बलोचिस्तान की आज़ादी की लड़ाई एवं बलोचों के क्रूर दमन का इतिहास
बलोचिस्तान, जो पाकिस्तान का सबसे बड़ा और संसाधन संपन्न प्रांत है, आजादी के बाद से ही राजनीतिक उथल-पुथल, सैन्य दमन और मानवाधिकारों के गंभीर उल्लंघनों का गवाह रहा है। बलोच राष्ट्रवादियों का मानना है कि पाकिस्तान ने उनके क्षेत्र को जबरन अपने अधीन कर लिया और तब से लगातार उनके संसाधनों का दोहन कर रहा है, जबकि स्थानीय बलोच आबादी को बुनियादी सुविधाओं से भी वंचित रखा गया है। पाकिस्तान की सरकार और सेना ने बलोच स्वतंत्रता आंदोलन को कुचलने के लिए समय-समय पर क्रूर सैन्य अभियानों का सहारा लिया, जिसके परिणामस्वरूप हजारों लोगों की हत्याएं हुईं, हजारों लापता हो गए और अनगिनत बलोच परिवार विस्थापित हुए।
बलोचिस्तान की आज़ादी की लड़ाई का इतिहास
बलोचिस्तान की स्वतंत्रता की लड़ाई एक लंबे समय से चले आ रहे संघर्ष का हिस्सा है, जिसमें बलोच अलगाववादी समूह पाकिस्तान से अपनी स्वायत्तता या पूर्ण स्वतंत्रता की मांग कर रहे हैं। यह संघर्ष ऐतिहासिक, राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक कारणों से उत्पन्न हुआ है। बलोच राष्ट्रवादियों का मानना है कि पाकिस्तान ने उनके क्षेत्र को जबरन अपने अधीन कर लिया और तब से लगातार उनके संसाधनों का दोहन कर रहा है, जबकि स्थानीय बलोच आबादी को बुनियादी सुविधाओं से भी वंचित रखा गया है। पाकिस्तान की सरकार और सेना ने बलोच स्वतंत्रता आंदोलन को कुचलने के लिए समय-समय पर क्रूर सैन्य अभियानों का सहारा लिया, जिसके परिणामस्वरूप हजारों लोगों की हत्याएं हुईं, हजारों लापता हो गए और अनगिनत बलोच परिवार विस्थापित हुए।
1947 में पाकिस्तान की स्वतंत्रता के बाद, बलोचिस्तान एक स्वतंत्र क्षेत्र था। 1948 में पाकिस्तान ने इसे जबरदस्ती अपने नियंत्रण में ले लिया, जिससे बलोच राष्ट्रवादियों में असंतोष पैदा हुआ। बलोच अलगाववादी समूहों का मानना है कि बलोचिस्तान को जबरन पाकिस्तान में शामिल किया गया और यह ऐतिहासिक रूप से एक अलग राष्ट्र रहा है। बलोच राष्ट्रवादियों ने अपने अधिकारों के लिए कई बार विद्रोह किया, जिसे पाकिस्तान की सेना ने दमनकारी नीतियों से कुचलने की कोशिश की। बलोच स्वतंत्रता संग्राम पांच प्रमुख विद्रोहों के रूप में सामने आया है, जिसमें 1948 में बलोच नेताओं द्वारा पाकिस्तान में विलय का विरोध, 1958-59 में पाकिस्तानी सेना के दमन के खिलाफ विद्रोह, 1963-69 के बीच बलोच राष्ट्रवादियों और पाकिस्तानी सेना के बीच संघर्ष, 1973-77 के दौरान प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो द्वारा बलोच विरोध को कुचलने का प्रयास और 2004 से अब तक का सबसे बड़ा और लगातार जारी संघर्ष शामिल है।
