दो दशकों की खींचतान के बाद भारतीय हुई आर्य सभ्यता
एनसीईआरटी ने कक्षा 12 की पाठ्यपुस्तक में किया संशोधन
एनसीईआरटी में पढ़ाए जाने वाले भारत के इतिहास में आर्य अब आक्रमणकारी नहीं बल्कि भारतीय मूल के रूप में जाने जाएंगे। 21 साल की खींचतान और दुनियाभर में हुए अध्ययनों के बाद अंततः यह तय हो गया कि ‘आर्य ‘सभ्यता’ भारतीय ही थी। राखीगढ़ी के उत्खनन से निकले इस सच को देश के पाठ्यक्रम में शामिल करने का श्रेय भी ‘राखीगढ़ी मैन’ के नाम से प्रसिद्ध प्रो. वसंत शिंदे को जाता है।
इतिहास के पाठ्यक्रम में भी किया गया बदलाव
राखीगढ़ी मैन के नाम से मशहूर प्रो. वसंत शिंदे के प्रस्ताव पर एनसीईआरटी की कक्षा 12 की किताबों में बदलाव किया गया है। इसमें इतिहास की पाठ्य पुस्तक में ‘ईट, मोती और हड्डियां हड़प्पा सभ्यता’ नामक पाठ में आर्य सभ्यता के भारतीय होने संबंधी संशोधन किए गए हैं। इसके अलावा एनसीईआरटी की कक्षा 7, 8, 10 और 11 के इतिहास और समाजशास्त्र के पाठ्यक्रमों में भी बदलाव किया गया है।
आर्यों के भारतीय होने संबंधी पहला शोध स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी के टॉमस कीवीशील्ड ने किया था। 2003 में ‘अमेरिकन जर्नल ऑफ ह्यूमन ‘जेनेटिक्स’ में प्रकाशित इस शोधपत्र में सबसे पुरानी जाति और जनजाति के जीन के आधार पर आर्यों को भारत का मूल ही बताया गया था।
हालांकि वर्ष 2009 में बीएचयू के पूर्व कुलपति स्व. प्रो. लालजी सिंह और प्रो. थंगराज के शोध में इसका खंडन किया गया। इस शोध दल का दावा था कि भारत में एनसेस्ट्रल नॉर्थ इंडियन और एनसेस्ट्रल साउथ इंडियन जीन पाए जाते हैं। इनमें एनसेस्ट्रल साउथ इंडियन 60 हजार साल और एनसेस्ट्रल नॉर्थ इंडियन जीन 40 हजार साल पुराने हैं। इस आधार पर आर्यों को बाहर से आया बताया गया था।
इसके बाद भी इस मुद्दे के पक्ष और विपक्ष में दुनियाभर में कई अध्ययन हुए। इसमें एस्टोनिया के जीनोम सेंटर से लेकर हावर्ड और बीएचयू तक के विशेषज्ञ शामिल थे। 2019 में प्रो. वसंत शिंदे द्वारा राखीगढ़ी उत्खनन से मिले चार हजार साल पुराने जीन की जांच में सबसे बड़ा सच सामने आया।
यह पाया गया कि राखीगढ़ी से मिला जीन आज के भारत के हर व्यक्ति में पाया जाता है। इसके आधार पर यह तथ्य स्थापित हुआ कि भारतीय सभ्यता आर्यों से पहले की है। एनसीईआरटी के इतिहास पाठ्यक्रम निर्धारण समिति के चेयरमैन बनने पर प्रो. शिंदे ने इस तथ्य के आधार पर पाठ्यक्रम में संशोधन कराया।