जहाँ रोम रोम में बसते हैं राम : दक्षिण कोसल

फेसबुक लाइव में दक्षिण कोसल में रामकथा की व्याप्ति विषय पर दिनांक 22 अप्रेल 2021 को शाम साढ़े सात बजे दिल्ली की संस्था फ़ोक ब्रेन द्वारा वेबीनार का आयोजन किया गया इस कार्यक्रम को फाउंडर ऑफ फ़ोकब्रेन डॉक्टर कैलास मिश्रा द्वारा होस्ट किया गया था। इस वेबिनार के के मुख्य वक्ता इन्सायक्लोपीडिया ऑफ रामायण, छत्तीसगढ़ प्रांत प्रमुख और प्रसिद्ध इण्डोलॉजिस्ट श्री ललित शर्मा जी थे जबकि अतिथि वक्ता श्री राकेश तिवारी जी, राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित छत्तीसगढ़ के प्रसिद्ध लोकगायक जी थे।

कार्यक्रम का संचालन करने वाले डॉक्टर कैलास मिश्रा कि राम जगतव्याप्त हैं। जब पुरुष के रूप में अवतरित होते हैं तो समस्त भारत (आज़ादी के पूर्व का भारत) से जोड़ते हैं अपने आपको। अवध (अयोध्या) में जन्म, मिथिला में विवाह, दक्षिण कोसल में ननिहाल, गया में पिता महाराज दशरथजी का पिण्डदान, और न जाने कहाँ कहाँ से जुड़ते चले जाते हैं हैं राम। कही गौतम ऋषि की पत्नी अहिल्या का कल्याण करते हैं, कहीं गंगा पार करते हुए केवंट को धन्य करते हैं, कहीं भीलनी सबरी का जूठा बेर खाते हैं और स्वाद बखानते हैं, कहीं गुरु वशिष्ठ और उनकी पत्नी अरुंधति को अपनी गुरुभक्ति से प्रभावित करते हैं, कहीं सुग्रीव, जामवंत और हनुमान से दोस्ती करते हैं, कही रामेश्वरम में समुद्र पर सेतुबंध बनाते हैं; कभी झारखण्ड के रामरेखा धाम में अपनी पत्नी सीता और अनुज लक्ष्मण के साथ रहते हैं। राम अखिल भारत को अपनी उपस्थिति से जोड़ते हैं। भारत सही अर्थ में राममय हो जाता है। उनकी एक माँ (विमाता) सुमित्रा सौमित्र प्रदेश की हैं, वही दूसरी माता (विमाता) कैकेई केकत्य प्रदेश अर्थात कश्मीर से हैं। राम का पुत्र लाहौर में अपना नगर बसाते हैं। राम भारत के कण-कण से जुड़ते चले जाते हैं। हरेक जगह से लोक इतिहास, सांस्कृतिक इतिहास और भाव इतिहास बनाते जाते हैं, जगह जगह का भूगोल भी राम की उपस्थिति से भाव भूगोल में परिवर्तित होते रहता है। इस तरह से रामायण का सर्किट तैयार होते रहता है। राम धर्म से ऊपर उठकर धर्म का निर्माण करते हैं। राम संस्कृति का शाश्वत प्रतिमान बन जाते हैं। अयोध्या के बालक राम जब अपनी माता के समक्ष अपने काले, बिखड़े घुंघराले बालों के साथ पैजनियाँ पहनकर कभी घुटनों के बल तो कभी ता ता थैया कहते हुए ठुमक कर चलते हैं तो थिरमति भी अधीर हो जाते हैं। वही राम मिथिला जाकर वहाँ के दुल्हा राम बन जाते हैं। महिलाएँ प्रेम से गाली देती हैं, जिसको मंद मंद मुस्कान से सुनते हैं, आनंदित होते रहते हैं।

