देवेन्द्र कोठारी : घुमक्कड़ी के लिए हौसला होना आवश्यक।
1 – आप अपनी शिक्षा दीक्षा, अपने बचपन का शहर एवं बचपन के जीवन के विषय में पाठकों को बताएं कि वह समय कैसा था?
पांच भाई-बहनों में सबसे छोटा होने के कारण बचपन लाड-दुलार से बीता। हायर सेकेंडरी तक की शिक्षा विज्ञान (गणित) विषय से गांव में ही हासिल कर, फिर बीकानेर के जैन कॉलेज से वाणिज्य एवं श्रीडूंगर कॉलेज से विधि स्नातक की शिक्षा हासिल की।
2 – वर्तमान में आप क्या करते हैं एवं परिवार में कौन-कौन हैं?@ मूलतः मैं एकाउंट्स का जीव हूँ। हाल-फ़िलहाल उत्तराखंड के सुदूरवर्ती इलाके पिंडारी घाटी में सरकार के स्वच्छता अभियान के तहत 11 गांवों में शौचालय निर्माण के लिये एक एनजीओ के समन्वयक के साथ कार्य कर रहा हूँ। इससे मेरे पहाड़ी लगाव की भूख तो शांत होती ही है, साथ ही साथ पहाड़ी लोगों में स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता पैदा करके उनके जीवन स्तर को ऊंचा उठाने की कोशिश से आत्मतुष्टि भी मिल जाती है।
परिवार में भार्या के अलावा दो पुत्र, दो पुत्रवधु व एक बेटी है।
3 – घूमने की रुचि आपके भीतर कहाँ से जागृत हुई?@ पढ़ने का शौक़ शरू से ही था। विद्यार्थी काल के ग्रीष्मावकाश में गांव के पुस्तकालय का संचालन किया करता था। वहां विभिन्न पत्रिकाओं व अखबारों के पर्यटन परिशिष्ट मुझे विशेष आकर्षित करते थे। बस उन्हें पढ़ कर मेरी घुमने के प्रति रूचि जाग्रत हुई थी।
4 – आप एवरेस्ट बेस कैंप के लिए गये थे, कैसा अनुभव रहा?
@ हालांकि मैं ये यात्रा पूरी नहीं कर सका। मई 2016 में नीरज मुसाफिर के द्वारा पूर्वघोषित ‘एवरेस्ट बेस कैंप’ बाइक यात्रा के लिए मेरा भी मन बन गया था। इसके लिए हमने टाकशिन्दों-ला (नेपाल, 3070मीटर) से ट्रेकिंग आरम्भ की थी। जहाँ से 1500 मीटर तक उतराई कर, 2860 मीटर की ऊंचाई पर पहुंच कर सुरके (2290 मीटर) तक साढ़े तीन दिन में 40-45 किमी तय करने के बाद ट्रेकिंग की अनुभवहीनता के कारण मेरी टांगे जबाब दे गई और नीरज से यात्रा जारी रखने में असमर्थता ज़ाहिर कर दी। सुरके से 2 किमी आगे, जहाँ ‘लुकला’ से भी रास्ता आकर मिलता है, वहां नीरज से विदाई लेकर ‘लुकला’ (2840मीटर) पहुंच गया। 2 दिन लुकला रुक कर हेलीकॉप्टर से फाफलू पहुंच कर 20 किमी दूर स्थित टाकसिंदो-ला पर खड़ी बाइक लेकर वापिसी के लिए रवाना हो गया।
अनुभव में यही आया है कि ‘एवरेस्ट बेस कैंप’ जाने वाले हर साल तकरीबन 40 हजार यात्रियों में से 39500-600 विदेशी होते हैं। बाकी 400-500 भारतीय यात्रियों में नीरज मुसाफिर सरीखे जुनूनी व जज्बे वाले 5-7 यात्री ही हवाई यातायात की सहायता लिए बिना यह यात्रा पूर्ण करने का प्रयास करते हैं।
