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संतान की दीर्घायु की कामना से मनाये जाने वाला लोकपर्व अहोई अष्टमी

भारत हिन्दू संस्कृति का केन्द्र हैं, यहाँ सप्ताह के सातों दिन कोई न कोई त्योहार मनाया जाता है। ये त्योहार लोक की धरोहर हैं तथा हिन्दू धर्म के प्राण तत्व भी हैं। इन त्योहारों के बिना हिन्दू धर्म की कल्पना भी नहीं की जा सकती। शरद पूर्णिमा मनाने के बाद लगातार कई महत्वपूर्ण त्योहार आते हैं, उनमें से एक त्योहार अहोई अष्टमी है। यह व्रत त्योहार संतान की लम्बी आयु की कामना से मनाया जाता है।

इसे विशेष रूप से उत्तर भारत के राज्यों जैसे उत्तर प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा, पंजाब, मध्य प्रदेश और दिल्ली में बहुत उत्साह से मनाया जाता है। इस पर्व का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व गहरा है, और यह माताओं के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, क्योंकि इस दिन वे अपने पुत्रों की दीर्घायु और कल्याण की कामना के लिए व्रत रखती हैं।

अहोई अष्टमी का संबंध भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा से है। मान्यता है कि माता पार्वती ने इस दिन अपने पुत्रों की लंबी आयु और सुखमय जीवन के लिए उपवास किया था। यह त्योहार विशेष रूप से संतान की सुरक्षा, अच्छे स्वास्थ्य और उनकी समृद्धि के लिए मनाया जाता है। इस दिन माताएं निर्जल उपवास रखती हैं और रात को तारों के दर्शन कर या चंद्रमा को अर्घ्य देकर ही अपना व्रत पूर्ण करती हैं।

अहोई अष्टमी का सांस्कृतिक पक्ष भी गहरा है। यह व्रत केवल धार्मिक अनुष्ठानों तक सीमित नहीं है, बल्कि भारतीय समाज में मातृत्व और संतान के बीच के रिश्ते की महत्वपूर्ण भूमिका को भी दर्शाता है। भारतीय समाज में मां की ममता और उसके त्याग को अत्यधिक सम्मान दिया जाता है, और यह व्रत इसी प्रेम और त्याग का प्रतीक है।

सांस्कृतिक दृष्टिकोण से, यह पर्व महिलाओं के लिए एक अवसर है जहां वे परिवार और समाज में अपनी भूमिका को और भी मज़बूत करती हैं। इस व्रत के दौरान महिलाएं अहोई माता की पूजा करती हैं। इस दिन घर को भी विशेष रूप से साफ और सजाया जाता है। महिलाएं अपने परिवार और विशेष रूप से अपने बच्चों की भलाई के लिए व्रत रखती हैं और सामूहिक रूप से पूजा करती हैं, जिससे सामुदायिक और पारिवारिक संबंध मजबूत होते हैं।

अहोई अष्टमी पर माताएं प्रातः स्नान कर व्रत का संकल्प लेती हैं। दिन भर वे बिना अन्न-जल ग्रहण किए उपवास करती हैं। दिन में अहोई माता की पूजा की जाती है, आंगन साफ़कर वहाँ चौक पूरकर उनके सामने जल का पात्र रखा जाता है। यहीं दोपहर के समय महिलाएं एक जगह इकट्ठा होकर गेंहू के दाने हाथ मे लेकर अहोई माता की कथा सुनती हैं। पूजा के बाद तारों या चंद्रमा को अर्घ्य देकर व्रत तोड़ा जाता है।

अहोई माता की व्रत कथा
एक साहूकार था जिसके सात बेटे और सात बहुएं थीं। दिवाली से पहले कार्तिक अष्टमी को सातों बहुएं अपनी इकलौती ननद के साथ जंगल में जाकर खदान में मिट्टी खोद रही थीं। वहां स्याहू की मांद थी। मिट्टी खोदते समय ननद के हाथ से स्याहू का बच्चा मर गया। इससे स्याहू माता बहुत नाराज हो गई और बोली- मैं तेरी कोख बांधूंगी। तब ननद अपनी सातों भाभियों से बोली- तुम में से कोई अपनी कोख बंधवा लो। सभी भाभियों ने अपनी कोख बंधवाने से इन्कार कर दिया। परन्तु छोटी भाभी सोचने लगी कि अगर मैंने अपनी कोख नहीं बंधवाई तो सासू जी नाराज होंगी। यह सोचकर ननद के बदले में छोटी भाभी ने अपनी कोख बंधवा ली। अब इसके बाद उसको जो बच्चा होता वह सात दिन का होकर मर जाता।

एक दिन पंडित को बुलाकर पूछा- मेरी संतान सातवें दिन क्यों मर जाती है ? तब पंडित ने कहा- तुम सुरही गाय की सेवा करो। सुरही गाय स्‍याहू माता की भायली है। वह तेरी कोख खुलवा देगी तब तेरा बच्चा जीएगा। अब वह बहुत जल्दी उठकर चुपचाप सुरही गाय के नीचे साफ-सफाई कर आती। सुरही गाय ने सोचा रोज़ उठकर कौन मेरी सेवा कर रहा है? सो आज देखूंगी।

