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बिक गया सिलेंडर – लघुकथा

जन्मदिन मनाने का प्रचलन बहुत बढ़ा है। शहर, स्कूल, गांव, कस्बा कोई जगह नहीं बची है। जहां हैपी बर्थडे न हो रहा हो। इस सामाजिक जागरूकता की दुहाई देनी पड़ेगी।

एक बात और है इसने समाज में भी एकता प्रदान की है। हर वर्ग, धर्म, जाति, भाषा, आय के लोग इसमें शामिल हैं।

आज प्रभात का जन्मदिन है, सुबह से सभी लोग आ-आकर बधाई दे रहे हैं। सभी पूछ भी रहे हैं –
‘आज क्या बनेगा?’

मालती सबको कुछ कुछ बता कर बचती रही। पर उसका मन तो सुबह से खराब हो रहा था।

नीरज ने (उसके पति) जो कि मुम्बई कमाता है, सुबह से मोबाइल पर कुछ नहीं भेजा, तो वो लोगों को क्या जवाब देती?

दोपहर बीतने को था, लोग बाज़ार जाने लगे। मालती को प्रभात बार-बार परेशान करने लगा।

उसकी आंखें झोपड़ी के कोने में रखी सिलेंडर पर गयी और जैसे कि उसे चेतना आ गई।

वह दो घर आगे सुमेर के घर पहुंच कर सिलेंडर का सौदा औने-पौने दाम में कर आई, उसने कभी इच्छा ज़ाहिर की थी।

शाम होते ही केक, मिठाई, बिजली की लड़ियां, संगीत सब कुछ आ गया। छोला-बठूरा, रसगुल्ला, आइसक्रीम, प्लेटों में सजने लगे।

किसी को ये भी गम नहीं कि आखिर नीरज पैसा क्यों नहीं भेज पाया ?

सुबह नीम के नीचे कुछ बोतले भी लुढ़की हुईं थीं।

 

शुभदा पाण्डेय, आगरा

4 thoughts on “बिक गया सिलेंडर – लघुकथा

  • May 27, 2024 at 09:22
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    उत्तम साहित्य व समाचार

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  • May 28, 2024 at 09:21
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    🔱🙏It’s good ,aisa hi laga jaise gaon me aaj bhi parampara ke naam per.poore poore gaon ko daawat dete hain sanskaar ke naam per.

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  • May 28, 2024 at 09:22
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    दर्द भरी कहानी! जब तक सरकारें शराब बेचकर मुनाफा कमाती हैं और मद्यपान पर प्रतिबंध नहीं लगाती ,समाज में ऐसी ही दयनीय स्थिति बनी रहेगी।‌

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  • May 28, 2024 at 09:23
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    Bahut hi marmik
    Apko naman🙏🌺🌺🌺👌,,,

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