ओबीसी, एससी, एसटी का कोटा काटकर मुसलमानों आरक्षण देने पर अड़ी काँग्रेस

स्वाधीनता संघर्ष में असहयोग आँदोलन के साथ खिलाफत आँदोलन को जोड़कर काँग्रेस ने मुस्लिम तुष्टीकरण की जो नींव रखी थी। वह आज भी यथावत है। स्वतंत्रता के बाद मुस्लिम पर्सनल लॉ के माध्यम से मुसलमानों को धार्मिक विशेषाधिकार, बक्फ बोर्ड को संपत्ति के अतिरिक्त अधिकार देने जैसे निर्णय के बाद अब काँग्रेस एससी, एसटी और ओबीसी के आरक्षण कोटे में कटौती करके मुसलमानों को आरक्षण देने की ओर बढ़ रही है। दक्षिण भारत के चार प्रांतों और पश्चिम बंगाल में यह योजना लागू हो चुकी है। अब कांग्रेस ने राष्ट्रीय स्तर भी लागू करने का संकेत दे दिया है।

देश की अठारहवीं लोकसभा चुनाव प्रचार में मुस्लिम आरक्षण का मुद्दा गरमा गया है। भारतीय जनता पार्टी और प्रधानमंत्री श्री नरेंद्रमोदी का आरोप है कि काँग्रेस ओबीसी, एससी और एसटी कोटे में कटौती करके मुस्लिम समाज को आरक्षण देना चाहती है। यद्यपि कांग्रेस के वचनपत्र में मुसलमानों को आरक्षण देने की स्पष्ट घोषणा नहीं है। लेकिन काँग्रेस के ताजा घोषणापत्र में अल्पसंख्यकों के अधिकार पर एक विन्दु ऐसा है जिसमें मुस्लिम आरक्षण का स्पष्ट संकेत है। काँग्रेस सरकारों ने पहले भी मुस्लिम तुष्टीकरण के अनेक ऐसे निर्णय लिये हैं जो उनके घोषणापत्रों में नहीं थे। फिर भी निर्णय हुये। 1954 में पं जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में कांग्रेस सरकार ने कानून बनाकर बक्फ बोर्ड के गठन और संपत्ति के जो अधिकार दिये गये, और समय समय पर बक्फ बोर्ड के अधिकारों को और सशक्त किया।

यह काँग्रेस के चुनाव घोषणापत्र में नहीं था। इसी प्रकार एक महिला शाहबानू के गुजारा भत्ता देने केलिये अदालत का निर्णय आया। राजीव गाँधी जी के नेतृत्व में कांग्रेस सरकार ने 1986 में संविधान में संशोधन करके यह निर्णय अप्रासंगिक कर दिया था। यह भी काँग्रेस के घोषणापत्र में नहीं था। तब यह आवश्यक नहीं है कि भविष्य में तुष्टिकरण के लिये काँग्रेस और उनके सहयोगी दल कोई निर्णय लें वह घोषणापत्र में हो ही। फिर भी 2024 के घोषणापत्र में एक बिन्दु ऐसा है जिसमें मुस्लिम आरक्षण देने के वचन की स्पष्ट झलक मिल रही है।

काँग्रेस ने इस बार चुनाव घोषणापत्र को “वचनपत्र” नाम दिया है। इसमें “वचन” दिया गया है कि अल्पसंख्यकों को शिक्षा, स्वास्थ्य, नौकरी, लोकनिर्माण विभाग के अनुबंध, और कौशल विकास में भागीदारी सुनिश्चित की जायेगी। सहयोग करना एक बात है और सुनिश्चित करना बिल्कुल दूसरी बात। “भागीदारी सुनिश्चित” तो केवल संविधान या सरकार के निर्णय के द्वारा ही संभव हो सकती है। दूसरा इसमें अल्पसंख्यक शब्द का उपयोग किया गया है। काँग्रेस और कुछ सरकारों का इतिहास गवाह है कि वे भले अल्पसंख्यक शब्द का उपयोग करते हों पर इसका लाभ सदैव मुस्लिम समाज को ही मिला है। जबकि मुस्लिम समाज भारत में दूसरी बड़ी आबादी है।

