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बचपन की शैतानियाँ

संध्या शर्मा

बचपन तो शैतानियाँ का दूसरा नाम है। हमारा बचपन भी हम चारों भाई बहनों की शैतानियों का मिला जुला रूप है। हम सब कभी गर्मी की छुट्टियों में दादा, मामा के घर नहीं गये, जो भी करना था अपने ही घर में। जब भी कोई मेहमान आते मम्मी से उनके सामने ही पूछकर वो सब कर लेते जो मम्मी अकेले में करने नहीं देतीं और मेहमान जाते ही चारो के चारो की पिटाई होती। फिर अगली बार वही करते।

एक बार की बात है हम चारो ही बहुत छोटे थे। रविवार को मम्मी हम चारों को एक साथ नहलाती थीं। चारों अपने अपने टॉवेल लेकर खड़े थे। ठण्ड का दिन था, वो कोयले वाली सिगड़ी जिसमे पानी गर्म होता था आँगन के कोने में ही रखी थी जो तब भी गर्म थी। चारों में मैं पहले – मैं पहले की लड़ाई चल रही थी।

नीटू (हम सबमें छोटी बहन) को धक्का देकर हम तीनों ने पीछे धकेल दिया , धक्के से उसका पैर पीछे से जाकर सिगड़ी से टकराया और तुरंत बड़ा सा फ़फ़ोला पड़ गया। फ़फ़ोले को देखकर तो हम तीनों की डर के मारे हालत ख़राब हो गई। मम्मी उधर गर्म पानी में ठंडा पानी मिलाकर नहलाने की तैयारी में व्यस्त थीं, इधर हम तीनों नीटू को मनाने में व्यस्त थे कि मम्मी को बताना नहीं वरना आज की पिटाई पक्का थी।

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मम्मी ने चारों को नहलाया और नीटू को टॉवेल से पोंछ रहीं थी कि नीटू बोली “मम्मी! ये गर्म सिगड़ी इधर मत रखा करो, जल जाते हैं ” इतना सुनना था कि मम्मी तुरंत समझ गईं कि कुछ तो हुआ है। तुरंत नीटू को घुमाकर देखा। उसके पैर में बड़ा फ़फ़ोला देखकर हम तीनों की पिटाई हुई।

पिटाई करके मम्मी ख़ुद भी बहुत रोती थी, शांत होकर हम सभी को समझाती थी। उनको रोते देखकर हमने कोई भी शैतानी दोबारा नहीं की। इसलिए बहुत शैतानियाँ याद नहीं जो हमने की होंगी।

संध्या शर्मा
नागपुर महाराष्ट्र

One thought on “बचपन की शैतानियाँ

  • बचपन की प्यारी प्यारी यादें…वो दिन ही और थे ☺️

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