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सिर्फ़ तीस साल की उम्र में शहीद हो गए रामप्रसाद आज महान योद्धा, अमर शहीद की जयंती

देश की आज़ादी के लिए लम्बे समय तक चले कठिन संघर्षो में माँ भारती के हज़ारों-लाखों वीर संतानों ने अपने जीवन की आहुति दी.उन्हीं अमर शहीदों में से एक थे राम प्रसाद ‘बिस्मिल’, जो सिर्फ़ तीस साल की युवा अवस्था में मातृभूमि की स्वतंत्रता के लिए शहीद हो गए थे. आज 11 जून को उन्हीं क्रांतिकारी योद्धा की जयंती है. उन्हें विनम्र नमन ।वह एक गंभीर चिंतक ,शायर और विचारवान लेखक भी थे। उनकी शहादत के लगभग 80 साल बाद उनकी कई किताबों का प्रकाशन हुआ।देश की आज़ादी के लिए लम्बे समय तक चले कठिन संघर्षों में भारत माता के अनेक नौजवान सपूतों ने अपने प्राणों की आहुति दी।

अमर शहीद भगतसिंह ,राजगुरु ,सुखदेव ,चन्द्रशेखर आज़ाद ,अशफाकउल्ला खान और ,गणेशशंकर विद्यार्थी जैसे युवा शहीदों की एक लम्बी सूची है। इनमें से भगतसिंह भी क्रांतिकारी लेखक और गणेशशंकर विद्यार्थी प्रखर पत्रकार थे। इन्हीं शहीदों की क्रांतिकारी परम्परा के वीर योद्धा थे रामप्रसाद ‘बिस्मिल’ । क्रांति कर्म के साथ -साथ वह जनजागरण के लिए लेखन से भी जुड़े हुए थे।
अमर शहीद रामप्रसाद ‘बिस्मिल’ का जन्म 11 जून 1897 को शाहजहांपुर में हुआ था। अंग्रेजी हुकूमत की ग़ुलामी से भारत की आज़ादी के संघर्ष में उन्होंने अपनी ज़िन्दगी कुर्बान कर दी। ब्रिटिश सरकार ने उन्हें 19 दिसम्बर 1927 को गोरखपुर जेल में फाँसी दे दी। रामप्रसाद ‘बिस्मिल’ मातृभूमि की स्वतंत्रता के लिए शहीद हो गए।
हालांकि रामप्रसाद बिस्मिल स्वयं एक अच्छे लेखक और कवि थे ,लेकिन अज़ीमाबाद (पटना )के शायर बिस्मिल अज़ीमाबादी की रचना ‘सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है –देखना है ज़ोर कितना बाजू-ए-क़ातिल में है ‘ उन्हें बहुत प्रिय थी , जिसे वह जेल में बन्द अपने क्रांतिकारी साथियों के साथ गाते थे। जब उन्हें फाँसी के फंदे पर ले जाया जा रहा था ,तब भी उनके होठों पर बिस्मिल अज़ीमाबादी का यह तराना तैर रहा था। मैनपुरी और काकोरी काण्ड में उन्हें फाँसी हुई। वह अमर शहीद भगतसिंह ,चन्द्रशेखर आज़ाद और अशफाकउल्ला ख़ान जैसे क्रांतिकारियों के अभिन्न सहयोगी थे। काकोरी काण्ड में रामप्रसाद ‘बिस्मिल’ के साथ अशफाकउल्ला ख़ान को भी मौत की सजा हुई थी । दोनों शहीदों की याद में भारत सरकार ने वर्ष 1997 में डाकटिकट भी जारी किया था ।

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कई किताबों के लेखक
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रामप्रसाद ‘बिस्मिल ‘ ने कई किताबें लिखीं । उनकी पहली पुस्तक ‘अमेरिका की स्वतंत्रता का इतिहास ‘ वर्ष 1916 में प्रकाशित हुई थी । उनके जन्म शताब्दी वर्ष 1996-97 में इसका पुनर्प्रकाशन हुआ। रामप्रसाद ‘बिस्मिल ‘ आज़ादी के आंदोलन के लिए भगतसिंह जैसे क्रांतिकारी युवाओं द्वारा गठित ‘हिन्दुस्तान प्रजातांत्रिक संघ (हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन )के संस्थापक सदस्य थे। उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम के दौरान भूमिगत जीवन में भी देश -विदेश के क्रांतिकारी साहित्य का गहन अध्ययन किया। इस दौरान उन्होंने रूसी क्रांति पर आधारित एक पुस्तक’ दी ग्रैंडमदर ऑफ रशियन रिवोल्यूशन ‘ का ‘कैथेराइन ‘ शीर्षक से अनुवाद किया था।

शहादत के 80 साल बाद छ्पी कई पुस्तकें
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बिस्मिल जी की शहादत के लगभग 80 साल बाद उनकी कई महत्वपूर्ण पुस्तकें वर्ष 2006 में छपकर जनता के सामने आयीं । इनमे एक उपन्यास ‘बोल्शेविकों की करतूत ‘ और कविता संग्रह ‘मन की लहर ‘ तथा ‘क्रान्ति गीतांजलि ‘ भी शामिल है। उन्होंने अपने ग्यारह वर्षीय क्रांतिकारी जीवन के बारे में ‘निज जीवन की एक छटा’ शीर्षक से लिखी अपनी पुस्तक में प्रकाश डाला है। उनकी आत्मकथा के रूप में एक अन्य पुस्तक भी छपी है ,जिसका सम्पादन सुप्रसिद्ध साहित्यकार बनारसीदास चतुर्वेदी ने किया है।
ग्रेटर नोएडा में स्थापित अमर शहीद रामप्रसाद बिस्मिल उद्यान और उनके जन्मस्थान शाहजहांपुर में स्थापित संग्रहालय देशवासियों को उनके महान क्रांतिकारी व्यक्तित्व और कृतित्व की याद दिलाते हैं।

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