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घोर अव्यवस्था का तीर्थ गंगासागर

सुभाष शर्मा दिल्ली

हम दो जने गत वर्ष गंगासागर जाने के लिए निकले। एक कृपालु मित्र ने कलकत्ता में रुकने और वहां से कपिल मुनि मंदिर (गंगासागर) तक आने जाने की उत्तम व्यवस्था करा दी थी। सियालदह स्टेशन पर ही रुकने का अच्छा प्रबन्ध था। प्रातः मुंह-अंधेरे ही एक रेलकर्मी हमारे रेल टिकट लाया और हमें सियालदह से काकद्वीप की लोकल ट्रेन में बैठा दिया। काकद्वीप में ट्रेन से उतरते ही एक रेलकर्मी का फोन आ गया। उसने हमें स्टेशन से बाहर ला कर नौका घाट जाने के लिए एक टोटो (ई रिक्शा) में बैठा दिया। यहां तक हम बहुत आनंद मग्न थे।

हुगली के नौका घाट की ओर चले तो देखा कि पुलिस ने घाट तक जाने वाले सभी मार्ग रोक रखे थे। टोटो चालक ने किसी अधिकारी का नाम लेकर कहा कि ये उनके अतिथि हैं। एक पुलिसकर्मी ने धीरे से उसे दूसरा मार्ग बता दिया। टोटो चालक ने ग्रामीण मार्गों से हमें जैसे तैसे घाट की ओर एक पुलिस चैकपोस्ट तक ले जाकर कहा कि अब यहां से पुलिस आगे नहीं जाने देगी। आपको पैदल जाना होगा। आगे बढ़ते ही पुलिस ने हमें रोका, मैंने बताया कि हमें NDRF कैम्प जाना है। हम लोग अन्ततः कैम्प तक पहुंच ही गए। बिजली के सभी खम्भों पर लगे मुख़्यमंत्री के पोस्टर बता रहे थे कि इस कुव्यवस्था का सर्वोच्च मुखिया कौन है?

हम लोग बहुत देर तक NDRF कैम्प में बैठे रहे। उनके एक अधिकारी आए और उन्होंने अपने एक जवान से हमें नौका घाट तक पहुंचाने को कहा। वह जवान हमें लेकर हुगली के तटबंध की ओर बढ़ा तो बंगाल पुलिस के सिपाहियों ने हमें आगे जाने से रोक दिया। हमारे साथ के जवान ने उनसे बारम्बार अनुरोध किया परन्तु पुलिस ने एक न सुनी। हम दोनों बहुत समय तक वहीं खड़े रहे। कुछ देर पश्चात् मुझे कई यात्री थोड़ी दूर से तटबंध पर चढ़ते दिखाई दिए। हम भी उसी ओर जाकर तटबंध पर चढ़ गए। ऊपर जाकर पता चला कि तटबंध तीर्थयात्रियों की भीड़ से खचाखच भरा था। बंध से हुगली की ओर नीचे दूर तक कीचड़ होने के कारण उसमें उसमें चल कर आगे जाना असम्भव था। हम भीड़ में से जैसे-तैसे मार्ग निकलते हुए नौका घाट के निकट तक पहुंच गए। वहां अपार भीड़ नौका की प्रतीक्षा में खड़ी थी। बहुत देर तक भीड़ में रहने से परस्पर वार्तालाप स्वभाविक ही है। कई लोगों ने बताया कि हम कल से यहीं खड़े हैं। संयोगवश चार प्रौढ़ा स्त्रियों का दल हमारे ही नगर से आया हुआ था। उन्होंने बताया कि हम कल दिन में यहां आ गए थे और पूरी रात यहीं रेत पर बैठ कर काटी है। लगभग दो घण्टे हम वहीं खड़े रहे। अंत में निराश होकर हम पुनः कैम्प में लौट आए।

