कोण्डागाँव की जयमति कश्यप को पीएच-डी की उपाधि एवं मणिकर्णिका सम्मान

कोंडागाँव जिला में महिला-बाल विकास पर्यवेक्षक के पद पर कार्यरत डॉ. जयमती कश्यप को उनके द्वारा किये गये शोध के लिये विगत 04 मार्च को पं. रविशंकर विश्वविद्यालय, रायपुर द्वारा आयोजित दीक्षान्त समारोह में पीएच-डी की उपाधि से अलंकृत किया गया।
विगत पाँच वर्षों से चल रहे उनके शोध का विषय था “बस्तर के परगनाओं की सामाजिक, आर्थिक एवं धार्मिक व्यवस्था का एक ऐतिहासिक अध्ययन”। उनके गाईड थे डॉ. वासुदेव साहसी एवं को-गाईड थीं डॉ. आभा रूपेन्द्र पाल।
इसके ठीक छह दिनों बाद 10 मार्च को उन्हें रायपुर की ही दो संस्थाओं “रोटरी क्लब ऑफ रायपुर ग्रेटर” और “क्रिएटिव आईज़ प्रमोशन्स” द्वारा 2019 के “मणिकर्णिका” सम्मान से भी विभूषित किया गया। इससे पूर्व उन्हें “किशोरी-बालिका सम्मान” से महिला-बाल विकास विभाग, कोंडागाँव द्वारा भी सम्मानित किया जा चुका है।
डॉ.  कश्यप अब तक जनजातीय विश्वविद्यालय, अमरकंटक (मध्यप्रदेश), इन्दिरा गाँधी राष्ट्रीय कला केन्द्र (नयी दिल्ली) सहित विभिन्न महाविद्यालयों, विश्वविद्यालयों एवं संस्थाओं द्वारा आयोजित विभिन्न कार्यशालाओं तथा संगोष्ठियों में भाग ले चुकी हैं।
इतना ही नहीं, उन्होंने देश की शीर्षस्थ साहित्यिक संस्था “साहित्य अकादेमी” द्वारा पिछले वर्ष आयोजित जीवन्त संगोष्ठी (लाईव टेलीकास्ट सेमिनार) में भी शिरकत की है, जिसमें देश के सुप्रतिष्ठित साहित्यकारों ने भाग लिया था। इस तरह वे सभी मंचों पर बस्तर का नाम रोशन करती आ रही हैं। 
डॉ. जयमती कश्यप के बारे में न केवल चौंकाने वाला अपितु रेखांकित किये जाने लायक तथ्य यह है कि उन्होंने पाठशाला का मुँह तक नहीं देखा किन्तु विभिन्न विपरीत परिस्थितियों में भी संघर्ष करते हुए और स्वाध्याय से ही अब तक कुल 6 विषयों (इतिहास, राजनीति विज्ञान, हिन्दी साहित्य, भूगोल, ग्रामीण विकास, समाज शास्त्र) में एम. ए. किया है।
इतना ही नहीं वे फिलहाल सातवें विषय (प्राचीन इतिहास) पर एम. ए. की तैयारी कर रही हैं। यहाँ यह भी उल्लेखनीय है गोंडी में लिखी उनकी पुस्तिका “नना मुया” का प्रकाशन पिछले दिनों राष्ट्रीय पुस्तक न्यास, भारत, नयी दिल्ली से हो चुका है और यह पुस्तिका जिले की सभी प्राथमिक एवं पूर्व माध्यमिक विद्यालयों में विद्यार्थियों के लिये शासकीय तौर पर प्रदाय की गयी है।
इसी तरह यह भी उल्लेखनीय है कि वे अपने शासकीय दायित्वों का पूरी तरह लगन, परिश्रम और निष्ठापूर्वक निर्वहन करते हुए भी इन सभी गतिविधियों में सम्मिलित होती रही हैं, जिसके लिये विभाग द्वारा भी उनकी प्रशंसा की जाती है।
1974 में दन्तेवाड़ा के पास कारली नामक गाँव में जन्मी डॉ. कश्यप के पिता का नाम चामसिंह कश्यप और माता का नाम रुको कश्यप था और उनका पैतृक निवास नारायणपुर जिले का नेलवाड़ है। मूलत: गोंड (मुरिया) जनजाति से आने वाली डॉ. कश्यप की यह लगन औरों के लिये भी निश्चित ही अनुकरणीय है। सम्पूर्ण बस्तर अंचल को उन पर गर्व है।