अल्पसंख्यकों की श्रेणी में तो पारसी, सिक्ख, बौद्ध और जैन आते हैं। भारत में इनकी आबादी मुसलमानों से बहुत कम है फिर भी अल्पसंख्यक कल्याण की विशेष योजनाओं का लाभ पारसी, जैन या सिक्खों को कभी नहीं मिलता। भारत में सात प्राँत ऐसे हैं जिनमें हिन्दु अल्पसंख्यक हैं फिर भी उन्हें अल्पसंख्यक कल्याण योजनाओं का लाभ नहीं मिलता। भारत के दो प्राँतों कश्मीर और लक्ष्यद्वीप में मुस्लिम बहुसंख्यक हैं, इन राज्यों में भी अल्पसंख्यकों के लिये निर्धारित योजनाओं का लाभ उन्हे ही मिलता है। अल्पसंख्यक कल्याण की योजनाओं का लाभ पारसी, जैन सिक्ख आदि वास्तविक अल्पसंख्यकों की बजाय भारत की दूसरी बड़ी आबादी होने के बावजूद केवल मुसलमानों को मिले, यह सब रास्ते काँग्रेस सरकार के दौर में ही बने। इसलिए काँग्रेस के ताजा वचनपत्र के शब्दों में यही संकेत मिलता है।

वचनपत्र की शब्दावली के अतिरिक्त एक कारण और भी है। दक्षिण भारत में काँग्रेस नेतृत्व की राज्य सरकारों और केरल की वामपंथी सरकार ने बहुत पहले ही मुसलमानों को आरक्षण देना शुरु कर दिया है। वर्ष 2009, 2014 और 2019 के इन राज्यों के चुनाव प्रचार के दौरान केन्द्रीय स्तर भी मुस्लिम समाज को आरक्षण देने का आश्वासन दिया था। अभी जिन प्रांतों में मुस्लिम आरक्षण लागू हुआ वहा आरक्षित वर्गों के लिये निर्धारित कोटे में ही सेंध लगाई गई है। आरक्षण लागू करने की अधिकतम सीमा पचास प्रतिशत है जो एससी एसटी और ओबीसी के लिये निर्धारित है। यदि किसी अन्य वर्ग को आरक्षण की सूची में शामिल किया जाता है तो एससी एसटी और ओबीसी के कोटे में ही कटौती होगी।

दूसरा धार्मिक आधार पर मुस्लिम समाज को आरक्षण देना संविधान की मूल भावना के भी विपरीत है। भारत का संविधान धर्म निरपेक्षता का संदेश देता है। इसमें धर्म के आधार पर किसी को आरक्षण नहीं दिया जा सकता। यह संविधान की भावना के विरुद्ध है। इससे बचने के लिये काँग्रेस, वामपंथी और उनके सहयोगी दलों ने पिछले दरबाजे से रास्ता निकाला है। इन राज्यों ने मुस्लिम समाज के जिन लोगों को आरक्षण दिया गया, उन्हें ओबीसी वर्ग में जोड़ दिया गया। इन राज्यों में तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, केरल और कर्नाटक हैं। कर्नाटक में पिछली बार जब भाजपा सरकार में आई थी तो उसने मुसलमानों को आरक्षण सुविधा बंद कर दी थी। लेकिन अब कर्नाटक में पुनः काँग्रेस सरकार आ गई और मुस्लिम आरक्षण आरंभ हो गया।

इन राज्यों के अतिरिक्त पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी सरकार ने आजीविका के आधार पर मुस्लिम समाज के कुछ लोगों को ओबीसी सूची में डालकर आरक्षण देना आरंभ कर दिया। वामपंथी स्वयं को धर्म निरपेक्ष होने का दावा करते हैं लेकिन मुसलमानों के हित संरक्षण और सनातन परंपराओं पर हमला करने में वे “सेकुलरिज्म” भूल जाते हैं। यदि वामपंथी धारा को सेकुलरिज्म का स्मरण होता तो केरल में मुस्लिम आरक्षण लागू न होता। केरल सरकार ने मुसलमानों को आरक्षण देने के लिये ओबीसी कोटे में एक उपवर्ग बनाया है। इस उपवर्ग कोटे में मुसलमानों को दस प्रतिशत आरक्षण दिया जाता है। वर्तमान में केरल की सरकारी नौकरियों में मुस्लिम हिस्सेदारी 12 प्रतिशत और व्यावसायिक एवं शैक्षणिक संस्थानों में 8 प्रतिशत है।

दक्षिण भारत के एक अन्य राज्य तेलंगाना है। तब यहाँ मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव ने ओबीसी वर्ग के अंतर्गत मुसलमानों को 4 प्रतिशत आरक्षण शुरु किया था। तेलंगाना की वर्तमान सरकार इसे बढ़ाकर 12 प्रतिशत करना चाहती है। तेलंगाना विधानसभा में इस संबंधी प्रस्ताव भी पारित हो गया। लेकिन केन्द्र में सत्तारूढ़ मोदी सरकार ने स्वीकृति देने से इनकार कर दिया।

