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नर्तन ही कीर्तन है : मनकही

प्रकृति संगीतमय है तथा नृत्य प्रकृति का मूल तत्व है। प्रकृति के साथ चराचर जगत के जीव आनंद के साथ

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भौतिक युग और आधुनिक जीवनशैली वरदान या अभिशाप : मनकही

विकास के साथ दुनिया बड़ी तीव्रता से बदल रही है, गाँव से लेकर शहर तक। जहाँ हम निवास करते हैं,

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जीवन मस्ती में जियें

जन्म से मृत्यु के बीच की कालावधि ही जीवन कहलाती है। जीवन क्या है? कैसे इसको कहाँ तक ले जा

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सबको खुश रखिये, यही आत्मज्ञान है

कभी कभी सोचती हूँ खुशी क्या है? क्या खुशी परिवार तक ही सीमित होना चाहिये? बच्चे देखना, घर देखना, पति

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स्वयं का पुरजोर उद्यम है सफ़लता

जीवन में सफलता निज कार्यों पर आधारित होती है। सही समय पर किया गया उचित प्रयास सफलता की संभावना को

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हंसा चल रे अपने देश : मनकही

मनुष्य जैसे यात्रा से पूर्व सारी चीजों को समेटना प्रारंभ कर देता है। वैसे ही जीवन यात्रा समाप्त होने से पूर्व जीवन मे जो मान-सम्मान, पद, प्रतिष्ठा, ईमानदारी, सभी कुछ सहेजने का  समय आ जाता है। मन में एक साध रहती है  किसी के साथ अन्याय न हो। ईमानदारी से जितना बन पड़े उतना काम तो कर लें क्योंकि दो दिन का जग मेला, अब चला चली का बेरा। मनुष्य अच्छे कर्म के द्वारा ही आने वाली पीढ़ियों के समक्ष अनुकरणीय आदर्श प्रस्तुत कर सदैव याद किया जाता है।

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