स्वयं का पुरजोर उद्यम है सफ़लता

जीवन में सफलता निज कार्यों पर आधारित होती है। सही समय पर किया गया उचित प्रयास सफलता की संभावना को
बढ़ाता है। संघर्ष ही सफलता की कुंजी है। किसी भी कार्य में सफलता का मार्ग सरल-सहज ही हो यह आवश्यक नहीं। लक्ष्यप्राप्ति के मार्ग में विपरीत परिस्थितियों के उतार -चढ़ाव का सामना करना निश्चित है। जैसे रेगिस्तानी इलाकों में पीने के पानी के लिए कुइयाँ खोदने का कार्य अत्यंत कठिनाई भरा होता है, तब कहीं पीने योग्य मीठे पानी का स्रोत प्राप्त होता है। सफलता के मार्ग में अनुकूल अवसरों की प्राप्ति से शीघ्रता से लक्ष्य तक पहुंचा जा सकता है पर संघर्ष तो करना ही पड़ता है।

सफल होने के लिए सर्वप्रथम स्वयं की क्षमता को पहचानना अति आवश्यक हैं। अपनी रुचियाँ एवं क्षमता के स्तर के अनुसार मार्ग चयन करना मुश्किल होता है, क्योंकि मार्ग में बाधाएं और समस्याएं आना निश्चित है। जिनमें कुछ तो प्रत्याशित होंगी तो बहुत कुछ अप्रत्याशित, जिनके लिए पहले से ही स्वयं को मानसिक रूप से तैयार रखते हुए धैर्य बनाये रखना होगा। विपरीत परिस्थितियों से सफलता मिलने में विलंब हो सकता है। अतः कार्ययोजना बनाकर ही चलना उचित होगा।

किसी भी कार्य को करते समय मानव मन-मस्तिष्क दोनों हमेशा एक ही निर्णय ले यह भी आवश्यक नहीं। कभी परिस्थितियां ऐसी निर्मित हो जाती हैं कि मन कहता है यह उचित नहीं है मस्तिष्क कहता है उचित है। ऐसी द्वंद्व की दशा में मन की सुनना चाहिए। क्योंकि मस्तिष्क जो सामने देखता है, उसपर शीघ्र प्रतिक्रिया करता है, परन्तु मन वस्तु स्थिति एवं दूरगामी परिणामों का आंकलन कर ही किसी निर्णय तक पहुंचता है। जिसमे कोई भटकाव नहीं होता।

सफलता प्राप्ति के मार्ग कई हो सकते हैं। अधिक परिश्रम से बचने के लिए छोटा मार्ग चयन कर लेते है जिससे कार्य और उलझ जाता है। लम्बा मार्ग कार्य की उलझन को कम करता है थोड़ा अधिक समय लग सकता है, पर टेढ़े-मेढे रास्तों की अपेक्षा सीधी राह चलने में गतिशीलता बनी रहती है। अतः धैर्य के साथ प्रयत्नशील रहना आवश्यक होता है।

किसी कार्य में सफल होने के लिए सीखने की ललक होना चाहिए। कार्य क्षेत्र से जुड़ी सभी जानकारी, तरीकों के साथ-साथ विभिन्न क्षेत्रों का ज्ञान भी अति महत्वपूर्ण है। कुछ भी नया सीखने से ज्ञानवृद्धि होती है, भूतकाल और वर्तमान की इसी कड़ी से भविष्य निमार्ण होता है।

कार्य को करते समय कई बार जोखिम भी उठाना पड़ सकता है। जिसके लिए मार्ग परिवर्तन भी करना पड़ता है। ऐसे में सदैव किसी कार्य को करते समय दो विकल्प लेकर चलना चाहिए। ताकि समयानुसार बिना विचलित हुए तत्काल निर्णय लिया जा सके। हमेशा स्वयं की मर्जी नहीं चलती। लक्ष्य प्राप्ति में सफल होने के लिए मार्ग में समन्वय, समझौता भी करना पड़ता है।

जीवन मे सफलता के अर्थ को दो रूप हैं जो स्वयं की नौकरी या व्यवसाय में जहां प्रतिष्ठित होना चाहते है जो व्यक्तिगत अभिरुचि पर निर्भर होता है। दूसरा पारिवारिक, सामाजिक उतरदायित्वों के निर्वहन में सफलता प्राप्त करना। ऐसी सफलता से आत्मसंतोष मिलता है जो सही अर्थों में मानव जीवन को सार्थकता प्रदान करता है। व्यक्ति द्वारा किया गया अच्छा कार्य सम्पूर्ण समाज के लिए मील का पत्थर साबित होता है।

जो कुछ भी सीखा वही ज्ञान अनुभव के रूप में परिभाषित होता है। सफलता के मार्ग में असफलता भी मिलती है तो वह चिंतन-मनन कर किये गए प्रयासों का अवलोकन करने का एक अवसर भी प्रदान करती है। सफलता के मार्ग में लोगों का सहयोग भी अपेक्षित है और लिए गए सहयोग का मूल्य किसी न किसी रूप में लौटाना निश्चित है। प्रकृति का नियम है लेना-देना, यह प्रक्रिया सतत चलती रहती है।

सफलता की सीढ़ियां चढ़ने में जब तक लक्ष्य प्राप्ति न हो जाये सतत कर्मशील रहना होता है। एकबार सफलता मिलने बाद निश्चिंत होने के बजाय उस सफलता को बनाये रखने की जिम्मेदारी बढ़ जाती है। अतः सफलता को सहेजने के लिए निरंतर कार्य करते रहना होता है तभी सफ़लता की प्राप्ति मनोकूल होती है।

 

आलेख

श्रीमती रेखा पाण्डेय (लिपि)
व्याख्याता हिन्दी
अम्बिकापुर, छत्तीसगढ़

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