हवाई यातायात में यदि कोई यात्रा की समय सीमा तय करें और उसी के अनुरूप यात्रा करने में सफल हो सके इसमें काफी शंका की बात है। क्योंकि पहाड़ियों के बीच स्थित लुकला को विश्व का सबसे खतरनाक एयरपोर्ट में से एक माना जाता है और थोडा सा मौसम क्या बिगड़ा, फिर पता नहीं आपको ‘काठमांडू-लुकला-काठमांडू’ का प्लेन कब मिले? फिर मौसम का बदलते रहना तो पहाड़ों की रानी ‘लुकला’ का मिजाज है।
हालांकि इस पूरे ‘सोलुखुम्बु’ नाम के एरिया में उत्तराखंड, हिमाचल, जम्मु कश्मीर के जैसी घने जंगलों से युक्त हरियाली, उफनते झरने और दहाड़े मारती नदियां व लद्दाख जैसे रंगों की दुनिया तो नहीं मिलेगी पर पहाड़ों की बरफ़ से लदी ऊंची-ऊंची चोटियों के मध्य ट्रैकिंग शौकीनों को एवरेस्ट के साक्षात दर्शन का अवर्णनीय नजारा एक नितांत ही अलग एहसास ज़रूर कराता है। हिमालय तो हिमालय है, इसको जितनी नज़रों से देखे उतना ही एक अलग सी भव्यता लिए दिखेगा।
एवरेस्ट बेस कैम्प न जा पाने का मलाल तो होना ही था। हाँ, संतुष्टि इस बात की जरूर हुई कि प्रकृति का साहचार्य कर पाया, हिमालय का एक अंश देख पाया और अनुभवों का अनमोल खजाना हासिल कर पाया।
भविष्य में ‘एवरेस्ट बेस कैम्प’ की यात्रा करने वालों को मेरा तो इतना ही कहना है की ट्रैकिंग का कोई भी अनुभवी, जज्बा और जुनून के साथ इस यात्रा को संपन्न कर सकता है।
5 – उस यात्रा के बारे में बताएं जहाँ आप पहली बार घूमने गए और क्या अनुभव रहा?
@ वैसे तो 4 व 6 वर्ष की आयु में पिताजी के साथ कोलकाता व कटक जाना हुआ था। पर मैं अपनी पहली यात्रा मुंबई की मानता हूँ, जहाँ 1979 में अकेला गया था। पिताजी वहां कार्यरत थे। पूरे महीने भर वहां रहा और पिताजी व उनके सहयोगियों से बसों व लोकल ट्रैन के रूट पूछकर रोजाना नई जगहों पर जाता रहता। इस क्रम में उन दिनों की मुंबई के तकरीबन सभी मुख्य भ्रमण स्थलों की घुमाई कर ली। फ्लोरा फाउंटेन के पास बस से उतर कर कोलाबा की विभिन्न गलियों में से होकर गेटवे ऑफ इंडिया जाना बहुत भाता था। ठाठे मारता अंतहीन समन्दर, ऊंची उठती लहरें, दूरस्थ जहाजों का तट की तरफ आना व जहाजों का तट से दूर जाते निहारना अच्छा लगता था।
6 – आपने काफी यात्राएँ बाइक से की हैं, कैसा अनुभव रहा?
@ बाइक मैं लद्दाख (श्रीनगर-लेह-मनाली), हिमाचल, नेपाल, उत्तराखंड आदि की करीबन 15000 किलोमीटर की यात्रा कर चुका हूँ। बाइक से यात्रा करना मुझे बहुत पसंद है। अन्य वाहनों में लगता है, हम प्रकृति को देखते हुए चलते हैं जबकि दोपहिया वाहन से यात्रा करने में लगता है, जैसे हम प्रकृति के साथ ही चल रहे हैं।
7 – घुमक्कड़ी के लिए आप अपने को कैसे फिट रखते हैं?
@ बचपन से ही स्पोर्ट्स मेरी हॉबी रहा है। स्वयं को स्पोर्ट्सपर्सन कहे जाने से मुझे कोई गुरेज़ नहीं है। आज भी हम यहां जयपुर में वॉलीबाल व टेबिलटेनिस खेलना जारी रखे हुये है। इसके अतिरिक्त कभी ट्रेकिंग पे जाने से पहले फिटनेस सेंटर भी जाना शरू कर देता हूँ।
8 – घुमक्कड़ी दिल से नामक फेसबुक ग्रुप से घुमक्कड़ों को क्या फायदा मिलता है?
