futuredलोक-संस्कृति

स्वर, लय और भाव की दिव्य संगति : भारतीय संगीत

रेखा पाण्डेय (लिपि)

संगीत का आधार भाव उत्पन्न करने वाली ध्वनियाँ हैं, जिन्हें सुर, लय और ताल में बाँधा गया है। प्रकृति में विभिन्न ध्वनियाँ विद्यमान हैं, जिनका विशेष क्रम होता है, जो मानव के मन-मस्तिष्क को आनंद और शांति प्रदान करती हैं। इन्हीं मानवीय संवेदनाओं के आधार पर संगीत की उत्पत्ति हुई। गीत में ‘सम्’ जोड़कर “संगीत” अर्थात गान सहित शब्द बना।

पंडित शारंगदेव कृत संगीत रत्नाकर ग्रंथ में भारतीय संगीत की परिभाषा “गीतं, वाद्यं तथा नृत्यं संगीतमुच्यते” कही गई है। अर्थात, गायन, वादन एवं नृत्य—तीनों कलाओं के समावेश को संगीत माना गया है। संगीत को कुछ शब्दों में परिभाषित नहीं किया जा सकता, क्योंकि यह विश्व की समस्त संस्कृतियों की अपनी पहचान और भूमिका को प्रदर्शित करता है।

मानव मन की आस्था, ज्ञान, आध्यात्मिक और भावात्मक अभिव्यक्ति संगीत से होती है, जो भौगोलिक, ऐतिहासिक, धार्मिक और सांस्कृतिक सभी परिवेशों का प्रतिनिधित्व करती है। संगीत एक ऐसी कला है, जो स्वर या वाद्य ध्वनि अथवा दोनों के सामंजस्य से विचारों की अभिव्यक्ति करती है। संस्कृतियों और परंपराओं को संरक्षित करने में संगीत की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। लोकसंगीत से लेकर शास्त्रीय संगीत तक की विभिन्न शैलियों में संगीत की विविधता के दर्शन होते हैं।

परिस्थितियों के अनुसार संगीत द्वारा उन्हीं भावों की अभिव्यक्ति होती है। चाहे युद्ध क्षेत्र हो या कोई पर्व-उत्सव, विदाई समारोह हो या प्रार्थना, विरह गीत हो या मिलन गीत अथवा भजन-कीर्तन—नवरसों के अनुरूप गीतों की परंपरा सदा से रही है। संगीत मनोरंजन का माध्यम रहा है। गायन, वादन और नर्तन के द्वारा मानव जीवन में शांति और आनंद का अनुभव होता है।

संगीत ऐसी कला है, जो लय और ध्वनि को मिलाकर ऐसा रूप प्रस्तुत करती है, जो बिना शब्दों के ही मानव हृदय व मस्तिष्क को आनंद से भर देती है। वैदिक काल से ही भारत में संगीत का महत्व रहा है। ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद और अथर्ववेद—इन चार वेदों में से पूरा सामवेद संगीत पर आधारित है। आरोह-अवरोह से युक्त मंत्रों का गान “साम” कहलाता है और इसका संबंध सामवेद से है। वस्तुतः सामवेद में ऋग्वेद की उन ऋचाओं का संकलन है, जो गाने योग्य समझी गई थीं। अतः सबसे प्राचीन संगीत सामवेद में मिलता है। उस समय स्वर को “यम” कहा जाता था।

संगीत में नाद का अत्यधिक महत्व है। ऋग्वेद में गीत के लिए गीत, गाथा, साम, गीर, गात, गायत्र आदि नामों का उल्लेख मिलता है। ऋग्वेद काल में विभिन्न वाद्यों का भी प्रयोग होता था। भगवान शिव को संगीत का जनक माना गया है और सरस्वती देवी को ज्ञान, वाणी, कला और संगीत की देवी माना गया है, जिनकी पूजा हिंदू धर्म के साथ-साथ जैन और बौद्ध धर्मों में भी होती है।

संगीत एवं आध्यात्म भारतीय संस्कृति का मूल आधार हैं। संगीत साधना है, योग है, ईश्वर प्राप्ति का मार्ग है। मनःशांति, योग, ध्यान और मानसिक रोगों की चिकित्सा संगीत के विभिन्न रागों द्वारा संभव होती है। भारतवर्ष में इसी संगीत के सुर-लय से मीरा, तुलसी, सूर और कबीर जैसे संतों ने भक्त शिरोमणि की उपाधि प्राप्त की।

