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जैव विविधता संरक्षण में बाघों की भूमिका : क्यों है यह आवश्यक?

बाघ को जंगल का राजा कहा जाता है, भारतीय संस्कृति और पर्यावरण के लिए एक महत्वपूर्ण प्राणी है। हर साल 29 जुलाई को मनाया जाने वाला बाघ दिवस, इस अद्वितीय और शानदार प्राणी के संरक्षण और इसके प्रति जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से यह दिन समर्पित है। यह दिवस हमें बाघों के अस्तित्व के महत्व और उनकी घटती संख्या के प्रति सजग करता है।

बाघों की संख्या में भारी गिरावट आई है। एक समय था जब दुनिया भर में लाखों बाघ थे, लेकिन आज यह संख्या घटकर कुछ हज़ारों में ही सीमित रह गई है। पिछले कुछ दशकों में बाघों के आवास में कमी, शिकार, और अवैध व्यापार जैसी गतिविधियों के कारण उनकी संख्या में भारी कमी आई है। अंतर्राष्ट्रीय बाघ दिवस हमें इस गंभीर स्थिति के प्रति जागरूक करता है।

अंतर्राष्ट्रीय बाघ दिवस का प्रारंभ
अंतर्राष्ट्रीय बाघ दिवस की शुरुआत 2010 में सेंट पीटर्सबर्ग, रूस में हुई टाइगर समिट में की गई थी। बाघ दिवस का उद्देश्य बाघों के संरक्षण के प्रयासों को प्रोत्साहित करना और इसे वैश्विक मंच पर प्राथमिकता देना है। इसके तहत विभिन्न कार्यक्रमों और गतिविधियों का आयोजन किया जाता है, जिससे लोगों में बाघों के संरक्षण के प्रति जागरूकता बढ़े।

बाघ दिवस अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देता है। बाघों का संरक्षण केवल एक देश का कार्य नहीं हो सकता; इसके लिए अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सहयोग और समन्वय की आवश्यकता होती है। यह दिवस विभिन्न देशों, संगठनों और व्यक्तियों को एक मंच पर लाकर बाघ संरक्षण के लिए संयुक्त प्रयास करने का अवसर प्रदान करता है।

अंतर्राष्ट्रीय बाघ दिवस की शुरुआत 2010 में सेंट पीटर्सबर्ग, रूस में हुई टाइगर समिट में की गई थी। इस समिट में 13 टाइगर रेंज देशों ने भाग लिया और बाघों की संख्या को दोगुना करने का लक्ष्य रखा गया। इस सम्मेलन ने बाघ संरक्षण के प्रति एक महत्वपूर्ण मोड़ लिया और अंतर्राष्ट्रीय बाघ दिवस की स्थापना की।

छत्तीसगढ़ में बाघों की स्थिति
छत्तीसगढ़ में भी बाघों के होने की जानकारी मिलती रहती है, जैसे कुछ महीनों पूर्व बार नवापारा के जंगलों में विचरते एक बाघ का वीडियो वायरल हुआ था। 2023 के आंकड़ों के अनुसार, छत्तीसगढ़ में लगभग 19 बाघ हैं। यह संख्या गत वर्षों में थोड़ी कम हो गई है, जिसका मुख्य कारण बाघों के आवास में कमी और शिकार की घटनाएं हैं। यहाँ बाघों के आंकड़े घटते बढ़ते रहते हैं।

छत्तीसगढ़ में बाघों का आवास कुछ स्थानों पर माना जाता है, जिसमें अच्छानकमार टाइगर रिजर्व बाघों का मुख्य निवास स्थान है। यहाँ की घनी वनस्पति और विविधतापूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र बाघों के लिए उपयुक्त वातावरण प्रदान करते हैं। इंद्रावती टाइगर रिजर्व भी बाघों का प्रमुख आवास है और यहाँ बाघ संरक्षण के कई प्रयास किए जा रहे हैं। उदंती-सीतानदी टाइगर रिजर्व भी बाघों के संरक्षण के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश के सीमा पर स्थित इस संजय राष्ट्रीय उद्यान में भी बाघों की उपस्थिति है्।

जैव विविधता संरक्षण में बाघों की भागीदारी
बाघों का जैव विविधता के संरक्षण में महत्वपूर्ण स्थान है। वे पारिस्थितिकी तंत्र में शीर्ष शिकारी (apex predator) की भूमिका निभाते हैं और उनके अस्तित्व का प्रभाव पूरी खाद्य श्रृंखला पर पड़ता है। बाघ स्वस्थ्य और मजबूत शिकारों का चयन करते हैं, जिससे कमजोर और बीमार जानवरों की संख्या कम होती है। यह प्राकृतिक चयन प्रक्रिया पारिस्थितिकी तंत्र को स्वस्थ बनाए रखने में मदद करती है।

बाघ शिकार जानवरों की जनसंख्या को नियंत्रित करते हैं। यदि बाघ नहीं होंगे, तो उनके शिकार की संख्या तेजी से बढ़ सकती है, जिससे वनस्पतियों पर अत्यधिक दबाव पड़ेगा और पूरे पारिस्थितिकी तंत्र का संतुलन बिगड़ सकता है। बाघ शिकार जानवरों की जनसंख्या को नियंत्रित करते हैं। यदि बाघ नहीं होंगे, तो उनके शिकार की संख्या तेजी से बढ़ सकती है, जिससे वनस्पतियों पर अत्यधिक दबाव पड़ेगा और पूरे पारिस्थितिकी तंत्र का संतुलन बिगड़ सकता है।