@ ज़ाहिर सी बात है, इस ग्रुप से घुमने के शौकीनों को नये-नये स्थलों की जानकारी के साथ घूमने की प्रेरणा भी मिलती हैं। बहुत से घुमक्कड़ो से परिचय होता है और उनके अनुभवों से जीवन के विभिन्न पहलुओं की जानकारी मिलती है, जिससे निःसंदेह सहयोग, समन्वय व भाईचारे की भावना का विकास होता है।
9 – आपकी सबसे रोमांचक यात्रा कौन सी थी, अभी तक कहाँ कहाँ की यात्राएँ की और उन यात्राओं से क्या सीखने मिला?
@ मेरी सबसे रोमांचक यात्रा जून 2015 में बाइक से की गई लद्दाख यात्रा रही है। मैं स्कूटर वाला जीव, जिसने अपने जीवन में 4-5 हज़ार किमी से ज़्यादा बाइक नहीं चलाई थी। 55 वर्ष की आयु में पहाड़ों की पहली बाइक यात्रा में कपिल (पुत्र) की 9 साल पुरानी बाइक लेकर निकल पड़ा। घुमक्कड़ नीरज मुसाफिर दंपति के साथ शरू इस यात्रा में 5 दिन बाद ही श्रीनगर में हम बिछुड़ गये। आगे लद्दाख के बारे में मुझे विशेष मालूम नहीं था, फिर भी अगले 10 दिन अकेला लद्दाख घूमता रहा। जब किसी को स्थान के बारे में विशेष पता नहीं होता है, तो घुमक्कड़ी खोजपरक भी हो जाती है और आश्चर्य मिश्रित रोमांच का अतिरिक्त अनुभव होता है। 4000 किमी की यह सफलतापूर्वक बाइक यात्रा केवल होसले से संभव हो पाई।
आज भी सिंथन पास, नुब्रा-श्योक-पैंगोंग रास्ता, बर्फवारी में चांगला पास क्रॉस करने आदि के दृश्य रह रह कर सजीव हो उठते हैं। फ़िलहाल तक उत्तर-पूर्व व दक्षिण भारतीय इलाकों के अलावा अन्य राज्यों में भ्रमण कर चुका हूँ। यात्राओं से मुख्यतः जीवन में किसी भी प्रकार की परिस्थिति को समझने व संभालने में मेरा नज़रिया विस्तारित हुआ है व पूर्वाग्रहों में कमी आने से सहज जीवन जीने की कला का विकाश हुआ है।
10 – घुमक्कड़ साथियों के लिए आपका क्या संदेश हैं?
@ घुमक्कड़ साथियों को यही कहना चाहूंगा कि सहज जीवन के लिये तन और मन का स्वस्थ होना आवश्यक है। घुमक्कड़ी तन और मन को स्वस्थ रखने में उत्प्रेरक का काम करती है। इसके अलावा वर्तमान काल में मनुष्य को जो अज्ञात भय, तनाव, नैराश्य आदि घेरे रहते हैं, घुमते रहने से इन सब बातों से राहत मिलती है। घुमक्कड़ी से जीवन में नवीन ऊर्जा का संचार होकर सकारात्मक व विचारशील दृष्टिकोण का विकास होता है, जिससे अंतोतगत्वा स्वयं के साथ देश व समाज के विकास में भी योगदान परिलक्षित होता है। अतः घुमते रहिये…।
वाह…कोठारी सर आनंद आ गया आपके बारे मे इतना जानकर।
देवेंद्र जी अभी तक आपसे मुलाकात तो नहीं हो पाई इस कारण आपके बारे में बहुत ज्यादा जानकारी नहीं थी लेकिन आज ललित जी के माध्यम से आपके जीवन के कई पहलुओं से रूबरू हुआ वास्तव में इस उम्र में इस तरह की घुमक्कड़ी आपके जुनून और जज्बे को दिखाती है आपने उम्र को मात दे रखी है और ईश्वर है यही प्रार्थना करता हूं कि आपकी घुमक्कड़ी चलती रहे
सबसे वेस्ट इंटरवियू कोठारी सर वाकई में ही सबकी प्रेणा है
सबसे पहले महान घुमक्कड़ के चरणों में प्रणाम
सर की सोलो घुमक्कड़ी के बारे में बहुत अच्छा व्याख्यान
मुझे भी ऐसे महान घुमक्कड़ से मिलने का और आशीर्वाद लेने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है
भगवान से कामना करता हूँ कि आपको स्वस्थ रखे
आभार ललितजी ?
