प्राचीन अभिलेख, पुरालिपि, मुद्राशास्त्र और प्रतिमाशास्त्र संबंधी तीन दिवसीय कार्यशाला प्रारंभ

संस्कृति एवं पुरातत्व संचालनालय छत्तीसगढ़ शासन के तत्वाधान में प्राचीन अभिलेख, पुरालिपि, मुद्राशास्त्र एवं प्रतिमाशास्त्र पर कार्यशाला का तीन दिवसीय आयोजन (8 से 10 मार्च तक) आज महंत घासीदास संग्रहालय रायपुर के प्रेक्षागृह में प्रारंभ हुआ। छत्तीसगढ़ में पुरातत्व के प्रति जागरुकता एवं पुरातत्व की जानकार नई पीढ़ी तैयार करने की दृष्टि से यह आयोजन महत्वपूर्ण है।

कार्यक्रम का शुभारंभ मुख्यातिथि विभागीय सचिव निहारिका बारीक सिंह एवं कार्यक्रम के अध्यक्ष पद्मश्री अरुण कुमार शर्मा ने दीपक प्रज्जवलित कर किया। इस अवसर पर संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग के संचालक श्री जितेन्द्र शुक्ला भी उपस्थित थे। अपने स्वागत उद्बोधन में श्री जितेन्द्र शुक्ला ने छत्तीसगढ़ के पुरावैभव एवं गौरवशाली संस्कृति पर प्रकाश डाला।
मुख्यातिथि की आसंदी से श्रीमती निहारिका बारिक सिंह ने कहा कि छत्तीसगढ़ पुरासंपदा की विविधता और बाहुलता की दृष्टि से संपन्न राज्य है। उन्होंने कहा कि पुरातत्वीय संपदा का संरक्षण होना जरूरी है। संस्कृति सचिव ने कहा कि स्कूली छात्रों को प्राचीन धरोहरों का ज्ञान होना बहुत आवश्यक है। इसलिए स्कूली शिक्षा में पुरातत्व की शिक्षा दी जाना चाहिए। ग्रामीण क्षेत्रों में बहुमूल्य पुरा संपदा है। ग्रामीणजनों को इसके महत्व का ज्ञान हो और वे इसका संरक्षण स्वयं करें। इसके लिए उन्हें प्रेरित करने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि विशेषज्ञों की सलाह पर पुरातत्वीय कार्य में और तेजी लायी जाएगी।

कार्यक्रम के अध्यक्ष पद्मश्री अरुण कुमार शर्मा ने छत्तीसगढ़ निर्माण के पश्चात पुरातत्व के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्यो की चर्चा की। जिसमें सिरपुर, मदकू द्वीप, छीताबाड़ी राजिम आदि के उत्खनन का उल्लेख किया तथा विभाग से इस कार्य को आगे बढ़ाने की मांग की। श्री शर्मा ने विभाग में मुद्राशास्त्री एवं अभिलेखशास्त्री के रिक्त पदों को भरने का सुझाव प्रशासन को दिया।
इसके पश्चात तकनीकि सत्र प्रारंभ हुआ, जिसमें मैसूर से पधारे डॉ टी एस रविशंकर ने प्राचीन अभिलेख एवं पुरालिपि पर अपना सारगर्भित व्याख्यान प्रस्तुत किया तथा शिलालेखों, ताम्रलेखों के साथ लिपियों पर भी विस्तार क्षेत्र के अनुसार प्रकाश डाला। उन्होंने अभिलेख के विभिन्न प्रकारों का उल्लेख करते हुए लिपि के उद्गम एवं विकास क्रम पर प्रकाश डाला।
अगले वक्ता के रुप में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण लखनऊ के अभिलेख निदेशक श्री जय प्रकाश ने छत्तीसगढ़ के प्राचीन इतिहास, विभिन्न कालों में राज्यों के सीमा क्षेत्र तथा शिलालेखों, ताम्रपत्रों के लेखों पर चर्चा की। इसके साथ ही बताया कि प्रुरातत्व के क्षेत्र में कुछ विलक्षण लेख भारत में छत्तीसगढ़ से ही प्राप्त होते हैं, जिसमें ग्राम किरारी से प्राप्त दूसरी शताब्दी का काष्ठ स्तंभ लेख प्रमुख है। इसमें वर्णित लोगों के नाम पदनाम सहित हैं तथा ये नाम भी भारत में अन्य कहीं नहीं पाए गए।
प्रतिमाशास्त्री प्रोफ़ेसर ए एल श्रीवास्तव ने बहुत रोचक ढंग से प्रतिमाओं के विषय में बताया। उन्होंने कहा कि प्रतिमाओं की पहचान लक्षण के अनुसार की जाती हैं, जिसमें आयुध, वाहन, ध्वज तथा अन्य लक्षणों के आधार प्रतिमा का नाम तय होता है। इसके लिए प्राचीन साहित्य का सहारा लिया जाता है। प्रत्येक प्रतिमा के निर्माण के पीछे कोई न कोई शास्त्र वर्णित प्रसंग अवश्य होता है।
इस अवसर पर भिलाई निवासी श्री आशिष दास ने पुरा अभिलेखों एवं सिक्कों के अपने व्यक्तिगत संग्रह की प्रदर्शनी लगाई, जिसमें मल्हार से प्राप्त कुछ सिक्के प्रमुखता से प्रदर्शित किए गए थे।
कार्यशाला के समापन के समय वक्ताओं का शाल श्री फ़ल एवं स्मृति चिन्ह प्रदान कर सम्मान किया गया। इस कार्यशाला का पुरातत्व प्रेमियों के साथ रविशंकर विश्व विद्यालय, छत्तीसगढ़ महाविद्यालय एवं महंत बजरंगदास दूधाधारी महाविद्यालय के विद्यार्थियों एवं शोधार्थियों ने लाभ उठाया।

कार्यशाला में प्रमुख रुप से पुराविद श्री जी एल रायकवार, रविशंकर विश्वविद्यालय से डॉ दिनेश नंदिनी परिहार, डॉ नितेश मिश्रा, इंडोलॉजिस्ट ललित शर्मा,  भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के डॉ मनोज कुर्मी, डॉ शम्भुनाथ यादव, श्री भागीरथी गरतिया, उप संचालक श्री जे आर भगत, संग्रहाध्यक्ष डॉ प्रताप पारख, राम पटवा विशेष रुप से उपस्थित थे। डॉ कामता प्रसाद वर्मा ने अतिथियों का आभार व्यक्त किया एवं कार्यक्रम का संचालन श्री प्रभात सिंह ने किया।