जानकी मंदिर पुरौनाधाम सीतामढ़ी
अयोध्या स्थित रामलाल के भव्य मंदिर के निर्माण के लिए निमित्त ट्रस्ट से जुड़े कामेश्वर चौपाल का कहना है कि बिहार सरकार पुनौरा धाम ट्रस्ट को यदि हमारे ट्रस्ट को सौंप दे तो हम सभी पुनौरा धाम को भारत का श्रेष्ठ धार्मिक पर्यटन बनाने की दिशा में विचार कर सकते हैं। उनका भी मानना है कि अयोध्या की मान्यता विश्व में भगवान राम लला को लेकर है तो मां सीता को लेकर पुनौरा धाम का नाम विश्व में क्यों नहीं हो सकता। जगत जननी कह रही है कि ‘जिनके कारण मेरा अस्तित्व है उनका भव्य मंदिर बनने पर मैं बहुत खुश हूं पर मैं भी उनके साथ पतिव्रता अर्धांगिनी बनकर सदैव हर समय खड़ी रही, तो मेरे साथ भी न्याय होना चाहिए।’
सामान्य तौर पर किसी से भी पूछा जाए कि राम लला का जन्म कहां हुआ, तो सभी तपाक से उत्तर देंगे अयोध्या । इसी तरह यदि आप पूछें कि मां जानकी का जन्म कहां हुआ तो लोग उत्तर देते हैं जनकपुर। जो गलत है। जनकपुर तो सीताजी का ननिहाल और विवाह स्थल है। सत्य यह है कि मां जानकी जहां प्रकट हुई थीं उस स्थान का नाम पुनौरा धाम है । यह स्थान बिहार के सीतामढ़ी शहर से साढ़े तीन किलोमीटर दूर है। उस समय जनकपुर भारत का हिस्सा हुआ करता था, आज जनकपुर नेपाल में है, पर मां सीताजी का प्राकट्यस्थल पुनौराधाम आज भी भारत में है। इसके शास्त्रों में प्रमाण भी उपलब्ध हैं। पुनौरा धाम का महत्व इसलिए और भी बढ़ जाता है क्योंकि अभी बीते गुरुवार को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि सीतामढ़ी के पुनौरा धाम में ऐसा धाम बनेगा, जिसे दुनिया के लोग देखने आएंगे। यहां भव्य मंदिर सिर्फ और सिर्फ नरेंद्र मोदी और भाजपा ही बनवा सकती है। सीतामढ़ी को राम सर्किट से जोड़ा जाएगा।
वृहद विष्णुपुराण के मिथिला खंड में वर्णित है कि हम संसार में प्राणियों की मनोकामनाएं पूरी करने वाली विशेष फलदायक यज्ञ स्थली पुण्योर्वरा (पुनौराधाम) की यात्रा और दर्शन विशेषकर चैत्र श्री रामनवमी और वैशाख श्री जानकी नवमी में मोक्ष की अभिलाषी को करने चाहिए, क्योंकि दोनों तिथि क्रमशः श्री राम जी का जन्मदिवस और मां सीता जी का प्राकट्य दिवस है।
वर्णन है की एक बार सम्पूर्ण मिथिला में घोर दुर्भिक्ष पड़ गया। लोग अन्न और जल के अभाव में दम तोड़ने लगे। उस समय राजा जनक राज कर रहे थे। राजर्षि जनक ने अपने राज्य के विद्वानों, ऋषि-मुनियों और ज्योतिषियों की आपातकालीन सभा बुलाकर भीषण दुर्भिक्ष की विभीषिका से त्राण पाने के उपाय पर विचार-विमर्श किया। सर्वसम्मत से निर्णय लिया गया कि राजा जनक को हष्ठी यज्ञ करना चाहिए। इसके निमित्त शोध के आधार पर पुण्यारण्य (पुण्डरीक आश्रम) को उपयुक्त स्थान के रूप में चयन किया गया ।
वृहद विष्णुपुराण के मिथिला माहात्म्य के अष्टम अध्याय में वर्णित है कि राजर्षि जनक का जो प्राचीन दुर्ग था, उसके पारतः पंचकोशी चार विशाल द्वार थे। वे इन दिनों भी वर्तमान जनकपुरधाम से क्रमशः दस मील उत्तर की ओर धनुषा, दस मील दक्षिण की ओर गिरजा स्थान, दस मील पूरब की ओर हरिहरालय महादेव और दस मील पश्चिम जलेश्वरनाथ के नाम से लोक विदित है।
यह स्पष्ट है कि महाराजा जनक इसी जलेश्वरनाथ ( शिव जी का जलशयन स्थल) से पश्चिम भाग में शास्त्रवत अठासी ऋषियों एवं रानी सुनैना सहित तीन योजना के बाद हलेष्ठी यज्ञार्थ पुण्डरीक आश्रम पुण्यारण्य पधारे थे, जहां हष्ठी यज्ञ की सिद्धि प्राप्त हुई और मां जानकी का प्राकट्य हुआ। पद्मपुराण में वर्णन है कि जानकी नाम तो जनक जी के वंशानुगत जनक शब्द से रखा गया, लेकिन शास्त्रानुसार उनका नाम ‘सीता’ होना अपेक्षित है, क्योंकि सीत (फार का नुकीला अग्र भाग) और सीता (सिराडर) के संयोग से उत्पत्ति होने के कारण सीता नाम की पुष्टि होती है।
