एक और उलगुलान-डी-लिस्टिंग के सूत्रधार जनजातीय उद्धारक बाबा कार्तिक उरांव
29 अक्टूबर जयंती, वर्ष 2024 बाबा कार्तिक उरांव की जन्म शताब्दी वर्ष
भगवान बिरसा ने बरतानिया सरकार के विरुद्ध जल- जंगल -जमीन पर जनजातीय दावेदारी के लिए उलगुलान किया था, क्योंकि बरतानिया सरकार जनजातियों को जंगलों से बेदखल कर रही थी। समय चक्र बदला भारत सन 1947 में स्वाधीन हो गया परंतु जनजातियों के साथ कुछ भी अच्छा ना हो सका। भारतीय संविधान में उन्हें अनुसूचित जनजाति के रूप में संरक्षण और आरक्षण के प्रावधान तो किए गए परंतु उनकी रक्षा के लिए कोई ठोस प्रावधान नहीं किए गए, परिणाम स्वरूप ईसाई मिशनरियों और विदेशी अल्पसंख्यकों ने इसका भरपूर लाभ उठाया। एक अनुमान के अनुसार जनजाति आरक्षण का 70% लाभ मतांतरित हो चुके ईसाई या मुस्लिम उठा रहे हैं।
मिशनरीज दोहरे लाभ का लालच देकर भोले – भाले आदिवासियों का धर्मांतरण कराकर, जनजातीय सभ्यता और संस्कृति का समूल विनाश करने के लिए कटिबद्ध हैं। इस भयानक षड्यंत्र को बाबा साहब कार्तिक उरांव ने आज से 54 वर्ष पूर्व समझ लिया था इसलिए भगवान बिरसा की भांति,भरी लोकसभा में उन्होंने इस षड्यंत्र के विरुद्ध उलगुलान किया था,परंतु तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने एक न सुनी!!ऐसा लगता है कि तत्कालीन सरकार नहीं चाहती थी,कि जनजातियों के हितों और अस्मिता की रक्षा हो। फिर भी बाबा साहब कार्तिक उरांव ने अपना उलगुलान जारी रखा।
लोकसभा में 24 नवंबर, 1970 का दिन जनजातियों के लिए ऐतिहासिक था, जब लोहरदगा के सांसद बाबा कार्तिक उरांव ने कहा “जिन्होंने ईसाई धर्म ग्रहण किया है, उनको (अनुसूचित जनजाति में) सूचीबद्ध नहीं किया गया है, और ना ही (अनुसूचित जनजाति में) सूचीबद्ध किया जा सकता है।” बाबा कार्तिक ने यह वक्तव्य तब दिया जब संसद में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति आदेश (संशोधन) विधेयक पर लोकसभा में बहस हो रही थी। यह विधेयक ही ईसाई व इस्लाम मजहब में मतांतरित हो चुके लोगों को अनुसूचित जनजाति की सूची से हटाने के लिए राष्ट्रीय डी-लिस्टिंग आन्दोलन का बीजारोपण करता है।
बाबा कार्तिक उरांव की भगीरथ प्रयास से संसद द्वारा एक संयुक्त संसदीय समिति का गठन 1968 में किया गया। डॉ. कार्तिक उरांव भी इसके सदस्य थे। इस समिति 17 नवंबर 1969 को अपनी रिपोर्ट संसद में पेश की।इस रिपोर्ट में अन्य सिफारिशों के अलावा एक महत्वपूर्ण सिफारिश यह भी थी- “2 अ कंडिका 2 में निहित किसी बात के होते हुए कोई भी व्यक्ति किसने जनजाति, ‘आदि’ मत तथा विश्वासों का परित्याग कर दिया हो और ईसाई या इस्लाम धर्म ग्रहण कर लिया हो, वह अनुसूचित जनजाति का सदस्य नहीं समझा जाएगा”। (पृष्ठ 29, पंक्ति 38 की अनुसूचि 2, कंडिका 2 अ)। किंतु यह अत्यंत खेद का विषय है कि संबंधित मंत्री ने इस सिफारिश को मानने में असमर्थता व्यक्त की और उलझा दिया।
बाबा कार्तिक उरांव ने 10 नवंबर 1970 को 348 संसद सदस्यों (322 लोकसभा से और 26 राज्यसभा से) के हस्ताक्षरयुक्त एक ज्ञापन तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी को सौंपा जिसमें संयुक्त संसदीय समिति की उक्त सिफारिश को स्वीकार करने की मांग की गई, परंतु सरकार इस विषय पर बहस कराने का साहस नहीं दिखा पाई। उसके पश्चात् 16 नवंबर 1970 को लोकसभा में बहस शुरू हो गई और 17 नवंबर 1970 को भारत सरकार की ओर से एक संशोधन पेश किया गया कि विधेयक में से संयुक्त संसदीय समिति की उस सिफारिश को हटा लिया जाय। यह पूरे जनजातीय समाज के हितों और अस्मिता पर कुठाराघात था।