आंध्र प्रदेश में कांग्रेस वर्ष 2004 से मुसलमानों को आरक्षण देने का प्रयास कर रही है। वाईएस राजशेखर रेड्डी के नेतृत्व वाली तत्कालीन काँग्रेस सरकार ने 2004 में मुसलमानों को उनके वर्ग के आधार पर ओबीसी में शामिल करके पाँच प्रतिशत आरक्षण देने का निर्णय लिया था लेकिन आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट ने इस पर रोक लगा दी थी। बावजूद इसके जून 2005 में कॉंग्रेस सरकार अध्यादेश लाई और मुसलमानों को पाँच प्रतिशत आरक्षण लागू कर दिया।

पश्चिम बंगाल में यह काम वर्ष 2011 से हुआ। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने मुस्लिमों को ओबीसी में शामिल करके आरक्षण लागू कर दिया। दक्षिण भारत की एक अन्य तमिलनाडु सरकार ने मुस्लिमों और ईसाइयों में प्रत्येक के लिए 3.5 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था की है। यह आरक्षण भी ओबीसी वर्ग के अंतर्गत है। इतने आरोप लगने के बाद भी काँग्रेस यह स्पष्ट नहीं कह रही कि वह मुसलमानों को आरक्षण सूची में शामिल नहीं करेगी बल्कि कोटा बढ़ाने की बात कह रही है।

तुष्टिकरण की दिशा में कांग्रेस की सक्रियता का समय सौ वर्ष से भी अधिक हो गया है। अंग्रेजों ने खलीफा परंपरा समाप्त कर दी थी। इस परंपरा का भारत से कोई संबंध नहीं था फिर भी अंग्रेजों के इस निर्णय के विरुद्ध उतनी आवाज तुर्की और सउदी अरब में नहीं उठी जितनी भारत में काँग्रेस ने उठाई थी। अब यह मुस्लिम समाज के नेतृत्व की कूटनीतिक दृष्टि थी या काँग्रेस की अदूरदर्शिता कि काँग्रेस ने स्वतंत्रता के लिये आरंभ असहयोग आँदोलन में खिलाफत आँदोलन को भी जोड़ दिया। इससे न केवल कट्टरपंथी ताकतों को बल मिला बल्कि तुष्टिकरण के मार्ग पर बढ़ी काँग्रेस केवल खिलाफत आँदोलन तक ही सीमित न रही।

मालाबार हिंसा पर काँग्रेस की प्रतिक्रिया और अंग्रेजों द्वारा लोकल असेम्बलियों के चुनाव में मुस्लिम उम्मीदवारों को अतिरिक्त अधिकार देने पर काँग्रेस की सहमति में भी तुष्टिकरण नीति की झलक है। पाकिस्तान की मांग को लेकर 16 अगस्त 1946 को मुस्लिम लीग ने डायरेक्ट एक्शन के नाम पर पंजाब और बंगाल में भारी रक्तपात किया था। यह विवरण इतिहास के पन्नों में दर्ज है। इसके बाद भी सितम्बर 1946 में बने भारत के अंतरिम मंत्रीमंडल में और दिसम्बर 1946 में बनी संविधान सभा में मुस्लिम लीग के प्रतिनिधियों को स्वीकार करने पर भी काँग्रेस पर सवाल उठे थे। यद्यपि ये दोनों निर्णयों का सुझाव अंग्रेजों ने दिया था लेकिन काँग्रेस द्वारा सहमति दिये जाने को तुष्टीकरण ही माना गया था।

भारत और पाकिस्तान एक ही धरती के भूभाग पर बने थे। दोनों को स्वतंत्रता भी साथ मिली पर पाकिस्तान ने किसी के प्रति तुष्टिकरण का भाव न अपनाया। वह अपनी ही राह चला। लेकिन भारत ने अंग्रेज और मुसलमान दोनों के प्रति तुष्टिकरण का भाव अपनाया। वह भी अपने बहुसंख्यक निवासियों के हितों को सीमित करके। आने वाला प्रत्येक क्षण भविष्य के गर्भ में है। भविष्य के सत्य का स्वरूप तो समय की यात्रा में ही स्पष्ट होगा पर काँग्रेस की अतीत यात्रा का इतिहास और दक्षिण भारत के प्रांतों में आरक्षण की सूची में जिस प्रकार मुस्लिम समाज को शामिल करने का मार्ग बनाया है उसी से यह विचार सशक्त होता है कि काँग्रेस और उसके सहयोगी दल राष्ट्रीय स्तर पर भी मुसलमानों को आरक्षण देने की जुगाड़ बिठाने सै पीछे नहीं हटेंगे।

 

लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।

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