जन्म के बाद लौकिक एवं वैदिक रीतियों से वर्षा से बचाने के लिए ‘मड़ई’ (मढ़ी) में मां सीता जी रखी गईं तथा उस स्थान का नाम सीतामढ़ी हुआ। पुण्डरीक क्षेत्र अर्थात पुनौराधाम, जहां मां जानकी का प्राकट्य हुआ, वहां कई पुरातन स्मृतियां हैं, जिनका वर्णन और वहां की भाषाएं का उल्लेख रामायण, पुराणों, संहिताओं एवं इतिहास के पृष्ठों में स्वर्णाक्षरों में वर्णित है। पुनौराधाम में प्रवेश मात्रा से प्राणी पवित्र हो जाता है। मां जानकी कुंड में जलस्पर्श एवं स्नान करने से सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं। मां जानकी जन्म कुंड को पुण्यनिधि कहा गया है।
जगतगुरु रामभद्राचार्य गत 12 वर्षों से लगातार पुनौराधाम में जानकी नवमी आने के नौ दिन पूर्व से जगत जननी मां जानकी की जन्म स्थली पर नौ दिन कथा कर जानकी नवमी सम्पन्न कर समाज को सदैव संदेश देते हैं कि पुनौराधाम ही मां जानकी का प्राकट्य स्थल है। मैं और जगतगुरु रामभद्राचार्य बिहार के तत्कालीन राज्यपाल के साथ-साथ मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को इस आशय की जानकारी भी दी।
आजादी के बाद पहली बार कोई संवैधानिक पद पर बैठा व्यक्ति तत्कालीन राज्यपाल और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पुनौराधाम पहुंचे। उन्होंने सभा में कहा कि पुनौराधाम के बारे में तो मुझे पता ही नहीं था कि यह मां जानकी का प्राकट्य स्थल है। जगतगुरु रामभद्राचार्य ने कहा कि आप जानकी नवमी पर आइए तो मैं वहां पहुंचा। नीतीश ने कहा कि बिहार सरकार पुनौराधाम स्थित मां जानकी के प्राकट्य स्थल का धार्मिक पर्यटन केंद्र के रूप में विस्तार करने की दिशा में अनेक कदम भविष्य में उठाए जाएंगे।
अयोध्या में भगवान रामलला का भव्य और दिव्य मंदिर वर्षों के संघर्ष के बाद न्यायालय के फैसले से बनकर तैयार हो गया। अभी अयोध्या में भगवान रामलला के मंदिर का प्रथम चरण बना है जिसकी जिसकी प्राण प्रतिष्ठा 22 जनवरी 2024 को स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने की। कहा जाता है कि ‘बिना राम के सीता नहीं और बिना सीता के राम नहीं।’ पूरे विश्व से अयोध्या में बने भगवान रामलला के मंदिर के दर्शनार्थ लाखों लोग पधार रहे हैं, पर दूसरी ओर, मां जानकी (सीताजी) का प्राकट्य स्थल पर किसी तरह का जमीनी विवाद नहीं है, और तो और वहां मां जानकी का एक छोटा मंदिर भी बना है। वहां वह स्थल भी मौजूद है जहां राजा जनक ने हल जाता था।
प्रधानमंत्री मोदी जब भी अयोध्या में गए थे जय श्री राम नहीं बोले वह हमेशा ‘जय सियाराम’ ही बोले। अब सवाल उठता है की माता सीता के प्राकट्य स्थल का जीर्णोद्धार कब होगा । जगतगुरु रामभद्राचार्य ने प्रण लिया हुआ है कि जब तक मां सीता के प्राकट्य स्थल का जीर्णोद्धार और यह भारत का श्रेष्ठ धाम नहीं बनेगा मेरी कथा सदैव जानकी नवमी पर यहां होती रहेगी। राज्यसभा में भी पुनौरा धाम का मामला और वहां मां जानकी के प्राकट्य स्थल के संपूर्ण विकास का मामला उठाया था सदन में सभी दलों ने इसका समर्थन भी किया था ।
पुनौरा धाम भारत के बिहार राज्य में है। अतः भारत और बिहार सरकार का यह नैतिक दायित्व बनता है कि पुनौरा धाम को भारत का श्रेष्ठ धाम बनाने की दिशा में पुरजोर प्रयास करें। अयोध्या स्थित रामलाल के भव्य मंदिर के निर्माण के लिए निमित्त ट्रस्ट से जुड़े कामेश्वर चौपाल का कहना है कि बिहार सरकार पुनौरा धाम ट्रस्ट को यदि हमारे ट्रस्ट को सौंप दे तो हम सभी पुनौरा धाम को भारत का श्रेष्ठ धार्मिक पर्यटन बनाने की दिशा में विचार कर सकते हैं। उनका भी मानना है कि अयोध्या की मान्यता विश्व में भगवान राम लला को लेकर है तो मां सीता को लेकर पुनौरा धाम का नाम विश्व में क्यों नहीं हो सकता।
भारत की जनता अब पुनौरा धाम आने लगी है। जानकी नवमी को वहां बहुत बड़ा मेला लगता है। जगत जननी मां सच में इंतजार कर रही हैं और कह रही है कि ‘जिनके कारण मेरा अस्तित्व है उनका भव्य मंदिर बनने पर मैं बहुत खुश हूं पर मैं भी उनके साथ पतिव्रता अर्धांगिनी बनकर सदैव हर समय खड़ी रही, तो मेरे साथ भी न्याय होना चाहिए।’
(लेखक भाजपा राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रह चुके हैं, ये उनके अपने विचार हैं।)