किस तरह से दक्षिण कोसल प्रदेश अर्थात आज के छत्तीसगढ़ के लोग राम से अपने आपको जोड़ते हैं, कैसे उनका भूगोल, भाव-भूगोल और इतिहास, भाव इतिहास अथवा Meta History में बदलने लगता है। इस पर गंभीर कार्य कर रहे हैं श्री ललित शर्मा जी और अपने दक्षिण कोसल के भांजे राम पर प्रख्यात लोकगायक जो कि राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित हैं श्री राकेश तिवारी जी गीत गाने के लिए और रामकथा का क्षेत्रीय स्वरूप बताने के लिए FolkBrain और सभी FolkBrain Group पर लाइव आए हैं। सभी अतिथियों का स्वागत करते हुए मिश्रा जी ने मुख्य वक्ता श्री ललित शर्मा जी उद्बोधन करने के लिए आमंत्रित किया।

श्री ललित शर्मा जी ने भी अभिवादन पश्चात कहा कि नमस्कार सर, जय सियाराम, जय श्री राम राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित लोक गायक श्री राकेश तिवारी जी का भी स्वागत है। मैं चाहता हूँ कि बिना समय गवांए राकेश तिवारी जी स्वागत के रूप में कुछ सुनाएं । इसपर राकेश तिवारी जी ने गीत गाते हुए कहा कि राम दक्षिण कोसल के कण-कण में व्याप्त है। यहाँ तो राम के बिना किसी चीज की कल्पना ही नहीं की जा सकती है। यह कहते उन्होंने – श्री राम जय राम जय जय राम की धुन से सभी अतिथियों का स्वागत किया। फिर कैलाश जी ने कहा कि यह लोकगीत की शुरुआत है । यह गीत तो चलते रहेंगे अब बिना वक्त गवांए शर्मा जी कुछ कहना चाहेंगे।

ललित शर्मा जी ने कहा कि छत्तीसगढ़ राम का ननिहाल है। छत्तीसगढ़ से उनका बचपन से नाता रहा है । जब राम कथा की चर्चा करना है , तो राम की कथा अनंत है उन्होंने कि छत्तीसगढ़ में राम रोम-रोम में हैं। हरि अनंत हरि कथा अनंता, राम कथा कहने में वर्षों बीत जाएंगे, लेकिन रामकथा कही नहीं जा सकती है। मेरा आज का विषय है दक्षिण कोसल में रामकथा, मूर्त और अमूर्त रूप में, जिस पर हम चर्चा करते रहते हैं ।

मैं प्लेस नेम से शुरुआत करता हूँ। यहाँ लोग अपने नाम के आगे और बाद में भी राम का नाम जोड़ते रहे हैं और ऐसा क्यों? यह केवल एक जगह की बात नहीं है। सरगुजा से लेकर बस्तर तक यहाँ राम का नाम जुड़ता है। यहाँ पेड़ पौधों का नाम, नदी नालों का नाम भी राम पर है।

यहाँ के स्थान के नाम भी राम पर है । रामायण के पात्रों के नाम पर हैं। राम पर आधारित उन्होंने कई नामों के उदाहरण दिए जो सरगुजा से लेकर बस्तर तक के अलग-अलग जगहों का नाम बताये। जैसे- रामपुर, लखनपुर, रामेश्वरम, सीतापुर, जशपुर में भी कई जगहों का नाम उन्होंने बताये। पहाड़ों के नाम में भी राम, नदियों के नाम भी रामायण के पात्रों के नाम पर यहाँ रखे गए हैं। सरगुजा में रामगढ़ में जहाँ राम ने चौमासा बिताये थे। कहते हैं कि यहाँ पर कालिदास जी ने मेघदूतम की रचना भी की थी और यहीं से अलकापुरी तक बादलों को संदेश भेजा था।

