होलिका दहन का वैदिक, पौराणिक और वैज्ञानिक महत्व
वैदिक काल में इस पर्व को नवासस्येष्टि यज्ञ कहा गया। उस समय अधपके अन्न को यज्ञ में दान कर प्रसाद रूप में ग्रहण किया जाता था। इस अन्न को होला कहते थे। अतः इसका नाम होलिकोत्सव पड़ा।
Read moreवैदिक काल में इस पर्व को नवासस्येष्टि यज्ञ कहा गया। उस समय अधपके अन्न को यज्ञ में दान कर प्रसाद रूप में ग्रहण किया जाता था। इस अन्न को होला कहते थे। अतः इसका नाम होलिकोत्सव पड़ा।
Read moreउपनिषदकालीन ब्रह्मवादिनियाँ आज भी हिंदु समाज के विद्वत वर्ग में श्रद्धा से पूजी जाती हैं। ऋग्वेद में गार्गी, मैत्रेयी, घोषा, विश्ववारा, अपाला, अदिति, शची, लोपामुद्रा, सार्पराज्ञी, वाक्क, श्रद्धा, मेधा, सूर्या, सावित्री जैसी वेद मन्त्रद्रष्टा विदुषियों का उल्लेख मिलता है।
Read moreशुद्ध भावनाओं से प्रेरित कार्य समाज और व्यक्ति दोनों के लिए हितकारी होते हैं। जीवन को सार्थक और सुखमय बनाने के लिए हमें अपनी भावनाओं को शुद्ध और सकारात्मक रखना चाहिए।
Read moreकहानी के दोनों पात्रों के व्यवहार से हमें यह सीख मिलती है कि जीवन में सफलता के लिए आत्मचिंतन और परिस्थितियों के प्रति सजगता आवश्यक है। कछुआ हमें सिखाता है कि अपनी अंतरात्मा से जुड़े रहकर और बाहरी परिस्थितियों का अवलोकन करते हुए कर्मपथ पर निरंतर चलते रहने से सफलता निश्चित है।
Read moreदशहरा हिंदुओं का प्रमुख त्यौहार है। आश्विन मास (कुंवार मास) की शुक्लपक्ष की दसमीं तिथि को मनाया जाता है। यह
Read moreमानव जीवन में ईश्वर की अवधारणा सदियों से रही है, परंतु इसका वास्तविक स्वरूप क्या है? यह आलेख इस गहन प्रश्न पर एक नवीन दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है। यहाँ हम यह समझने का प्रयास करेंगे कि ईश्वर कोई बाहरी सत्ता नहीं, बल्कि हमारे भीतर निहित शक्ति का प्रतिबिंब है।
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