पहले तो आपको सादर प्रणाम। , थोड़ा तो आपके बारे में पता था पर आज बहुत कुछ जान लिया। 55 की आयु में बाइक से घुम्मकड़ी और वो भी अकेले ये केवल हौसले से हो सकता है। घुमक्क्ड़ी एक जूनून है , एक जज्बा है , एक जोश है, एक नशा है। कोठरी जी आपकी घुम्मकड़ी से मुझ जैसे नवसिखुये को बहुत कुछ मिल रहा है और मिलेगा।
काबिलेतारीफ , जबर्दस्त ।
बढ़िया जानकारी मिली
घुमक्कड़ी और सामाजिक पैरोकार के बहुत अद्भूत व्यक्तित्व के मालिक है हमारे देवेंद्र सर ।
सर्वप्रथम आपको मेरी शुभकामनाएँ …आप 155 वर्ष की आयु तक ऐसे ही घूमते रहे !
आपके बारे मे जानकारी मिली तो हम अपने को युवा समझने लगे ….
अभी हम भी 15 बीस वर्षों तक घूम सकते हैं …
किसी काम की कोई उम्र नही इसका प्रमाण आप हो …
लखनऊ आइये तो खाना मेरे घर पर होगा ।
घुमक्कड़ी एक जूनून है और जूनून को कोठरी जी ने अपने अंदर समाहित किया हुआ है जो केवल उन्हें आनंदित करता होगा वरन नए -पुराने लोगों को भी प्रेरित करता होगा !! बहुत सुन्दर साक्षात्कार , आभार ललित शर्मा जी
कोठरी जी, आपके बारे में आज बहुत कुछ जान लिया।बहुत सुन्दर साक्षात्कार ,
ललित शर्मा जी का भी बहुत आभार.
कोठारी जी नमस्कार आपको। काफी कुछ जाना आज आपके बारे में… बस ऐसे ही घुमक्कडी को नए आयाम देते रहे।
उम्र किसी के लिए रूकावट नहीं अगर जज्बा हो तो. आपसे प्रेरित हुए और आशान्वित भी कि अभी घुमक्कड़ी से रिटायर होने में समय है. बहुत आभार।
शानदार साक्षात्कार कोठारी जी आपका ! अच्छा लगा आपके बारे जानकर , हौसला और जुनून से सब कुछ जीता जा सकता है और आप उसकी मिसाल हो ।
धन्यवाद दिल से ललित जी का और शुभकामनाये कोठारी जी को
कोठारी जी का इस उमर में भी जवानों जैसा जोश देखने काबिल है। हिमालय बेस केम्प नही गए तो कोई बात नही ,उसके इतने नजदीक गए ये भी कम हौसले की बात नही है।
कोठारी साहब ओर ललित सर को इस प्रयास की बधाई हो। घुमक्कड़ी दिल से जिंदाबाद।।।
सच कहा सर आपने,घुमक्कड़ी जीवन में नविन ऊर्जा का संचार करती है। तभी तो आप 55 की उम्र में बाइक से लेह लद्दाख 4000 km हो आये।और पहाड़ों में बाइक चलाना नितान्त थका देने वाला कठिन काम होता है।
उम्मीद है आप ऐसे ही बाइक से साहसिक यात्रायें करते रहे और हम जैसे लोगों को प्रेरणा देते रहें।
बहूत बहुत बधाई दिल से,एवं ललित सर का आभार।