उसके बाद उन्होंने गीत संगीत में भी राम नाम व्याप्ति के ऊपर पर व्यापक प्रकाश डाले। उन्होंने कहा कि भरथरी गीतों में, फाग गीतों में, सोहर गीतों में, ददरिया आदि जितने भी लोकगीत हैं उनमें राम की उपस्थिति कहीं न कहीं हैं।
हमारे साथ राकेश तिवारी जी जुड़े हुए हैं जो अपने गीतों में गाकर बताएंगे कि राम की व्याप्ति कहाँ-कहाँ पर हैं। पंडवानी महाभारत की कथा है पर यह भी राम-राम से ही चालू होता है । ददरिया जैसे प्रेम गीत में भी राम हैं। सोहर गीत में भी बालक जब जन्म लेता है तो उसे राम का जन्म ही माना जाता है।

कौन घड़ी जनम धरे—– वाले गीत, जिसे तिवारी जी गाकर सुनाये थे, का उदाहरण देते हुए कहा नगाड़े की ताल में राम के गीत जब बजते हैं, तो सुनने वालों को पैर थिरकने लगते हैं। फाग गीतों में, संस्कार गीतों में और दूसरे लोकगीतों में, राम और रामायण के पात्रों को लोग प्यार से गाते हैं। लोक जिसे स्थापित कर देता हैं वह देवता बन जाता हैं। महामानव बन जाता हैं।
छत्तीसगढ़ के पहेलियों में भी राम का नाम है। उन्होंने कुछ पहेलियां भी कह कर अपनी बातों को उत्तर के साथ समझाने का प्रयास किए। इस तरह पहेलियों में भी रामकथा के पात्रों के नाम आते हैं। देवार गीत में भी राम हैं। गोदना गोदवाने में भी राम नाम का उल्लेख होते हैं । देवारीन कहती हैं राम लिखा ले, सीता लिखाले ,लखन लिखा ले आदि गाती हुई घूमती हैं।
छत्तीसगढ़ में एक संप्रदाय भी जिसे हम रामनामी संप्रदाय के नाम से जानते हैं। जिनके नख से शिख तक राम नाम का अंकन होता है। यहाँ तक की गुप्तांगों में भी राम का नाम लिखा होता है। यहाँ तक महिलाओं/पुरुषों की ओढ़नी में राम नाम लिखे होते हैं। जितने भी राम नाम उनकी ओढनी में होता है उतना ही राम नाम संकीर्तन उनके यहाँ करवाया जाता है। यहाँ के लोकगीतों में करुणा भी है- बेटा कारण दशरथ मर गे—- इत्यादि गीत की बातें होने की।

कृषिकार्य में भी राम नाम का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि धान को मिजने के बाद जब रास बनाया जाता है, रास को नापने की पहली गिनती, जो लकड़ी के बने हुए काटे में नापा जाता है, उसे एक नहीं बल्कि राम के नाम से गिना जाता है। इसका कारण भी उन्होंने बताया कि यहाँ राम से ही फसल की बोनी और राम के नाम से ही फसल को खलिहान से घर भी लाने, एक प्रसाद के रूप में ग्रहण करने। यह यहाँ के कृषि और कृषक समाज के मन में होती है। फिर उन्होंने उदाहरण देते हुए यहाँ की पुरातत्व वैभव में राम नाम को उन्होंने जिक्र करते हुए कहा रामनवमी मेला महानदी के दोनों पार भरता है ।
अभी पिछले कुछ दिन पहले 112 वीं रामनवमी मेला सारंगढ़ के पास लगा था । उसे देखने के लिए मैं गया था । सरगुजा में रामगढ़ पर्वत है । उसे रामगिरि कब कहा गया है यह उल्लेख में नहीं आता है। पर कालिदास के लेख में मेघ को दूत बनाकर अलकापुरी संदेश देने भेजने का उल्लेख हैं यहाँ यह रामगिरी के नाम से उल्लेख आता है ।

