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नफ़रत एवं इंसानियत के कत्ल की बुनियाद पर खड़ी पाकिस्तानी मानसिकता

कश्मीर में तीर्थयात्रियों की बस पर जिस दिन पाकिस्तानी आतंकवादियों का हमला हुआ, उसी दिन पाकिस्तान के क्रिकेटर कामरान ने भारतीय गेंदबाज अर्शदीप सिंह पर आपत्तिजनक टिप्पणी की । दोनों घटनाओं ने पाकिस्तान की उस मानसिकता एक बार उजागर किया है जो नफरत और इंसानियत के कत्ल की बुनियाद पर खड़ी है।

भारत और पाकिस्तान के बीच वार्ता करने और भाईचारा बढ़ाने की बात कहने और सुनने में तो अच्छी लगती है पर वास्तविकता से इसका दूर दूर तक संबंध नहीं। भारत ने भाईचारा निभाने का हमेशा प्रयास किया किन्तु पाकिस्तान की प्रतिक्रिया इसके विपरीत रही है । भाईचारा एक तरफा बहता पानी नहीं है । इस सत्य से सैंकड़ों बार भारत को साक्षात्कार हो चुका है । पाकिस्तान सद्भाव और भाईचारे के संबंध नहीं, भारत में अशांति फैलाना चाहता है । वह भी जिहाद का लेबल लगाकर।

भारत में इस नारे को बार बार सुना गया है और इस नाम बेगुनाह इंसानों का खून बहते भी देखा है । नौ जून को घटीं दोनों घटनाओं में पाकिस्तान और उसके निवासियों की यही मानसिकता एक बार फिर सामने आई है । नौ जून को पाकिस्तानी आतंकवादियों ने हिन्दू तीर्थ यात्रियों की बस को निशाना बनाया और दूसरी घटना पाकिस्तान की है । पाकिस्तानी क्रिकेटर कामरान ने भारतीय गेंदबाज अर्शदीप सिंह पर आपत्तिजनक टिप्पणी की । यह दोनों घटनाएँ जिस दिन घटीं वह साधारण दिन नहीं था। बहुत ऐतिहासिक दिन था।

प्रधानमंत्री श्रीनरेंद्र मोदी और उनका मंत्रीमंडल अपनी तीसरी पारी आरंभ करने केलिये शपथ ग्रहण करने जा रहा था और दूसरी ओर भारत-पकिस्तान के बीच क्रिकेट मैच होने वाला था । भारत ही नहीं पूरी दुनियाँ के लोगों का ध्यान दोनों अवसरों पर लगा था । इस ऐतिहासिक अवसर को ग्रहण लगाने केलिये हिन्दू तीर्थ यात्रियों की बस को निशाना बनाया गया । यह बस वैष्णोदेवी जा रही थी । इसमें कुल 45 यात्री थे । ड्राइवर को गोली लगने से बस अनियंत्रित होकर खाई में गिर गई। जिससे दस तीर्थ यात्रियों का निधन मौके पर ही हो गया । शेष 35 अस्पताल में हैं। सारे यात्री निहत्थे थे ।

इस आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता कि यदि बस खाई में नहीं गिरी होती तो आतंकवादी सभी तीर्थ यात्रियों को बस से उतारकर मौत के घाट उतारते । लेकिन बस के खाई में गिरने से अन्य यात्रियों के प्राण बच गये । हमलों की ताजा घटना में आतंकवादियों का यह अकेला हमला नहीं था । ग्यारह और बारह जून की मध्य रात्रि को दो और हमले हुए । पहला हमला कठुआ जिले केहीरानगर सैदा सुखल गांव में हुआ इस हमले में एक नागरिक की मौत हुई । इसी रात दूसरा हमला डोडा के छत्रकला सेना कैंप पर हुआ । इस हमले में पांच जवान घायल हुये ।

पाकिस्तान का षड्यंत्र और मानसिकता

इन सभी हमलों को पाकिस्तान से नियंत्रित किया जा रहा था और आतंकवादी भी पाकिस्तानी नागरिक हैं। इसकी पुष्टि मारे गये एक आतंकवादी और जब्त सामान से होती है । सुरक्षा बलों की मुठभेड़ में एक आतंकवादी मारा गया । जो आतंकवादी मारा गया वह पाकिस्तानी था। जो सामान जब्त हुआ उस पर भी पाकिस्तानी कंपनियों और दुकानों के नाम हैं। कश्मीर में घुसकर पाकिस्तानी आतंकवादी हिन्दू तीर्थ यात्रियों को हमेशा से निशाना बनाते हैं और जिहाद का नारा लगाते हैं । पाकिस्तान में बैठे आतंकवाद के सरगना भारत के मुसलमानों की भावुकता का लाभ उठाना जानते हैं।

