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महाराष्ट्र कैबिनेट ने ‘शक्तिपीठ महामार्ग’ को दी हरी झंडी, 20,000 करोड़ रुपये भूमि अधिग्रहण व योजना के लिए मंजूर

महाराष्ट्र सरकार ने मंगलवार को नागपुर-गोवा ‘शक्तिपीठ एक्सप्रेसवे’ के लिए भूमि अधिग्रहण और प्रारंभिक योजना प्रक्रिया को मंजूरी दे दी है। यह निर्णय राज्य के सबसे महत्त्वाकांक्षी इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स में से एक को दोबारा शुरू करने का संकेत है, जिसे पहले किसानों के विरोध के कारण रोक दिया गया था।

‘महाराष्ट्र शक्तिपीठ महामार्ग’ के नाम से प्रस्तावित यह 802 किलोमीटर लंबा हाई-स्पीड कॉरिडोर वर्धा जिले के पवनार से शुरू होकर सिंधुदुर्ग के पत्रादेवी तक जाएगा, जो गोवा सीमा के पास है। यह राजमार्ग राज्य के पूर्व से पश्चिम तक फैलेगा और कुल 11 जिलों से होकर गुजरेगा।

धार्मिक महत्व के साथ आर्थिक विकास की उम्मीद

इस महामार्ग को केवल एक परिवहन परियोजना के रूप में नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक और धार्मिक कॉरिडोर के रूप में पेश किया जा रहा है। प्रस्तावित रूट में 18 प्रमुख तीर्थस्थल शामिल हैं, जिनमें साढ़े तीन शक्तिपीठ, दो ज्योतिर्लिंग और पंढरपुर, अंबाजोगाई जैसे आध्यात्मिक केंद्र शामिल हैं।

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वर्धा, यवतमाल, हिंगोली, नांदेड़, परभणी, लातूर, बीड, धाराशिव, सोलापुर, कोल्हापुर और सिंधुदुर्ग जैसे जिले इस परियोजना से सीधे जुड़ेंगे।

भूमि अधिग्रहण के लिए हुआ बड़ा बजट प्रावधान

मंत्रिमंडल ने इस परियोजना के भूमि अधिग्रहण और प्रारंभिक योजना के लिए 20,000 करोड़ रुपये के वित्तीय प्रावधान को मंजूरी दी है। परियोजना का क्रियान्वयन एक राज्य सरकार द्वारा संचालित इन्फ्रास्ट्रक्चर कॉर्पोरेशन के माध्यम से किया जाएगा, जबकि भूमि अधिग्रहण की जिम्मेदारी सार्वजनिक निर्माण विभाग (PWD) को सौंपी गई है।

पिछली सरकार में किसानों के विरोध के चलते रुकी थी योजना

इस परियोजना को पहले जून 2024 में तत्कालीन मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की अगुवाई वाली महायुति सरकार ने किसानों के विरोध के चलते स्थगित कर दिया था। सबसे बड़ी चिंता निजी कृषि भूमि के बड़े पैमाने पर अधिग्रहण को लेकर थी। लगभग 8,419 हेक्टेयर ज़मीन की ज़रूरत है, जिसमें से करीब 8,100 हेक्टेयर व्यक्तिगत किसानों की है।

कोल्हापुर और पश्चिमी महाराष्ट्र के गन्ना बेल्ट में ज़ोरदार आंदोलन हुए थे, जिससे सरकार को योजना पर विराम लगाना पड़ा था।

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फडणवीस सरकार ने फिर दी रफ्तार

जनवरी 2025 में सत्ता में वापसी के तुरंत बाद मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने इस परियोजना को पुनर्जीवित करने का निर्देश दिया था। हालिया कैबिनेट बैठक का फैसला इसी दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है, जो सरकार की इस परियोजना को लेकर नई राजनीतिक इच्छाशक्ति को दर्शाता है।

आर्थिक और सामाजिक प्रभाव

परियोजना की कुल लागत लगभग ₹80,000 करोड़ आँकी गई है। अधिकारियों का मानना है कि यह एक्सप्रेसवे न केवल तीर्थयात्रा को सुगम बनाएगा, बल्कि कम विकसित क्षेत्रों में पर्यटन, स्थानीय उद्योग और रोज़गार के अवसरों को भी बढ़ावा देगा।

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