1958 में, पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान ने बलोच राष्ट्रवादी आंदोलन को कुचलने के लिए कठोर सैन्य अभियान चलाया। इस दौरान कई बलोच नेताओं को गिरफ्तार किया गया और हजारों निर्दोष बलोच नागरिकों को मारा गया। बलोच राष्ट्रवादियों ने इसके खिलाफ संघर्ष जारी रखा, लेकिन उन्हें हमेशा पाकिस्तान की सैन्य शक्ति का सामना करना पड़ा। 1973 से 1977 के बीच, प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो के शासनकाल में, पाकिस्तान सरकार ने बलोचिस्तान में एक और सैन्य अभियान छेड़ा। इस दौरान पाकिस्तानी सेना ने हजारों बलोच नागरिकों को मार डाला, सैकड़ों गांव नष्ट कर दिए गए और हजारों लोग बेघर हो गए। इस दौरान लगभग 70,000 पाकिस्तानी सैनिक बलोचिस्तान में तैनात किए गए, और पाकिस्तानी वायु सेना ने बलोचिस्तान के विद्रोही गुटों के खिलाफ हमले किए।
2004 के बाद से, बलोच स्वतंत्रता संग्राम और भी तीव्र हो गया। पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति परवेज़ मुशर्रफ ने बलोच विद्रोहियों के खिलाफ कठोर नीतियां अपनाईं। 2006 में, बलोच नेता नवाब अकबर बुगती की हत्या कर दी गई, जिससे बलोच जनता में और भी अधिक आक्रोश फैल गया। इसके बाद, पाकिस्तान सेना ने और अधिक आक्रामक रणनीति अपनाई, जिसके तहत “किल एंड डंप” नीति लागू की गई। इस नीति के तहत, पाकिस्तानी सुरक्षा बल बलोच कार्यकर्ताओं, पत्रकारों, और राष्ट्रवादी नेताओं को अगवा कर लेते हैं, उन्हें यातनाएं दी जाती हैं, और बाद में उनकी लाशें सुनसान इलाकों में फेंक दी जाती हैं।
2009 से लेकर अब तक बलोचिस्तान में 30,000 से अधिक लोग लापता हो चुके हैं। इनमें से कई की लाशें बाद में जली हुई या विकृत अवस्था में मिलीं, जबकि हजारों का अब तक कोई पता नहीं चला है। अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठनों ने पाकिस्तान पर बलोचिस्तान में मानवाधिकारों के गंभीर उल्लंघनों के आरोप लगाए हैं, लेकिन पाकिस्तान सरकार इन आरोपों को खारिज करती रही है। बलोच राष्ट्रवादी समूहों का कहना है कि पाकिस्तान की सरकार और सेना बलोच संस्कृति और पहचान को मिटाने का प्रयास कर रही हैं। बलोच भाषा, साहित्य और परंपराओं को दबाने के लिए कई नीतियां बनाई गई हैं।
बलोच एवं पाकिस्तान संघर्ष के कारण
इस संघर्ष में पाकिस्तान और चीन की भूमिका भी अत्यधिक महत्वपूर्ण है। चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर (CPEC) परियोजना के कारण बलोचिस्तान में तनाव और बढ़ गया है। इस परियोजना के तहत, पाकिस्तान और चीन बलोचिस्तान के प्राकृतिक संसाधनों का दोहन कर रहे हैं, जबकि बलोच लोगों को इसका कोई लाभ नहीं मिल रहा है। इस कारण बलोच विद्रोही समूहों ने चीन और पाकिस्तान के ठिकानों पर कई हमले किए हैं। पाकिस्तानी सरकार ने इन हमलों को रोकने के लिए और अधिक सैन्य बल तैनात कर दिया है, जिससे बलोच लोगों के खिलाफ दमन की घटनाएं और बढ़ गई हैं।
बलोच राष्ट्रवादियों की मांग है कि उन्हें अपने संसाधनों, संस्कृति और राजनीतिक भविष्य पर पूरा अधिकार मिले। वे पाकिस्तान से पूर्ण स्वतंत्रता चाहते हैं, ताकि वे अपने प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग अपने विकास के लिए कर सकें और अपनी सांस्कृतिक पहचान को संरक्षित रख सकें। बलोचिस्तान में हो रहे दमन, हत्याओं और मानवाधिकार उल्लंघनों को समाप्त करने के लिए अंतरराष्ट्रीय समुदाय को हस्तक्षेप करना होगा, ताकि बलोच लोगों को न्याय मिल सके और उन्हें आत्मनिर्णय का अधिकार प्राप्त हो।
