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वनों का महत्व और संरक्षण की आवश्यकता : विश्व वानिकी दिवस

वन केवल पेड़ों का समूह नहीं होते, बल्कि ये संपूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र को प्रभावित करते हैं। ये कार्बन अवशोषण के माध्यम से जलवायु परिवर्तन को नियंत्रित करने, जल संसाधनों को बनाए रखने, मिट्टी के संरक्षण और जैव विविधता को सुरक्षित रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। छत्तीसगढ़ में स्थित वन्यजीव अभयारण्य और राष्ट्रीय उद्यान अनेक दुर्लभ और संकटग्रस्त जीवों के लिए प्राकृतिक आवास प्रदान करते हैं। इसके अलावा, यहाँ की नदियों और आर्द्रभूमियाँ (वेटलैंड्स) जल संसाधनों को संरक्षित करने और जैव विविधता को बनाए रखने में सहायक हैं।

प्रतिवर्ष 21 मार्च को विश्व वानिकी दिवस मनाया जाता है, जिसका उद्देश्य वनों के महत्व के प्रति जागरूकता बढ़ाना और उनके संरक्षण को प्रोत्साहित करना है। इस वर्ष 2025 में यह दिवस “Forest and Food” थीम के साथ मनाया जा रहा है। छत्तीसगढ़, जिसे “धान का कटोरा” कहा जाता है, भारत का एक ऐसा राज्य है जो अपनी प्राकृतिक संपदा, घने जंगलों, नदियों और समृद्ध जैव विविधता के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ के अभयारण्य, वेटलैंड्स और जैव विविधता न केवल पर्यावरणीय संतुलन को बनाए रखते हैं, बल्कि राज्य की सांस्कृतिक और पारिस्थितिक पहचान को भी दर्शाते हैं।

विश्व वानिकी दिवस हमें यह याद दिलाता है कि वनों का संरक्षण क्यों आवश्यक है और हमें इस दिशा में नवीन समाधान और सामुदायिक भागीदारी के साथ कार्य करने की जरूरत है। विशेष रूप से, छत्तीसगढ़ जैसे वनसमृद्ध राज्यों में, वनों के संरक्षण और सतत उपयोग से न केवल पर्यावरणीय स्थिरता बनी रहेगी, बल्कि स्थानीय लोगों की आजीविका और सांस्कृतिक धरोहर भी सुरक्षित रहेगी।

छत्तीसगढ़ का लगभग 44% क्षेत्र वनों से आच्छादित है, जो इसे जैव विविधता के लिए अनुकूल बनाता है। यहाँ के जंगल साल, सागौन, बांस, महुआ और तेंदू जैसे वृक्षों से समृद्ध हैं, जो औषधीय पौधों और वन्यजीवों के लिए आश्रय प्रदान करते हैं। यहाँ 11 वन्यजीव अभयारण्य और 3 राष्ट्रीय उद्यान हैं, जो प्राकृतिक विरासत को संरक्षित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इसके अलावा, महानदी, शिवनाथ और इंद्रावती जैसी नदियों के आसपास बने वेटलैंड्स जल चक्र और जैविक संरक्षण में योगदान देते हैं। विश्व वानिकी दिवस हमें इन संसाधनों के संरक्षण की आवश्यकता पर बल देने का अवसर देता है।

सीतानदी वन्यजीव अभयारण्य (धमतरी जिला, 556 वर्ग किमी) 1974 में स्थापित हुआ और बाघ, तेंदुए, सांभर और पक्षियों की प्रजातियों का घर है। तमोर पिंगला वन्यजीव अभयारण्य (सरगुजा जिला, 608.55 वर्ग किमी) साल और पर्णपाती वृक्षों से युक्त है और हाथियों व भालुओं के लिए जाना जाता है। पामेड़ वन्यजीव अभयारण्य (दंतेवाड़ा जिला, 262 वर्ग किमी) जंगली भैंस और दुर्लभ प्रजातियों का संरक्षण करता है, जो स्थानीय आदिवासी संस्कृति को भी प्रतिबिंबित करता है।

भैरमगढ़ वन्यजीव अभयारण्य (बीजापुर जिला) बस्तर के घने जंगलों में स्थित है और औषधीय पौधों व वन्यजीवों की विविधता के लिए प्रसिद्ध है। बादलखोल वन्यजीव अभयारण्य (जशपुर जिला) पक्षियों और छोटे स्तनधारियों के लिए महत्वपूर्ण है। ये अभयारण्य पारिस्थितिक संतुलन को बनाए रखने और अवैध शिकार को रोकने में सहायक हैं। विश्व वानिकी दिवस पर इनके संरक्षण के लिए नवीन तकनीकों और सामुदायिक भागीदारी पर ध्यान देना आवश्यक है।

