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धरती से लुप्त होते एक द्वीप की आखिरी पुकार

प्रशांत महासागर में इस भूगोल का सबसे छोटा सा देश है, जिसका नाम तुवालु है। यहाँ जाने के लिए कोई वीजा नहीं लगता, तब भी लोग इस देश में पर्यटन के लिए नहीं जाना चाहते, क्योंकि यह कुछ वर्षों में डूबने वाला है। वैसे वैज्ञानिक द्वीप के डूबने की सटीक भविष्यवाणी तो नहीं करते परन्तु कहते हैं कि इसको डूबने में 50 से 100 वर्षों का समय लग जाएगा। अब इस देश को डूबने में कितना समय लगता है यह प्राकृतिक घटनाओं पर निर्मर है। ग्लोबल वार्मिंग के कारण इस देश के वासी जलवायु शरणार्थी बनने वाले हैं।

इस देश की ऊंचाई समुद्र तल से 2-3 तक ही है। इसकी लम्बाई बारह किलोमीटर एवं क्षेत्रफ़ल 26 किलोमीटर है। इस देश की आबादी लगभग 12 हजार है, यहाँ एक हवाई स्ट्रिप, एक थाना एवं चार होटल मात्र हैं। इस देश में हाईस्कूल तक शिक्षा की व्यवस्था है तथा उच्च शिक्षा के लिए यहाँ के विद्यार्थियों को फ़िजी या आस्ट्रेलिया, जर्मनी आदि देशों में जाना पड़ता है। इस देश की अधिकतर आबादी ईसाई है।

मैं इस देश की चर्चा इसलिए कर रहा हूँ कि ग्लोबल वार्मिंग के कारण पिघलते हुए ग्लेशियरों से समुद्र का तल ऊपर उठ रहा है और द्वीप नुमा कई देशों का अस्तित्व ही खतरे में हैं। जहाँ मूल निवासी कुछ वर्षों में किसी अन्य देश में स्थाई रुप से शरणार्थी बन जाएंगें। अपनी मूल पुरखों की भूमि से सदा के लिए निर्वासित हो जाना कितना दुखदाई होगा, कल्पना करके ही रुह कांप उठती है। इनके वंशज बताएंगे कि कभी हमारे पुरखे उस भूमि से आए थे, जो समुद्र में समाहित हो चुकि है कृष्ण की द्वारिका की तरह।

तुवालु दक्षिण प्रशांत महासागर में स्थित एक छोटा द्वीप राष्ट्र है, जो नौ प्रवाल द्वीपों (एटोल) से मिलकर बना है। यह सबसे छोटे और सबसे कम जनसंख्या वाले देशों में से एक है। तुवालु की राजधानी फुनाफुटी है, और इसकी आधिकारिक भाषाएँ तुवालुयन और अंग्रेज़ी हैं।

इस द्वीप का प्रारंभिक इतिहास यह है कि तुवालु के द्वीपों पर सबसे पहले पोलिनेशियाई लोग बसे थे और इनकी संस्कृति और परंपराएं दक्षिणी प्रशांत महासागर के अन्य पोलिनेशियाई समाजों से मिलती-जुलती थीं। तुवालु का नाम पहले एलिस द्वीप समूह (Ellice Islands) था, जिसे यह ब्रिटिश उपनिवेश के दौरान कहा जाता था। इन द्वीपों की खोज 16वीं और 17वीं शताब्दी में यूरोपीय अन्वेषकों द्वारा की गई थी।

19वीं सदी के अंत में, ब्रिटेन ने तुवालु को अपने अधीन कर लिया और इसे अपने उपनिवेशी साम्राज्य का हिस्सा बना दिया। यह फ़िजी और बाद में गिल्बर्ट और एलिस द्वीप समूह (आज का किरीबाती) के साथ प्रशासित था। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान, तुवालु की भूमि का उपयोग अमेरिका द्वारा सैनिक अड्डों के रूप में किया गया था। युद्ध के बाद, तुवालु ने ब्रिटिश नियंत्रण में वापस जाने का फैसला किया।

1974 में, तुवालु ने किरीबाती से अलग होकर अपना अलग भविष्य चुनने का निर्णय लिया। यह प्रक्रिया शांति और लोकतांत्रिक तरीके से हुई। 1 अक्टूबर 1978 को तुवालु ने पूर्ण स्वतंत्रता प्राप्त की और यह ब्रिटिश राष्ट्रमंडल का हिस्सा बना। तुवालु दक्षिण प्रशांत महासागर में स्थित है और यह 9 छोटे द्वीपों का समूह है, जो अधिकांशत: प्रवाल द्वीप (कोरल एटोल) हैं। देश की कुल भूमि का क्षेत्रफल लगभग 26 वर्ग किलोमीटर है, जिससे यह दुनिया के सबसे छोटे देशों में से एक है।
तुवालु के नौ द्वीपों में से तीन द्वीप (नानुमेआ, नानुमांगा, और निउलाकीता) एकल द्वीप हैं, जबकि शेष छह द्वीप (फुनाफुटी, नुता, नुइ, नानुमंगा, नुहातू और वातोआ) प्रवाल एटोल हैं। तुवालु के पास संसाधनों की कमी है, और देश की

अर्थव्यवस्था मुख्य रूप से कृषि, मछली पकड़ने और विदेशी सहायता पर निर्भर है। नारियल, टारो (एक प्रकार का कंद), और मछली यहाँ की मुख्य खाद्य सामग्री हैं। इसके अलावा, कुछ द्वीप पर्यटन को भी बढ़ावा देने का प्रयास कर रहे हैं।
तुवालु की अर्थव्यवस्था काफी छोटी और कमजोर है, जो कई बाहरी कारकों पर निर्भर करती है। यहाँ के लोग नारियल और टारो जैसी फसलों की खेती करते हैं और समुद्र से मछली पकड़ते हैं। तुवालु की सरकार का राजस्व मुख्य रूप से विदेशी सहायता, तुवालु का फंड और .tv डोमेन की बिक्री से आता है। तुवालु के कई नागरिक विदेशों में काम करते हैं, विशेष रूप से न्यूजीलैंड और ऑस्ट्रेलिया में, और वे अपनी आय का हिस्सा घर भेजते हैं।

तुवालु द्वीप समुद्र के बीच 12 किलोमीटर लम्बाई में एक सड़क के दोनों तरफ़ बसा हुआ है। तुवालु का सबसे बड़ा संकट समुद्र-स्तर में वृद्धि है, जो इसके अस्तित्व को खतरे में डाल रहा है। तुवालु के लोग अपनी संस्कृति, भूमि, और आजीविका को बचाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं, और जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए वैश्विक कार्रवाई की मांग कर रहे हैं। तुवालु द्वीप डूबने से पहले घुमक्कड़ों को यहाँ घूम आना चाहिए, वैसे यह बहुत सुंदर देश है।

कैसे पहुंचें?
भारत से तुवालु पहुंचने का हवाई मार्ग सिंगापुर होकर फ़िजी पहुंचता है,
इसके बाद यहाँ के लिए फ़िजी के नादी एयरपोर्ट से उड़ाने उपलब्ध हैं।