जिहाद और मजहब की बात सुनकर भारत के मुसलमान आतंकवादियों से तटस्थ हो जाते हैं। कुछ का ब्रेन वाॅश करके अपनी सहायता के लिये भी सक्रिय कर लेते हैं। पाकिस्तान ऐसा नेटवर्क खड़ा करके भारत के हर कोने में दुष्प्रचार करता है, कश्मीर में सबसे अधिक । पाकिस्तान निर्माण के सीमापार से एक नारा सुनाई दिया था “हँस के लिया है पाकिस्तान, लड़ कर लेंगे हिन्दुस्तान” और बाकी स्वतंत्रता के बाद से पाकिस्तान कश्मीर में सक्रिय हो गया था । उसने कश्मीर के एक बड़े हिस्से पर अधिकार कर ही लिया है और शेष कश्मीर में अपना अधिकार करने केलिए आतंकवादी अभियान चला रहा है ।

आतंकवाद से कश्मीर के गैर मुस्लिम नागरिकों को भयभीत करके जा रहा है, यदि भारत के अन्य भागों से श्रमिक आते हैं तो उन्हें भी मारा जा रहा है। इसी षड्यंत्र के तहत कश्मीरी पंडितों को प्रताड़ित किया गया, गैर मुस्लिम श्रमिकों और कश्मीर जाने वाले तीर्थ यात्रियों पर हमले होते हैं । आतंकवाद और इंसानियत को शर्मसार करने वाले बेगुनाहों की हत्या को पाकिस्तान जिहाद का नाम देता है । पाकिस्तानी मानसिकता को भाईचारे, इंसानियत और सद्भाव शाँति से कोई मतलब नहीं होता । इसे पाकिस्तान के आंतरिक वातावरण से भी समझा जा सकता है ।

पाकिस्तान वैसा ही वातावरण कश्मीर में बनाना चाहता था । उसके लगातार षड्यंत्रों से कश्मीर वीरान होने लगा था । लेकिन पिछले चार पांच वर्षों से कश्मीर का वातावरण बदल रहा है । प्रधानमंत्री श्रीनरेंद्र मोदी के संकल्प के अनुरूप धारा 370 हटी और कश्मीर की चहल-पहल बढ़ने लगी । पर्यटकों की संख्या बढ़ी आर्थिक स्थिति सुधरी । आतंकवाद से निपटने के लिये सरकार ने भी सख्ती दिखाई और 2019 से कश्मीर में खुशहाली आने लगी थी । यह खुशहाली देखकर पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीरी नागरिकों में भी भारत से मिलने की ललक जागी। जो पाकिस्तान केलिये एक खतरा लगा ।

इसलिये अब पाकिस्तान फिर से कश्मीर में आतंकवाद की जड़े जमाने का षड्यंत्र करने लगा । और इसके लिये उसने नौ जून का दिन चुना । नौ जून से बारह जून तक कश्मीर में आतंकवाद की कुल चार घटनाएँ घटीं। ये डोडा, कठुआ और रियासी क्षेत्र में हुईं। ये तीनों क्षेत्र घाटी में अवश्य हैं पर पाकिस्तानी सीमा से थोड़ा दूर हैं । इन स्थानों में आकर अपने पैर जमाना सरल न था । इसलिये तैयारी पहले से की जा रही थी । लगभग दो माह से आतंकवादियों की हलचल की सूचनाएँ भी मिल रहीं थी ।

स्थानीय प्रशासन की सतर्कता पर प्रश्नचिन्ह

कश्मीर की इन घटनाओं के बाद प्रशासन ने तलाशी अभियान तेज किया है और तीर्थ यात्रियों की बस पर हमला करने वाले आतंकवादियों को सूचना देने वालों को बीस लाख के पुरुस्कार की घोषणा भी की है । फिर भी स्थानीय प्रशासन की सतर्कता पर प्रश्न तो उठते हैं । इसका सबसे बड़ा प्रश्न तो यही है कि स्थानीय एजेन्सियों को आतंकवादियों की सक्रियता की सूचना निरंतर मिल रही थी फिर भी कोई प्रभावी कार्रवाई नहीं हो सकी । सबसे ताजी सूचना एक जून को मिली थी । पुंछ जिले के बुफ्लियाज जंगल में आतंकवादी गतिविधियों की सूचना मिली ।