खरौद के मंदिर में बाली वध का अंकन है। तारा विलाप यहाँ के कई मंदिरों में पाए जाते हैं। मल्हार में स्थित तारा विलाप स्तम का उल्लेख छठवीं शताब्दी में किया गया था । सिरपुर में सातवीं शताब्दी का अंकन है। ताला में भी ताड़ वृक्षों का भेदन का अंकन है। कलचुरी कालीन बंकेश्वर मंदिर तुमान में दशावतार के अंकन में राम हैं। जाँजगीर के विष्णु मंदिर में स्वर्ण मृग वध, ताड़पेड़ भेदन, मारीच वध इत्यादि का अंकन हैं। खरौद के लक्ष्मण मंदिर में, चंद्रखुरी शिव मंदिर में, तुमान के शिव मंदिर आदि जगहों में रामकथा का अंकन हैं।

नागफनी मंदिर, चंद्रादित्य मंदिर आदि मंदिरों में राम कथा का अंकन हैं। धनुर्धारी राम की दुर्लभ प्रतिमा मल्हार के संग्रहालय में हैं। गंडई के मंदिर राजनांदगांव में बाली-सुग्रीव युद्ध प्रतिमा का अंकन है। देवबलोदा चौदहवीं शताब्दी में रामकथा का अंकन है । फणीकेश्वर मंदिर में राम द्वारा हनुमान को मुद्रिका देते हुए दुर्लभ प्रतिमा का अंकन किया गया है। सहसपुर में बाली सुग्रीव का मुष्ठि युद्ध, हनुमान सुग्रीव मिलाप, धमधा गढ़ में राम बलराम का अंकन है। रमईपाठ फिंगेश्वर में गर्भवती सीता की एक दुर्लभ प्रतिमा है। जहाँ सभी देवता उन्हें वापस चलने मनाते हैं पर वे मना कर देती हैं। जहाँ से वाल्मीकि उन्हें अपने साथ तुरतुरिया स्थित अपने आश्रम ले जाते हैं।

रायपुर के महामाया मंदिर में हनुमान, राम और लक्ष्मण के कंधे पर उठाए हुए एक दुर्लभ प्रतिमा है दूधाधारी मठ रायपुर में राम कथा का अंकन है। राम टेकरी रतनपुर में राम दरबार का अंकन है। थानखमरिया में मूँछ वाले राम, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न और यहाँ तक हनुमान जी भी की मूछें वाली दुर्लभ प्रतिमाएँ हैं। कोरबा के हरिसिंह क्षत्री में भी शैलचित्रों में रावण का खोज किया है । यहाँ रामकथा मनोरंजन का साधन नहीं, भक्ति है। यहाँ रामलीला का मंचन होते रहते हैं। रामलीला यहाँ रोम-रोम में रचा बसा है। रामलीला का होना राम कथा का वाचन नवधा रामलीला, नवधा रामायण आदि का मंचन होते रहते है।

इस तरह लोकगीत, कृषि, मान-सम्मान, संस्कृति में, नाटक में, रामलीला का अंकन हैं। इत्यादि बातें कहते हैं उन्होंने राष्ट्रपति सम्मान से सम्मानित लोककलाकार श्री राकेश तिवारी जी को राम सप्ताह के गीत इत्यादि के बारे में कहने के लिए आमंत्रित किये। श्री राकेश तिवारी जी ने रामकथा पर आधारित गीत के साथ अपनी बातें रखी। भगवान राम की कथा रामसप्ताह के माध्यम से गाए जाते हैं। सोहर गीतों में, विवाह गीतों में, ददरिया, होली, जसगीत आदि का सस्वर वाचन करते हुए राम की व्याप्ति लोकगीतों में कैसे हैं रची-बसी हुई है ।इन चीजों का विस्तार से अपने सस्वर वाचन के माध्यम से उन्होंने बताया कि राम लखन जब छोटे थे और चंदखुरी आए थे तब उस समय की बातें हैं वह मैं लोक गीतों के माध्यम से सुनाता हूँ।
ममा गाँव चंदखुरी आए राम जी
ममा गाँव चंदखुरी आए राम जी
बाल लीला दिखाएं बाल लीला दिखाए
चंदखुरी म राम जी, गिल्ली डंडा, बाँटी खेलय