प्रत्येक मनुष्य के जीवन में संगीत का अर्थ भिन्न-भिन्न होता है। माँ की लोरी हो, मित्र-मंडली का कोई संगीतमय कार्यक्रम हो अथवा कोई भी आयोजन—संगीत हमारे अंतरंग क्षणों से लेकर भव्य वैश्विक प्रदर्शनों तक हमारे सामूहिक मानवीय अनुभवों को परिभाषित करता है। बोली-भाषा भिन्न हो सकती है, किंतु भावनाएँ सार्वभौमिक होती हैं। संगीत भी कालातीत है। यह पीढ़ियों से चलता आ रहा है, जो हमारी संस्कृति और सभ्यता की पहचान कराता है।

संगीत मानव जीवन में अत्यंत लाभदायक है। वैज्ञानिक अनुसंधानों से यह प्रमाणित हो चुका है कि संगीत से तनाव, अवसाद और चिंता कम होती है। यह मन-मस्तिष्क में नई ऊर्जा का संचार करता है, क्योंकि संगीत मस्तिष्क में कॉर्टिसोल के स्तर को कम करता है, जिससे मस्तिष्क बेहतर कार्य करता है। यह मस्तिष्क की नसों की थकान को कम करता है। इसीलिए दवाओं के स्थान पर म्यूजिक थैरेपी को अत्यधिक लाभकारी माना गया है। स्वर-तरंगें संगीत के रूप में नवीन ऊर्जा का संचार करती हैं।

संगीत से स्मृति क्षमता में वृद्धि होती है। संगीत और योग का घनिष्ठ संबंध है। इसके अभ्यास से श्वसन प्रणाली सुचारू रूप से कार्य करती है। जब लंबी साँस पेट की गहराई तक लेकर गायन किया जाता है, तो फेफड़ों की कार्यक्षमता बढ़ती है और शरीर में ऑक्सीजन का संचार होता है। संगीत सुनने से मस्तिष्क में एंडोर्फिन्स हार्मोन का स्राव होता है, जिससे हृदय स्वस्थ रहता है।

संगीत दर्द निवारक भी होता है। मनपसंद संगीत सुनने से मस्तिष्क में डोपामाइन का स्तर बढ़ता है, जो आनंद और खुशी उत्पन्न करता है। यह भावात्मक संतुलन, सहयोग और आत्मसंतुलन की क्षमता को बढ़ाकर आत्म-अभिव्यक्ति और कलात्मक स्वतंत्रता प्रदान करता है। यह सामाजिक एकता स्थापित करने में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

संगीत अनिद्रा, बेचैनी और मानसिक थकान को दूर करता है। यह विषम परिस्थितियों में शक्ति प्रदान करता है, आपसी समझ को बढ़ावा देता है तथा विभिन्न संस्कृतियों और प्रतिभाओं को साझा करने का अवसर देता है।

संगीत का मानव जीवन में अत्यंत शक्तिशाली प्रभाव होता है। इसी कारण प्रतिवर्ष 21 जून को विश्व संगीत दिवस मनाया जाता है, जो ग्रीष्म संक्रांति के दिन एक वैश्विक उत्सव के रूप में आयोजित होता है। इसकी स्थापना 1982 में पेरिस (फ्रांस) में की गई थी। इसके संस्थापक फ्रांस के कला और संस्कृति मंत्री जैक लैंगा और संगीतकार, पत्रकार, रेडियो निर्माता एवं संस्कृति मंत्रालय में निदेशक मौरिस फ्लेरेट थे। इसका उद्देश्य संगीत को लोकतांत्रिक बनाना और सांस्कृतिक आदान-प्रदान को बढ़ावा देना था।

वर्ष 2025 की थीम “Healing Through Harmony” है, जो भावनाओं को शांत करने, तनाव कम करने और वैश्विक स्तर पर समुदायों को एकजुट करने की संगीत की शक्ति को रेखांकित करती है।

ALSO READ : छत्तीसगढ़ की ताजा खबरे

ALSO READ : राज्यों की खबरें

ALSO READ : घुमक्कड़ी लेख 

ALSO READ : लोक संस्कृति लेख 

ALSO READ : धर्म एवं अध्यात्म लेख