहुत महत्व माना गया है। वह इसलिए कि सात्विक अन्न से शरीर पुष्ट होता है तो सुगंध से सूक्ष्म शरीर। यह शरीर पंच कोष वाला है। जड़, प्राण, मन, विज्ञान और आनंद। सुगंध से प्राण और मनोमय कोष पुष्ट होता है। इसलिए जिस व्यक्ति के जीवन में सुगंध नहीं उसके जीवन में शांति भी नहीं। शांति नहीं तो सुख और समृद्धि भी नहीं।

 

सुगन्ध की बात करें तो मिट्टी की सोंधी सुगन्ध सहज ही प्रत्येक प्राणी को अपनी ओर आकर्षित करने के साथ उसका स्वाद लेने की इच्छा भी जगाती है। मिट्टी के घड़े का शीतल जल पीकर प्यास तो बुझाकर मिट्टी के स्वाद से अंतरात्मा को भी तृप्ति प्रदान करता है।

 

विभिन्न वनस्पतियाँ, फूल-फल एवं अन्य प्रकृति प्रदत्त खाद्य पदार्थ की अपनी स्वाभाविक सुगन्ध होती है। खेतों में लहलहाती फसल, बाग-बगीचों में लगे फलों एवं फूलों की हरियाली और रंगों से भरी प्रकृति की अनुपम छटा और शीतल मंद पवन पूरे वातावरण को सुगंधित बनाकर प्राणियों के मन-मस्तिष्क को ताज़गी और स्फूर्ति से भर देता है।

 

सुगन्ध के प्रभाव से घ्राणेन्द्रिय सक्रिय तो होती ही है साथ स्वादेन्द्रिय भी सक्रिय होने से उससे संबंधित खाद्य पदार्थ की अनुभूति स्वमेव ही होने लगती है।

 

प्राचीनकाल से ही सुगन्ध का प्रयोग मानव जीवन में होते आया है जिनमें चंदन, केसर, खस, गुलाब, कमल, मोगरा इत्यादि नाना प्रकार की सुगन्ध से सभी परिचित हैं। भोज्यपदार्थों में प्रयुक्त मसालों के स्वाद एवं सुगन्ध की बात ही निराली है। जो भोजन को स्वादिष्ट और सुगंधित बनाते हैं।

 

धार्मिक कर्मकांडों में प्रयोग की जाने वाली सामग्रियों की विशिष्ट सुगन्ध होती है। जो वातावरण को सुगन्धित एवं पवित्र बनाने के साथ दूर तक लोगों को पूजा-पाठ या इन अनुष्ठानों के होने का आभास कराती है।

 

सुगन्ध की विशेषता है कि वह उस वस्तु विशेष को बिना देखे ही परिचित कराती है। जैसे महुआ की मदमस्त करने वाली सुगन्ध हो या गन्ने के खेत हों उससे आकर्षित हो हाथियों का दल उस स्थान में अपने आप पहुंच जाता है।

 

सुगन्ध का प्रभाव केवल मनुष्यों पर नहीं पशुपक्षियों पर भी दृष्टिगोचर होता है। चूंकि मनुष्य विवेकवान होता है उसे अच्छे बुरे का ज्ञान होता है। जिससे किसी भी निर्णय तक पहुंचता है परंतु जानवर, पशु-पक्षियों की सुगन्ध शक्ति अत्यंत तीव्र होती है इसलिए वे विशेष सुगन्ध से आकर्षित होते हैं। जिनके बारे में साहित्य में भी वर्णन मिलता है।

 

कस्तूरी मृग की नाभी में सुगन्धित द्रव्य पाया जाता है।भक्तिकालीन कवि कबीरदास जी ने अपने दोहे में लिखा है—

कस्तूरी कुंडल बसे मृग ढूंढे बन माहि।

ऐसे घट-घट राम हैं दुनियां जाने नाहि।।

 

इसी प्रकार चंदन की सुगन्ध के प्रभाव को बताते हुए सत्संग का महत्व बताया है–

कबीर चन्दन का बिड़ा, बैठ्या आक पलास।

आप सरीखे करि लिए जे होत उन पास॥

 

सुगन्ध के महत्व को साहित्य में भी स्वीकार गया है। प्राकृतिक सुगन्धों की बात ही निराली है। सांसों द्वारा सुगन्ध को ग्रहण कर शरीर में नई ऊर्जा एवं शक्ति का संचार भी होता है। इसलिए मानव ने इन सुगंधों को महत्वपूर्ण स्थान देते हुए दैनिक जीवन में शामिल कर लिया है।

 

बिना सुगन्ध के किसी भी वस्तु का निर्माण नहीं किया जाता है। कृत्रिम सुगन्ध को प्राकृतिक तत्वों के सत्व से निर्मित कर वस्तुओं को बड़ी सुन्दरता के साथ उसके आकार प्रकार के अनुरूप बनाकर उत्पादन किया जाता है और उपभोक्ता उसकी सुगंध से प्रभावित हो सहज ही बाजार से उसे खरीदने को प्रेरित हो जाता है।

 

सुगन्ध चाहे किसी बनाई गई वस्तु की हो या प्रकृति प्रदत्त पदार्थों की सुगन्ध का अपना स्थान एवं महत्व तो है। यदि मनुष्य की बात करें तो उसके व्यक्तित्व की भी सुगन्ध होती है। व्यक्ति का उत्तम आचरण, व्यवहार, उच्च आदर्शों से संयमित जीवनचर्या और उसके द्वारा किये गए सद्कर्मो की भी एक सुगन्ध होती है जो उनकी कीर्ति को युगों-युगों तक प्रसारित करती है।

 

वस्तुएं नष्ट हो जाती हैं परंतु सुगन्ध दीर्घकाल तक अपना अस्तित्व बनाये रखती है। जिसप्रकार भोजन की सुगन्ध से आकर्षित हो प्राणी उस ओर खिंचा चला जाता है उसी प्रकार व्यक्ति के चरित्र-वैचित्र्य की सुगन्ध से प्रभावित हो उनके उत्तम चरित्र एवं आदर्शों को अपनाकर  मनुष्य अपने जीवन को सार्थकता प्रदान करता है।

 

उत्तम चरित्र एवं प्रभावशाली व्यक्तित्व की सुगन्ध उनके अस्तित्व को सदैव बनाये रखते हुए आने वाली पीढ़ियों के लिए मार्गदर्शक का कार्य करती है।

 

आलेख

श्रीमती रेखा पाण्डेय (लिपि)
व्याख्याता हिन्दी
अम्बिकापुर, छत्तीसगढ़

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