दलपत सागर (जगदलपुर) छत्तीसगढ़ का सबसे बड़ा मानव निर्मित वेटलैंड है, जो जल पक्षियों और जलीय पौधों का आश्रय है। तेलीबांधा तालाब (रायपुर) शहरी वेटलैंड के रूप में प्रवासी पक्षियों के लिए महत्वपूर्ण है। नई राजधानी में सेंध तालाब में भी बहुत सारे पक्षी आते हैं। रुद्री जलाशय (धमतरी) महानदी पर बना है और मछली पालन व जलीय पारिस्थितिकी के लिए जाना जाता है। नदियों के किनारे बनी प्राकृतिक आर्द्रभूमियाँ जलवायु शमन और बाढ़ नियंत्रण में सहायक हैं। वेटलैंड्स जल संरक्षण और जैव विविधता के लिए आवश्यक हैं। विश्व वानिकी दिवस पर इनके संरक्षण के लिए नवाचार, जैसे जल शोधन तकनीक और संरक्षण योजनाएँ, लागू करना जरूरी है।

छत्तीसगढ़ में मानव-वन्यजीव संघर्ष एक गंभीर समस्या है, जो वनों के संरक्षण की कमी से और बढ़ रही है। हाथी भोजन की तलाश में बस्तियों में घुसते हैं, जिससे मानव मृत्यु और फसल नुकसान होता है। तेंदुए और बाघ मवेशियों व कभी-कभी इंसानों पर हमला करते हैं। जंगली सुअर और नीलगाय खेतों को नष्ट करते हैं। लोग प्रतिशोध में करंट या जहर से वन्यजीवों को मारते हैं।

यह समस्या सरगुजा (तमोर पिंगला के पास), कोरबा (हसदेव अरण्य), धरमजयगढ़, जशपुर, बार नवापारा और बलरामपुर में अधिक है। इन क्षेत्रों में हमें हाथी और मानव संघर्ष की घटनाएं अधिक दिखाई देती हैं। इन घटनाओं में हाथी और मनुष्य दोनों मारे जा रहे हैं इसके साथ ही जन एवं धन दोनों की हानि हो रही है। विश्व वानिकी दिवस पर इस संघर्ष को कम करने के लिए वनों का संरक्षण और नवीन समाधान, जैसे बायो-फेंसिंग और ड्रोन निगरानी, लागू करने की जरूरत है।

वनों के संरक्षण से प्रकृति को जैव विविधता (बाघ, हाथी, औषधीय पौधे), जलवायु नियंत्रण (कार्बन अवशोषण), मिट्टी संरक्षण (भूस्खलन रुकता है), जल चक्र संतुलन (वर्षा और भूजल) और आपदा सुरक्षा (बाढ़-सूखा कम) जैसे लाभ मिलते हैं। मनुष्य को आर्थिक लाभ (तेंदू पत्ता, महुआ), स्वास्थ्य लाभ (स्वच्छ हवा), सांस्कृतिक महत्व (बस्तर के जंगल), पर्यटन-रोजगार (कांगेर घाटी) और खाद्य सुरक्षा (वन्य फल) प्राप्त होती है। संरक्षण न करने से प्रकृति को जैव विविधता हानि (हसदेव में हाथी आवास नष्ट), जलवायु परिवर्तन, मृदा बंजरता, जल संकट और आपदाओं में वृद्धि होती है। मनुष्य को आर्थिक नुकसान, संघर्ष (हाथी हमले), स्वास्थ्य समस्याएँ, खाद्य संकट और सांस्कृतिक क्षति होती है।

विश्व वानिकी दिवस की थीम के अनुरूप, छत्तीसगढ़ में वनों के संरक्षण के लिए ड्रोन-सैटेलाइट निगरानी, सामुदायिक भागीदारी, लैंटाना हटाना और खनन नियंत्रण जैसे नवाचार आवश्यक हैं। विश्व वानिकी दिवस 2025 हमें छत्तीसगढ़ के वनों के संरक्षण के महत्व को समझने और इसके लिए कार्य करने की प्रेरणा देता है।

यहाँ के अभयारण्य, वेटलैंड्स और जंगल जैव विविधता, जलवायु और मानव जीवन के लिए आधार हैं। संरक्षण से प्रकृति और मनुष्य दोनों को लाभ होगा, जबकि असंरक्षण से संघर्ष, संकट और हानि होगी। नवीन तकनीकों और सामुदायिक सहयोग से वनों को बचाकर हम एक बेहतर विश्व का निर्माण कर सकते हैं। छत्तीसगढ़ की यह प्राकृतिक धरोहर आने वाली पीढ़ियों के लिए संरक्षित रहनी चाहिए।

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