इससे पहले 24 मई को सांबा जिले के बेईन-लाल चक सीमावर्ती गांव में संदिग्ध व्यक्ति देखे गये । उससे पहले 19 मई को कठुआ जिले के तरनाह नाला सीमा पर तीन हथियारबंद लोग देखे गये । इससे पहले 14 मई को कठुआ जिले के जाखोले-जुथाना जंगल के पास पाँच छै संदिग्ध लोग देखे गये । इन्होने एक महिला से खाना भी माँगा। इन प्रमुख सूचनाओं के अतिरिक्त अन्य सूचनाएँ भी मिलीं पर कोई प्रभावी कार्यवाही न हो सकी । और आतंकवादियों ने अपनी पूरी जमावट कर ली।

हालाँकि नौ जून हिन्दू तीर्थ यात्रियों की बस पर हुये हमले के बाद दो स्थानों पर सुरक्षा बलों से मुठभेड़ भी हुई । जिसमें एक आतंकवादी मारा गया और कुछ सामग्री भी जब्त हुई । लेकिन यह मुठभेड़ सुरक्षा बलों की खोज के आधार पर नहीं हुई । एक मुठभेड़ गाँव वालों के शोर मचाने के कारण और एक आतंकवादियों द्वारा सुरक्षा बलों पर हमला करने के बाद मूठभेड़ हुई । मारा गया आतंकवादी पाकिस्तानी नागरिक है और जब्त सामग्री भी पाकिस्तान की है । यह ठीक है कि देश में चुनाव चल रहे थे और पूरा प्रशासन उसकी तैयारी में लगा था फिर भी संदिग्ध व्यक्तियों की धरपकड़ करना चुनावी सुरक्षा केलिये एक महत्वपूर्ण कार्य है । लगातार सूचनाओं के बाद प्रभावी कार्रवाई न होना आश्चर्यजनक है ।

वक्त्व्य की राजनीति से बढ़ता है आतंकवादियों का हौंसला

पाकिस्तान लगातार आतंकवाद को प्रोत्साहित कर रहा है । वह न झुकता है और न रुकता है । 1965 और 1971 के युद्ध में हुये नुकसान के बाद भी वह नहीं रुका । वह लगातार आतंकवादियों को भारत भेजकर हिंसा तनाव और साम्प्रदायिकता का वातावरण बनाकर भारत में अशांति पैदा कर रहा है । इसके बावजूद भारत में कुछ राजनेता मानवीय पक्ष को आगे करके ऐसे वक्तव्य देते हैं जिससे आतंकवादियों का हौसला बढ़ता है, एक प्रकार से उनको प्रोत्साहन मिलता है ।

आतंकवादियों को “भटका हुआ नौजवान” कहना, कभी बातचीत का सुझाव देना और आतंकवाद के मुद्दे पर पाकिस्तान से बातचीत करने के सुझाव देना आतंकवाद को प्रोत्साहित करना नहीं तो और क्या है ? आतंकवाद की इन ताजा घटनाओं के बाद जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने एक बार फिर पाकिस्तान से बात करने का राग अलापा । उन्होंने कहा कि “यह कोई हैरानी की बात नहीं है कि आतंकी हमला हुआ है… इस बंदूक को खामोश करने के लिए एक बातचीत का माहौल बनाना होगा और इसके लिए दोनों देशों को भूमिका निभानी होगी…।”निसंदेह इस प्रकार के वक्तव्य आतंकवाद की गंभीरता से ध्यान हटाते हैं और परोक्ष रूप से आतंकवादियों का हौसला बढ़ता है ।

ऐसा भी नहीं है कि बातचीत से समस्या का हल खोजने का प्रयास न हुआ हो । समय-समय पर विभिन्न भारत सरकारें इस दिशा में प्रयास भी कर चुकीं हैं। 1953 के नेहरू लियाकत समझौते से अटलजी द्वारा समझौता एक्सप्रेस आरंभ करने तक दर्जनों प्रयास हुये हैं। घाटी के अलगाववादियों के साथ भी अनेक बातचीतें हो चुकी है, कुछ प्रत्यक्ष और कुछ वार्ताकारों के माध्यम से । प्रधानमंत्री मनमनोहन सिंह ने तो आतंकवाद के प्रमुख आरोपी यासीन मलिक को दिल्ली बुलाकर बातचीत की थी । लेकिन कोई सकारात्मक परिणाम सामने नहीं आया था । सकारात्मक परिणाम मोदीजी के सर्जिकल स्ट्राइक और एयर स्ट्राइक के बाद आया था । लगभग चार साल कुछ राहत रही और अब फिर आतंकवाद सिर उठाने लगा है । इसके लिये सुरक्षाबलों की सख्ती ही बेहतर उपाय है न कि बातचीत। बातचीत के वक्तव्य आतंकवादियों का ही हौसला बढ़ाते हैं। इस सत्य को भी समझना चाहिए।

 

लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं टिप्पणीकार हैं।

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