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प्रयागराज कुंभ मेले का इतिहास, महत्व एवं महत्वपूर्ण स्नान तिथियाँ

प्रयागराज कुंभ मेला भारतीय संस्कृति और धार्मिक परंपराओं का एक अद्वितीय आयोजन है। इसे दुनिया का सबसे बड़ा आध्यात्मिक मेला कहा जाता है। यह मेला लाखों श्रद्धालुओं और साधु-संतों को आकर्षित करता है, जो गंगा, यमुना, और सरस्वती नदियों के संगम पर पवित्र स्नान के लिए एकत्र होते हैं।

कुंभ मेले की परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है। इसके प्रारंभ का उल्लेख पुराणों और हिंदू धार्मिक ग्रंथों में मिलता है। पौराणिक कथा के अनुसार समुद्र मंथन के दौरान देवताओं और दानवों के बीच अमृत कलश को लेकर हुए संघर्ष के कारण कुंभ मेला मनाया जाता है। मान्यता है कि अमृत की कुछ बूंदें प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में गिरी थीं। इन्हीं स्थानों पर कुंभ मेले का आयोजन होता है।

ऐतिहासिक दृष्टिकोण से कुंभ मेले का सबसे पहला लिखित उल्लेख 7वीं शताब्दी में हर्षवर्धन के शासनकाल में चीनी यात्री ह्वेनसांग द्वारा किया गया था। उन्होंने इसे धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व का एक विशाल आयोजन बताया। मध्यकाल में भी यह आयोजन प्रमुख रूप से मनाया जाता रहा।

कुंभ मेले का महत्व:
कुंभ मेला मोक्ष प्राप्ति का माध्यम माना जाता है। श्रद्धालुओं का विश्वास है कि संगम में स्नान करने से पापों का नाश होता है। साधु-संतों द्वारा दी गई शिक्षाएं और प्रवचन आत्मा की शुद्धि में सहायक होते हैं। यह मेला भारत की विविध संस्कृतियों और परंपराओं का संगम है। देश के कोने-कोने से आए लोग एक दूसरे की संस्कृति और रीति-रिवाजों से परिचित होते हैं। कुंभ मेला सनातन धर्म के चार प्रमुख स्थलों (प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन, और नासिक) की परिक्रमा का अवसर प्रदान करता है। गंगा जल की औषधीय और शुद्ध करने वाली विशेषताएं वैज्ञानिक रूप से सिद्ध हैं। कुंभ मेले के दौरान संगम में स्नान पर्यावरण और स्वास्थ्य पर भी सकारात्मक प्रभाव डालता है।

कुंभ मेले में भाग लेने वाले अखाड़े और सम्प्रदाय:
कुंभ मेले में विभिन्न अखाड़े और सम्प्रदाय भाग लेते हैं, जो सनातन धर्म की विविधता को प्रदर्शित करते हैं। इनमें से मुख्य निम्नलिखित हैं:

शैव अखाड़े:
शैव परंपरा से जुड़े अखाड़े भगवान शिव के अनुयायी हैं। इन अखाड़ों के प्रमुख साधु नागा साधु होते हैं। प्रमुख शैव अखाड़े इस प्रकार हैं:
जूना अखाड़ा, निरंजनी अखाड़ा, महानिर्वाणी अखाड़ा,

वैष्णव अखाड़े:
वैष्णव सम्प्रदाय से जुड़े साधु भगवान विष्णु के उपासक होते हैं। प्रमुख वैष्णव अखाड़े इस प्रकार हैं:
वैष्णव बड़ा उदासीन अखाड़ा, निर्मोही अखाड़ा,

उदासीन अखाड़े:
ये अखाड़े सिख परंपरा और संत गुरु नानकदेव के उपदेशों पर आधारित होते हैं।

निर्गुणी सम्प्रदाय:
इस सम्प्रदाय में वे संत और साधु आते हैं, जो निर्गुण ब्रह्म की उपासना करते हैं।

अघोरी साधु:
ये साधु विशेष रूप से श्मशान में तप करते हैं और कुंभ मेले में अपनी उपस्थिति दर्ज कराते हैं।

स्नान की तिथियां:
कुंभ मेले में स्नान की तिथियां अत्यंत महत्वपूर्ण होती हैं। वर्ष 2025 में होने वाले कुंभ मेले के मुख्य स्नान पर्व निम्नलिखित हैं: महाकुंभ मेले की शुरुआत पौष पूर्णिमा के दिन 13 जनवरी, 2025 को होगी. महाकुंभ मेले का समापन महाशिवरात्रि के दिन 26 फ़रवरी, 2025 को होगा.
इस मेले में कई शाही स्नान होंगे.
14 जनवरी, 2025 को मकर संक्रांति पर शाही स्नान होगा.
29 जनवरी, 2025 को मौनी अमावस्या है और इस दिन भी शाही स्नान होगा.
3 फ़रवरी, 2025 को वसंत पंचमी पर भी शाही स्नान होगा.
4 फ़रवरी, 2025 को अचला सप्तामी पर भी शाही स्नान होगा.
12 फ़रवरी, 2025 को माघ पूर्णिमा के दिन महत्वपूर्ण शाही स्नान होगा.
8 मार्च, 2025 को महाशिवरात्रि के दिन आखिरी शाही स्नान होगा

प्रयागराज कुंभ मेला भारतीय धर्म, संस्कृति और एकता का अद्भुत उदाहरण है। यह आयोजन न केवल आध्यात्मिक महत्व रखता है, बल्कि सामाजिक और आर्थिक दृष्टि से भी देश के लिए उपयोगी है। कुंभ मेला, श्रद्धालुओं के लिए एक आत्मा को शुद्ध करने का अवसर है और पूरे विश्व के लिए भारतीय परंपरा का परिचायक है।

One thought on “प्रयागराज कुंभ मेले का इतिहास, महत्व एवं महत्वपूर्ण स्नान तिथियाँ

  • December 19, 2024 at 09:57
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    बहुत सुंदर जानकारी भईया
    💐💐💐💐💐💐💐

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