गऊ माता खूब सवेरे उठी। देखती है कि साहूकार के बेटे की बहू उसके नीचे साफ-सफाई कर रही है। गऊ माता उससे बोली क्या मांगती है ? साहूकार की बहू बोली- स्याहू माता तुम्हारी भायली है और उसने मेरी कोख बांध रखी है। सो मेरी कोख खुलवा दो। गऊ माता ने कहा अच्छा ठीक है। अब तो गऊ माता समुद्र पार साहूकार की बहू को अपनी भायली के पास लेकर चल पड़ी। रास्ते में कड़ी धूप थी। सो वह दोनों एक पेड़ के नीचे बैठ गई।

थोड़ी देर में एक सांप आया। उसी पेड़ पर गरुड़ पंखनी का एक बच्चा था। सांप उसको डसने लगा। तब साहूकार की बहू ने सांप मारकर ढाल के नीचे दबा दिया और बच्चे को बचा लिया। थोड़ी देर में गरुड़ पंखनी आई तो यहां खून देखकर साहूकार की बहू को चोंच मारने लगी। तब साहूकार की बहू बोली- मैंने तेरे बच्चे को नहीं मारा बल्कि सांप तेरे बच्चे के करीब आया था। मैंने तो उससे तेरे बच्चे की रक्षा की है। यह सुनकर गरुड़ पंखनी बोली- मांग तू क्या मांगती है? वह बोली- सात समुद्र पार स्याहू माता रहती है। हमें तू उसके पास पहुंचा दे। तब गरुड़ पंखनी ने दोनों को अपनी पीठ पर बैठाकर स्याहू माता के पास पहुंचा दिया।

स्याहू माता उनको देखकर बोली- आ बहन बहुत दिनों में आई है। फिर कहने लगी- बहन मेरे सिर में जुए पढ़ गईं है। तब सुरही के कहने पर साहूकार की बहू ने उसकी सारी जुएं निकाल दीं। इस पर स्याहू माता प्रसन्न होकर बोली- तूने मेरे सिर में बहुत सलाई घेरी हैं इसलिए तेरे सात बेटे और सात बहू होंगी। वह बोली- मेरे तो एक भी बेटा नहीं सात बेटे कहां से होंगे ? स्याहू माता बोली वचन दिया है। तब साहूकार की बहू बोली- मेरी कोख तो तुम्हारे पास बंद पड़ी है। यह सुन स्‍याहू माता बोली- तूने मुझे ठग लिया जा तेरे घर पर तुझे सात बहुएं मिलेंगी। तू जाकर उजमन करियो। सात अहोई बनाकर सात कढ़ाई करियो। वह लौटकर घर आई तो वहां देखा कि सात बेटे सात बहू बैठे हैं। वह खुश हो गई। उसने सात अहोई बनाई, सात उजमन किए, और सात कढ़ाई करी।

शाम के समय जेठानियों आपस में कहने लगीं कि जल्दी-जल्दी पूजा कर लो कहीं छोटी बच्चों को याद करके न रोने लगे। थोड़ी देर में उन्होंने अपने बच्चों से कहा- अपनी चाची के घर जाकर देख आओ कि आज वह अभी तक रोई क्यों नहीं? बच्चों ने आकर कहा- चाची तो कुछ मांड रही है। खूब उजमन हो रहा है। यह सुनते ही जेठानियां दौड़ी-दौड़ी वहां आई और आकर कहने लगीं कि तूने कोख कैसे खुलवाई? वह बोली- तुमने तो कोख बंधवाई नहीं थी। सो मैंने कोख बंधवा ली थी अब स्‍याहू माता ने कृपा करके मेरी कोख खोल दी है। हे स्याहू माता! जिस प्रकार उस साहूकार की बहू की कोख खोली उसी प्रकार हमारी भी कोख खोलना।

अहोई अष्टमी मुख्यतः एक लोकपर्व है, जो पौराणिक कथाओं से उतनी जुड़ी नहीं है, जितनी कि लोक मान्यताओं और परंपराओं से। यह पर्व खासतौर पर माताओं द्वारा अपनी संतानों की लंबी आयु, सुख-समृद्धि और कल्याण के लिए मनाया जाता है। हालांकि इसका धार्मिक महत्व भी है, लेकिन यह अधिकतर लोक परंपराओं और ग्रामीण संस्कृति का हिस्सा है, जिसे विशेष रूप से उत्तर भारतीय समाज में मनाया जाता है।

One thought on “संतान की दीर्घायु की कामना से मनाये जाने वाला लोकपर्व अहोई अष्टमी

  • October 24, 2024 at 11:18
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    बहुत सुंदर जानकारी भईया
    💐💐💐💐💐💐💐💐

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