बलोचों की मुख्य मांगे
बलोच अलगाववादी गुटों की मांगें स्पष्ट हैं। वे स्वतंत्रता यानी पूर्ण आज़ादी चाहते हैं, जिससे वे अपने प्राकृतिक संसाधनों पर अधिकार प्राप्त कर सकें। बलोचिस्तान खनिज, गैस, तांबा और सोने जैसे बहुमूल्य संसाधनों से समृद्ध है, लेकिन बलोच लोगों का दावा है कि इन संसाधनों का दोहन केवल पाकिस्तान सरकार और सेना द्वारा किया जाता है, जबकि स्थानीय लोगों को इसका कोई लाभ नहीं मिलता। वे मानवाधिकार हनन के खिलाफ भी संघर्ष कर रहे हैं क्योंकि पाकिस्तानी सेना पर बलोच नागरिकों के अपहरण, जबरन गुमशुदगी और हत्या के आरोप लगते रहे हैं। बलोचिस्तान के लोगों को डर है कि उनकी भाषा, संस्कृति और पहचान धीरे-धीरे समाप्त की जा रही है, इसलिए वे अपनी सांस्कृतिक विरासत की सुरक्षा की मांग कर रहे हैं।
बलोच स्वतंत्रता संग्राम को कई संगठन नेतृत्व दे रहे हैं, जिनमें बलोचिस्तान लिबरेशन आर्मी (BLA), बलोच लिबरेशन फ्रंट (BLF), बलोच रिपब्लिकन आर्मी (BRA) और बलोच नेशनल मूवमेंट (BNM) प्रमुख हैं। बलोच स्वतंत्रता संग्राम से जुड़े प्रमुख नेताओं में अख्तर मेंगल, ब्राह्मदाग बुगती और अल्लाह नज़र बलोच जैसे नाम शामिल हैं, जो बलोच राष्ट्रवादियों के लिए प्रेरणा का केंद्र हैं।
वर्तमान परिदृश्य
वर्तमान समय में बलोच आंदोलन एक निर्णायक दौर में प्रवेश कर चुका है। 2025 में बलोच उग्रवादियों ने कई पाकिस्तानी सैन्य ठिकानों पर हमले किए, वर्तमान में जाफ़र एक्सप्रेस का अपहरण किया तथा पाकिस्तानी सैनिकों मार दिया। कल पाकिस्तानी सेना की कानवाई पर फ़िदायिन हमला कर दिया जिससे 90 सैनिक हलाक हो गये, इस तरह संघर्ष और बढ़ गया है। पाकिस्तान की सेना पर जबरदस्ती गायब करने और मानवाधिकार उल्लंघन के आरोपों में वृद्धि हुई है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर, बलोच अलगाववादी समूह भारत, यूरोप और अमेरिका से समर्थन की अपील कर रहे हैं ताकि उनकी आवाज़ को वैश्विक मंच पर उठाया जा सके। बलोचिस्तान की आज़ादी की लड़ाई पाकिस्तान के लिए एक बड़ा आंतरिक संकट बन चुकी है और यह संघर्ष निकट भविष्य में भी जारी रहने की संभावना है।
बलोचिस्तान की स्वतंत्रता की लड़ाई आज भी जारी है। बलोच विद्रोही समूह लगातार पाकिस्तान सरकार और सेना के खिलाफ संघर्ष कर रहे हैं, जबकि पाकिस्तान इस आंदोलन को कुचलने के लिए हरसंभव दमनकारी उपाय कर रहा है। हजारों बलोच कार्यकर्ता और नागरिक अब भी गायब हैं, और बलोच परिवार अपने प्रियजनों की तलाश में न्याय की गुहार लगा रहे हैं। पाकिस्तान सरकार बलोचिस्तान में हो रहे मानवाधिकार उल्लंघनों को अंतरराष्ट्रीय समुदाय से छिपाने का प्रयास कर रही है, लेकिन बलोचिस्तान की जनता अपने अधिकारों और स्वतंत्रता के लिए संघर्ष जारी रखे हुए है।