बाघों की उपस्थिति खाद्य श्रृंखला को संतुलित रखती है। उनके अभाव में, मध्यम स्तर के शिकारी (जैसे कि भेड़िये और तेंदुए) की संख्या बढ़ सकती है, जिससे छोटे शिकार जानवरों और वनस्पतियों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। बाघों के लिए बड़े और विविधतापूर्ण आवासों की आवश्यकता होती है। उनके संरक्षण के प्रयास अन्य प्रजातियों और वन्यजीवों के आवास को भी संरक्षित करने में मदद करते हैं, जिससे समग्र जैव विविधता में वृद्धि होती है।

बाघ संरक्षण कार्यक्रम अक्सर बड़े वन क्षेत्रों को संरक्षित करने पर केंद्रित होते हैं। ये वन क्षेत्र जलवायु परिवर्तन के खिलाफ लड़ाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, क्योंकि वे कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करते हैं और जलवायु को स्थिर रखते हैं। साथ ही जल संरक्षण में भी मदद मिलती है, बाघों के संरक्षण के लिए बनाए गए वन क्षेत्र नदी बेसिन और जल स्रोतों की सुरक्षा में भी मदद करते हैं, जिससे पानी की गुणवत्ता और उपलब्धता में सुधार होता है।

बाघ पर्यटन उद्योग में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। उनकी उपस्थिति से स्थानीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिलता है, जिससे स्थानीय समुदायों को रोजगार और आय के स्रोत मिलते हैं। बाघ कई संस्कृतियों में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं और उनकी उपस्थिति हमारे सांस्कृतिक धरोहर का हिस्सा है। उनका संरक्षण हमारी सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करने में मदद करता है।

छत्तीसगढ़ में बाघ संरक्षण के उपाय
छत्तीसगढ़ में बाघों के संरक्षण के लिए कई महत्वपूर्ण उपाय किए जा रहे हैं, वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 के तहत बाघों की सुरक्षा के लिए सख्त कानून बनाए गए हैं। शिकार और अवैध व्यापार को रोकने के लिए कठोर दंड का प्रावधान है। बाघ अभ्यारण्यों का विस्तार और उनकी सीमा को संरक्षित करने के लिए निरंतर प्रयास किए जा रहे हैं, जिससे बाघों को सुरक्षित आवास मिल सके।

स्थानीय समुदायों को बाघों के महत्व और उनके संरक्षण के तरीकों के बारे में जागरूक करने के लिए नियमित कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। बाघों की गतिविधियों पर नजर रखने के लिए ट्रैकिंग डिवाइस और कैमरा ट्रैप जैसी तकनीकों का उपयोग किया जा रहा है। राष्ट्रीय स्तर पर चलाए जा रहे प्रोजेक्ट टाइगर के अंतर्गत छत्तीसगढ़ में भी बाघ संरक्षण के कई प्रयास किए जा रहे हैं।

बाघ केवल एक प्राणी नहीं हैं, बल्कि वे पारिस्थितिकी तंत्र के महत्वपूर्ण अंग हैं। उनका संरक्षण जैव विविधता के संरक्षण के लिए अनिवार्य है। बाघों के संरक्षण से न केवल उनका अस्तित्व सुरक्षित होता है, बल्कि पूरे पारिस्थितिकी तंत्र का संतुलन भी बना रहता है। इस प्रकार, बाघों का होना जैव विविधता के संरक्षण और स्वस्थ पर्यावरण के लिए अत्यंत आवश्यक है। छत्तीसगढ़ में बाघों की सुरक्षा और संरक्षण के लिए किए जा रहे इन प्रयासों से न केवल बाघों की संख्या में वृद्धि होगी, बल्कि जैव विविधता भी संरक्षित रहेगी।

अंतर्राष्ट्रीय बाघ दिवस हमें बाघों के संरक्षण के महत्व को समझने और उनके प्रति हमारे दायित्वों को याद दिलाने का एक महत्वपूर्ण अवसर प्रदान करता है। बाघों का संरक्षण केवल उनकी सुरक्षा नहीं है, बल्कि यह हमारे पारिस्थितिकी तंत्र की सुरक्षा और जैव विविधता की रक्षा का भी एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। आइए, हम सब मिलकर बाघों के संरक्षण के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को मजबूत करें और एक सुरक्षित और संतुलित पर्यावरण की दिशा में कदम बढ़ाएं।

लेखक भारतीय लोक संस्कृति, पुरातत्व एवं इतिहास के जानकार हैं।

One thought on “जैव विविधता संरक्षण में बाघों की भूमिका : क्यों है यह आवश्यक?

  • July 29, 2024 at 08:41
    Permalink

    बाघ सिंह शेर तेंदुआ चिता एक समय बाकियों के लिए संकट का कारण थे। अब संकट इस संयुक्त परिवार पर आ पड़ा है। लेकिन चिंता वाजिब और जायज है।

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