कुछ देर के पश्चात् एक थोड़े वरिष्ठ अधिकारी वहां पहुंचे तो मैंने पूछा कि हम गंगासागर द्वीप तक जा सकेंगे या नहीं? उन्होंने कहा कि मैं कुछ नहीं कह सकता। आप देख ही रहे हैं कि स्थानीय पुलिस-प्रशासन का व्यवहार हमारे साथ सहयोगात्मक नहीं है। हमने यहां एक बड़ी नौका अपने लिए किराए पर ले रखी है। अपराह्न तीन बजे उस नौका के आने की आशा है। तभी हम आपको उस पार भेज पाएंगे। यहां प्रसंगवश यह बताना आवश्यक है कि NDRF अपेक्षाकृत नया केंद्रीय बल है जिसमें अधिकांश स्टॉफ सीमा सुरक्षा बल (BSF) से भेजा गया है। वर्तमान प्रदेश सरकार BSF से सहयोग नहीं करती। सम्भवतः उसे BSF की तुलना में BNG वाले अपने लगते हों। मैंने निराश होकर वापस कलकत्ता लौटने का निश्चय किया। हम दोनों बहुत देर ई रिक्शा खोजते रहे। तभी मेरे कृपालु मित्र का फोन आया। मैंने बताया कि उस पार जाने का कोई साधन नहीं मिला अतः हम निराश होकर लौट रहे हैं। उन्होंने आग्रह करके हमें पुनः NDRF कैम्प में भेज दिया। वहां पहुंचे तो स्टॉफ ने कहा कि आप वरिष्ठ नागरिक हैं और प्रातः काल से यहां धक्के खा रहे हैं। हमारे टैण्ट में बिस्तर लगे हुए हैं, वहां विश्राम करें। कुछ देर हम वहां लेटे रहे।

उनके स्टॉफ की बातें सुन कर मैं समझ गया कि आज यदि हम किसी प्रकार गंगासागर पहुंच भी गए तो वापस काकद्वीप आने में भी यही संघर्ष करना पडेगा। सोच-विचार के उपरांत हम वहां से निकल पड़े। आगे जाकर बहुत देर भटकने के पश्चात् हमें काकद्वीप रेलवे स्टेशन पहुंचने के लिए एक टोटो मिला। हम उसमें बैठ कर चले ही थे कि टोटो को पीछे से एक व्यक्ति पुकारने लगा। उसके साथ एक स्त्री भी थी। पास आकर उसने कहा कि हमें भी स्टेशन जाना है। टोटो चालक बोला कि पूरा टोटो इन्होने बुक किया है, मैं और सवारी नहीं ले सकता। मैंने उन दोनों से बैठने को कह दिया। वे दोनों भाई-बहन नदिया जिले से आए थे। पुरुष ने बताया कि मेरी बहन हठ कर रही थी इसलिए इसे लेकर आना पड़ा। गंगासागर से हम बहुत कठिनाई उठा कर लौटे हैं और यहां स्टेशन जाने वाला कोई वाहन नहीं मिला। काकद्वीप पहुँच कर वे दोनों आभार प्रकट करके चले गए।

हम थोड़ी देर नीचे घूम कर गाड़ी में बैठने के लिए ऊपर चढ़े तो उसी व्यक्ति ने गाड़ी की खिड़की से पुकार कर कहा, इधर आ जाइए। यहां सीटें खाली हैं। हम उसी डिब्बे में चढ़ गए। काकद्वीप से सियालदह जाते हुए देखा, अधिकांश स्टेशनों के प्लेटफॉर्म्स पर अनेक दुकानदारों ने अपनी दुकानें लगा कर सारे प्लेटफार्म घेर रखे थे। रेलवे को उनसे अपने प्लेटफॉर्म्स खाली कराने के लिए सेना बुलानी पड़ेगी।

हावड़ा स्टेशन के निकट एक बड़ा सा बस स्टैण्ड है। पुलिस ने वहां अनेक नर-नारियों को भूमि पर पंक्तिबद्ध बैठा रक्खा था। पूछने पर पता चला कि ये गंगासागर यात्री हैं। पुलिस का उनके साथ असभ्य अपमानजनक व्यवहार ईस्ट इण्डिया कालीन भारत की झलक दिखा रहा था। सम्पूर्ण देश से तीर्थयात्री गंगासागर यात्रा पर आते हैं। इसी को आधार बना कर बंगाल सरकार गंगासागर मेला आयोजन के लिए प्रतिवर्ष केन्द्र से धन मांगती है। गंगासागर मेले की तुलना में कुम्भ मेला दस गुना बड़ा होता है। प्रयागराज कुम्भ में किसी यात्री के अस्वस्थ होते ही उल्लास से भर उठने वाले व्यक्ति-विशेष गंगासागर मेले की घोर अव्यवस्था पर कोई टिप्पणी नहीं करते। यह कितने आश्चर्य की बात है। क्या कोई बता सकता है कि इतने विशाल और भव्य आयोजन के लिए योगी सरकार ने केंद्र सरकार से कितने पैसे मांगे हैं?

दिल्ली निवासी लेखक वरिष्ठ नागरिक हैं।

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