अपनी पुस्तक ‘बीस वर्ष की काली रात’ में बाबा कार्तिक उरांव लिखते हैं कि -अपने देश की महान जनजातियां जिन्होंने आजादी की लड़ाई में भी बढ़-चढ़ कर भाग लिया, गांधीजी के रामराज्य के सुख एवं सामाजिक सम्मान से आज भी वंचित हैं। संविधान सभा द्वारा इच्छित आरक्षण एवं सुविधाओं का जनजाति समाज को लाभ न मिल पाने का प्रमुख कारण है ‘जनजाति से अलग होने वाले कन्वर्टेड व्यक्तियों द्वारा उन सुविधाओं का अत्यधिक लाभ उठाना।’ जनजाति समाज के वे लोग जो कन्वर्ट होकर इसाई या मुस्लिम बन गए हैं, वे ही इसका तकरीबन पूरा लाभ ले रहें हैं और 80% से अधिक मूल जनजाति जनसंख्या आज भी वंचित-शोषित की तरह दो जून की दाल-रोटी और सम्मानपूर्ण जीवन के लिए संघर्षरत है। मैं इसका दोष किसी और को देना नहीं चाहता, किन्तु जनजाति समाज खुद इसके लिए जिम्मेदार है। हर जनजाति इसे अच्छी तरह जान ले कि उनके कल्याण के लिये उसे स्वयं संघर्ष करना पड़ेगा। यह बात सही है कि किसी भी समाज का निर्माण देश के विधेयक से नहीं हो सकता। कांग्रेस ने जनजातियों के लिये क्या किया और ईसाईयों के लिए क्या किया “बीस वर्ष की काली रात’ इसकी साक्षी है। मैं स्वयं एक कांग्रेसी हूं और यह मान कर चलता हूँ कि जिस कांग्रेस पार्टी में किसी समाज को बर्बाद करने की क्षमता है, उसी पार्टी के दिमाग से उस लड़खड़ाते जनजाति समाज का निर्माण भी हो सकता है।अतः यहां यह कहना अतिशयोक्ति न होगी कि जनजातीय समाज की दुर्दशा के लिए बहुत हद तक कांग्रेस ही जिम्मेदार है।
बाबा कार्तिक उरांव ने जो आंकड़े संसद में प्रस्तुत किए, उनके अनुसार अनुसूचित जनजातियों को मिले आरक्षण के लाभार्थियों में अधिकांश लोग ईसाई थे। सिद्धांततः जो व्यक्ति धर्मांतरित होकर ईसाई बन जाता है, वह अपने जनजातीय देवी-देवताओं की पूजा करना, अपने रीति-रिवाजों का पालन करना और अपनी संस्कृति के अनुसार जीवनयापन करना छोड़ चुका होता है।
ऐसे में यह प्रश्न उठता है कि वह जनजातीय कहां रह जाता है? वह तो ईसाई बन जाता है। फिर ऐसे व्यक्ति को आरक्षण इत्यादि का लाभ क्यों मिले? यही यक्ष प्रश्न आज भी खड़ा हुआ है।
ईसाई मिशनरीज और विदेशी अल्पसंख्यकों ने भारतीय संविधान में मिले अधिकारों का दुरुपयोग किया है और कर रहे हैं । अतः अब समय आ गया है कि इनके उन्मूलन के लिए चतुर्दिक घेराबंदी की जाए। देश के विभिन्न अंचलों में डी-लिस्टिंग की मांग जनजातीय समाज उठा रहा है ।एक सशक्त जनमत इस मुद्दे पर आकार ले रहा है कि संविधान के अनुच्छेद 342 के अनुसार जो सरंक्षण औऱ आरक्षण हिन्दू जनजाति वर्ग को सुनिश्चित किया गया है उसका लाभ ईसाई और मुस्लिम विदेशी अल्पसंख्यक क्यों उठा रहे हैं ? एक अनुमान के अनुसार देश में जनजाति आरक्षण का लगभग 70 प्रतिशत लाभ मतांतरित हो चुके ईसाई या मुस्लिम लोग उठा रहे हैं।
यह दोहरा लाभ उठा रहे हैं। इसलिए ईसाई मिशनरियों और विदेशी अल्पसंख्यकों के मकड़जाल को ध्वस्त करने के लिए डी-लिस्टिंग ब्रम्हास्त्र है और सर्जिकल स्ट्राइक भी। यद्यपि संविधान संशोधन आसान नहीं है परंतु हिन्दुओं की जनजातीय एकता एक विशाल जनमत तैयार कर संसद और विधान मंडलों को संविधान में संशोधन के लिए शक्ति प्रदान कर सकती है। डी-लिस्टिंग के साथ विदेशी मतावलंबियों को अल्पसंख्यक का दर्जा समाप्त करते ही ईसाई मिशनरीज और मुस्लिम मदरसों सहित अन्य विदेशी फंडिंग संस्थाओं की भी कमर टूट जाएगी,तब जाकर जनजातीय समाज के कल्याण का जो सपना बाबा साहब कार्तिक उरांव ने देखा था वह पूरा होगा।
बाबा कार्तिक उरांव कहते थे, कि जनजातीय समाज के लोग स्वयं को भगवान शिव और पार्वती मां की संतान मानते हैं। जनजातीय समाज के लोग प्रकृति,धरती,सूर्य और चंद्रमा सबकी पूजा करते हैं।जीवन के अंतिम वर्षों में कार्तिक उरांव ने स्पष्ट कहा था, “हम एकादशी को अन्न नहीं खाते, भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा, विजया दशमी, राम नवमी, रक्षाबंधन, देवोत्थान पर्व, होली, दीपावली…. हम सब धूमधाम से मनाते हैं। ‘ओ राम… ओ राम…’ कहते कहते हम ‘उरांव’ नाम से जाने गए। हम हिन्दू पैदा हुए, और हिन्दू ही मरेंगे।“
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डॉ आनंद सिंह राणा,
विभाग अध्यक्ष इतिहास विभाग श्रीजानकीरमण एवं इतिहास संकलन समिति महाकौशल प्रांत।