खेलय संगवारी संग, खेलय संगवारी संग राम जी— तिवारी जी ने हनुमान जी के बारे में गीत सुनाए और उन्होंने कहा कि रामायण तो यहाँ के लोकगीतों में रचे बसे हैं। रामायण के संस्कृति यहाँ राम मय हो जाता है। ललित भाई विस्तार से उनके बारे में जानकारी दे चुके हैं।

उसके बाद ललित शर्मा जी ने बहुत बढ़िया राकेश भैया कहकर आगे मिश्रा जी समापन के लिए माइक दिया जाता है। मिश्रा जी ने कहा कि शुभ्रा रजक की कुछ जिज्ञासा थी कि ललित जी ने पुरातत्व की जानकारी देते हुए रतनपुर के किले में स्थित रावण द्वारा अपने सिर को काटकर शिवलिंग में चढ़ाने का अंकन किया गया है, इस कथानक को भूल गए हैं। इस पर ललित जी ने इसे भविष्य में सुधार लिया जाएगा कहा। फिर मिश्रा जी ने कहा कि राम की कथा यहाँ सब्जी में, गीतों में, ददरिया में, हर जगह राम है। सचमुच में यह धरती धन्य है जो रामकथा से भरी हुई है। मैंने राम पर बहुत काम किया है, पर गर्भवती सीता को नहीं देखा है। मैं मिथिला से हूँ। वहाँ उन्हें मिथिला पेंटिंग में बनाने बनाने का अनुरोध करूँग । राम को जैसे चाहे वैसा देख लें। शबरी आपकी भूमि में है। आपने उनका उल्लेख अपने उद्बोधन में नहीं किया है।

तब ललित जी ने कहा कि अगली बार ऋषि-मुनि के वेबिनार में माता शबरी की चर्चा निश्चित रूप से करेंगे, क्योंकि माता शबरी एक साध्वी थीं, अतः आगे वेबिनार होगा उसमें शबरी माता का विस्तार से वर्णन करेंगे।

मिश्रा जी ने कहा कि कोसल का अवध के साथ संबंध पर चर्चा होनी चाहिए । मैं राम कथा सुनने का लोभी रहा हूँ। इसे सुनने की इच्छा है।

ललित जी ने कहा छत्तीसगढ़ी और अवधि का माँ और मौसी जैसा संबंध है। प्रयाग प्रशस्ति में कोसलस्य महेंद्रस्य का उल्लेख है, पर दक्षिण कोसल का नहीं है । यह बातें यहाँ लक्ष्मी शंकर निगम जी ने कहा है। अनेक ऐसी कथा है जिसकी आगे विस्तार से चर्चा करेंगे । भविष्य में लोककला में राम विषय पर विशेष ध्यान रखेंगे।

ललित जी ने फिर कहा कि राकेश भैया को तो लोग कान से सुनते हैं, पर मैं उनको ह्रदय से सुनता हूँ। मिश्रा जी ने कहा आज दशमी भी है। जो बृहद भारत है उसकी कल्पना राम के बिना नहीं की जा सकती है। जब छत्तीसगढ़ में इतनी कथा है, तो मिथिला में कितनी कथा होगी? जहां राम की प्रथम भेंट सीता से हुई थी, वाटिका में । धनुष भंग करते, शादी का वर्णन आदि का वहाँ लोकगीतों में कितनी कथाएँ होंगी? जिसकी आप कल्पना कर सकते हैं, इत्यादि बातें करते हुए उन्हें राम को धर्म से जोड़ कर नहीं देखने की बात कही । वह देव है, मानव है, वे दिखाते हैं कि कैसे जीवन जीना है । इसके साथ वेबीनार सम्पन्न हुआ

 

वेबीनार रिपोर्ट

हरिसिंह क्षत्री
मार्गदर्शक – जिला पुरातत्व संग्रहालय कोरबा, छत्तीसगढ़ मो. नं.-9407920525, 9827189845

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *