ऑपरेशन सिंदूर के बाद भारत के रक्षा उत्पादन और निर्यात में उछाल
नई दिल्ली: पहलगाम आतंकी हमले के जवाब में ‘ऑपरेशन सिंदूर’ ने भारतीय सेना की ताकत को वैश्विक मंच पर प्रदर्शित किया। इस ऑपरेशन ने भारत की स्वदेशी रक्षा उत्पादन क्षमता को उजागर करते हुए ‘मेक इन इंडिया’ और ‘आत्मनिर्भर भारत’ पहलों की सफलता को रेखांकित किया। ऑपरेशन के बाद से भारतीय रक्षा उद्योग में तेजी देखी जा रही है, जिसके तहत निजी कंपनियों को बड़े ऑर्डर और नए निवेश के अवसर मिल रहे हैं।
पुणे की भारत फोर्ज जैसी प्रमुख निजी रक्षा कंपनियों ने इस बदलाव का नेतृत्व किया है। कंपनी के प्रमुख बाबा कल्याणी ने हाल ही में उद्योग चैंबर CII के एक कार्यक्रम में कहा, “हमें अपनी सेना की आज और भविष्य की जरूरतों को पूरा करने के लिए तेजी से उपकरण विकसित करने होंगे।” भारतीय रक्षा फर्में अब वैश्विक स्तर पर महत्वपूर्ण खिलाड़ी बन रही हैं, और उनकी वित्तीय स्थिति भी मजबूत हो रही है।
सरकारी आंकड़ों के अनुसार, भारत का स्वदेशी रक्षा उत्पादन वित्त वर्ष 2014-15 में 46,429 करोड़ रुपये से बढ़कर वित्त वर्ष 2023-24 में 1.27 लाख करोड़ रुपये से अधिक हो गया है, जो 174% की वृद्धि दर्शाता है। इससे रक्षा खरीद में आयात की हिस्सेदारी 35% तक कम हुई है। ‘मेक इन इंडिया’ और ‘आत्मनिर्भर भारत’ जैसी पहलों के साथ-साथ निजी क्षेत्र को समान अवसर प्रदान करने से यह प्रगति संभव हुई है।
SIPRI की रिपोर्ट के अनुसार, 2020-24 के दौरान भारत का हथियार आयात 2015-19 की तुलना में 9.3% कम हुआ है। इस दौरान भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा हथियार आयातक रहा, लेकिन स्वदेशी उत्पादन में वृद्धि के कारण रूस पर उसकी निर्भरता 2010-14 की तुलना में आधी होकर 36% रह गई है। भारत ने फ्रांस, इजरायल और अमेरिका से खरीद बढ़ाई है। 2024 में भारत ने सैन्य उपकरणों पर 86.1 अरब डॉलर खर्च किए, जो सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का 2.3% है, जिससे भारत दुनिया का पांचवां सबसे बड़ा सैन्य खर्च करने वाला देश बन गया।
भारत का रक्षा निर्यात वित्त वर्ष 2013-14 में 686 करोड़ रुपये से बढ़कर वित्त वर्ष 2024-25 में 23,662 करोड़ रुपये हो गया है, जो 34 गुना वृद्धि दर्शाता है। भारत अब लगभग 100 देशों को बुलेटप्रूफ जैकेट, डोर्नियर विमान, चेतक हेलीकॉप्टर, फास्ट इंटरसेप्टर बोट और हल्के टारपीडो जैसे उत्पाद निर्यात कर रहा है। सरकार को उम्मीद है कि 2029 तक निर्यात 50,000 करोड़ रुपये तक पहुंच जाएगा। निजी क्षेत्र का योगदान इसमें 65% रहा है।
एंटीक स्टॉक ब्रोकिंग की एक रिपोर्ट के अनुसार, बोइंग ने भारत से अपने रक्षा आयात को पिछले चार सालों में 25 करोड़ डॉलर से बढ़ाकर 1 अरब डॉलर कर दिया है, और यह जल्द ही 2 अरब डॉलर तक पहुंच सकता है। हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स (HAL) और भारत इलेक्ट्रॉनिक्स (BEL) जैसी कंपनियां दुनिया की शीर्ष 15 रक्षा कंपनियों में शामिल हो गई हैं।
हैदराबाद में डसॉल्ट एविएशन और टाटा एडवांस्ड सिस्टम्स के बीच राफेल लड़ाकू जेट के फ्यूजलेज निर्माण के लिए हुए समझौते ने भारत को वैश्विक रक्षा निर्माण केंद्र के रूप में स्थापित करने की दिशा में एक बड़ा कदम उठाया है। यह फ्रांस के बाहर पहली ऐसी फैक्ट्री होगी जहां राफेल फ्यूजलेज बनेंगे। यह साझेदारी भारत के रक्षा और एयरोस्पेस उद्योग को मजबूत करेगी और अन्य वैश्विक कंपनियों को भारतीय फर्मों के साथ सहयोग के लिए प्रेरित करेगी।
पड़ोसी देशों से बढ़ते तनाव और बदलती युद्ध तकनीकों को देखते हुए भारत का रक्षा खर्च बढ़ने की संभावना है। भारत को प्रमुख रक्षा निर्माता और निर्यातक बनने के लिए R&D में भारी निवेश, कंपोनेंट खरीद में तेजी और आधुनिक युद्ध तकनीकों के साथ तालमेल की जरूरत होगी। ‘ऑपरेशन सिंदूर’ ने यह साबित किया है कि भारत न केवल अपनी सेना को स्वदेशी उपकरणों से लैस कर सकता है, बल्कि वैश्विक रक्षा बाजार में भी अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज करा सकता है।