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आधुनिक रायगढ़ के शिल्पी दानवीर सेठ किरोड़ीमल

बसन्त राघव

वैसे, छत्तीसगढ़ दानवीरों का गढ़ रहा है। रायपुर में दाऊ कल्याण सिंह, बिलासपुर में पं. देवकीनन्दन दीक्षित और रायगढ़ में सेठ किरोड़ीमल। छत्तीसगढ़ के विकास में इन तीनों विभूतियों के योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता। इन्हीं का अनुसरण करते हुए, शक्ति के वरिष्ठ शिशु रोग विशेषज्ञ डाँ. राजेश अग्रवाल ने हाल के वर्षों में नया बस स्टैंड के लिए अपनी बेशकीमती जमीन नगरपालिका, शक्ति को दान कर एक मिसाल पेश की है, जो अनुकरणीय है।

वर्तमान रायगढ़, छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक राजधानी है। औद्योगिक नगरी के रूप में इसका तेजी से विकास हो रहा है। छत्तीसगढ़ के पूर्वी सीमान्त पर, हावड़ा-बॉम्बे रेल लाइन का यह जीवन्त नगर है। इसका एक दिलचस्प इतिहास है। राजा चक्रधर सिंह और दानवीर किरोड़ीमल लोहारीवाला के नाम पर इसे विश्व-विख्यात ख्याति मिली है। रायगढ़ राज्य की स्थापना सन् 1668 के आसपास, महाराष्ट्र चांदा से विस्थापित राजा मदन सिंह ने की थी। पहले बुनगा, बाद में राजा ने नवागढ़ी में “सतखंडा” की नींव डाली और राज्य को विकसित किया।

बीसवीं सदी के शुरू में, राजा चक्रधर सिंह ने इसे साहित्य और संगीत के लिए विख्यात किया। रायगढ़ नगर की प्रसिद्धि में एक और अमिट नाम है, दानवीर सेठ किरोड़ीमल लाहरीवाले का। सच्चे अर्थों में, वे आधुनिक रायगढ़ नगर के शिल्पी हैं। अगर उनके योगदान को हटाकर देखें, तो रायगढ़ एक सामान्य व्यवसायिक स्तर का शहर ही होता। हालांकि, वर्तमान में यह एक औद्योगिक नगरी के रूप में तेजी से विकसित हो रहा है।

सेठ किरोड़ीमल ने यहाँ पहली बार अधिकाधिक मात्रा में स्कूल, कॉलेज, पुस्तकालय, चिकित्सालय, बालमंदिर, बालसदन, भव्य मंदिर, धर्मशाला, भरत कूप, कुआँ-बावली और कॉलोनियों का निर्माण कराया। इतना ही नहीं, रायगढ़ शहर को औद्योगिक नगर के रूप में पहचान दिलाने वाला, प्रदेश का प्रथम जूट मिल भी उन्होंने ही स्थापित किया।

सेठ किरोड़ीमल ने अपने बुद्धि-चातुर्य से यहाँ का माल कलकत्ता भेजा। कठिन संघर्ष और व्यावसायिक बुद्धि के कारण, उन्होंने अकूत सम्पत्ति प्राप्त की और अंत में उसे जनता के हित में, सेवा कार्यों में लगा दिया। उनकी यह अप्रतिम सेवा उन्हें महान दानवीरों की श्रेणी में लाकर खड़ा कर देती है। उनकी सेवाएँ क्या कभी भुलाई जा सकती हैं?

राजशाही खत्म होने के बाद, सेठ किरोड़ीमल ने ही औद्योगिक नगर के रूप में रायगढ़ की नींव रखी। सेठ किरोड़ीमल जैसे महादानी, समाजसेवक, विलक्षण व्यवसायी कौन थे, कहाँ से आए, उनका जन्म कहाँ हुआ, यह जानना बहुत दिलचस्प है। सेठ जी का जन्म हिसार (हरियाणा) के एक मध्यमवर्गीय परिवार में, 15 जनवरी 1882 को हुआ था। कम आयु में ही उनमें कुछ कर गुजरने की ख्वाहिश जागी। वे कलकत्ता आकर छोटे-मोटे व्यापार करने लगे, जहाँ उनके भाग्य का सितारा चमका।

प्रो. आर.के. पटेल के शब्दों में, “द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान, 1936 से 1942 तक, सेठ किरोड़ीमल जी ने जापान एवं मित्र राष्ट्रों को, युद्ध की विभीषिका से कराहती जनता के लिए, भारी मात्रा में खाद्यान्न दिया। उनकी दृष्टि में मानवता की सेवा ही सर्वोपरि थी। उनके हृदय में युद्ध के पक्ष-विपक्ष का भेद नहीं था।” मेरे पापा डाँ. बलदेव, जब प्रोफेसर के.के. तिवारी के आग्रह पर, सेठ किरोड़ीमल पर एक लंबा लेख लिख रहे थे, तब पं. लोचन प्रसाद पांडेय के बंधु, पं. मुरलीधर पांडेय ने उन्हें बताया था, “भारत स्वतंत्र हुआ, जब अंग्रेज भारत छोड़कर विदेश जा रहे थे, तब हुकमरानों को कलकत्ता में एक यादगार पार्टी दी गई थी, जिसके प्रबंधक थे श्री किरोड़ीमल। इससे प्रसन्न होकर, अधिकारियों ने उन्हें कंपनी के व्यवसाय में कुछ प्रतिशत का लाभ तय कर दिया था, जिससे उन्होंने प्रभूत राशि कमाई।” कठिन संघर्ष और व्यवसायिक तीक्ष्ण बुद्धिमत्ता ने ही उन्हें रायगढ़ आने के लिए प्रेरित किया। यहाँ उनका कारोबार बढ़ा और दिन-दूनी, रात-चौगुनी कमाई होने लगी। उन्हें यहाँ सबकुछ मिला, पर वे निःसंतान थे। अतः, अब उनका ध्यान परोपकार की ओर लगा।

सेठ किरोड़ीमल ने परोपकार के लिए अनेक महत्त्वपूर्ण कार्य किए। कुछ प्रमुख इस प्रकार हैं: अविभाज्य मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री श्री रविशंकर शुक्ल एवं सेठ पालूराम धनानिया की प्रेरणा से, उन्होंने रायगढ़ में 7 मार्च 1946 को गौरीशंकर मंदिर का शिलान्यास पं. शुक्ल के हाथों करवाया। देश के प्रसिद्ध झूला-मेले की शुरुआत भी उन्होंने गौरीशंकर मंदिर से की। यह संगमरमर पत्थर से निर्मित विशाल मंदिर है, जिसका शिल्प पूर्णतः राजस्थानी है। इसके गर्भगृह की दीवारों पर सत्यम् के चित्र, लोगों को पौराणिक गाथाओं की याद दिलाते हैं।

30 लाख नकद एवं अपनी अन्य संपत्तियों के साथ, 13 मई 1946 को तत्कालीन मुख्यमंत्री के हाथों, “सेठ किरोड़ीमल धर्मादा ट्रस्ट” की स्थापना कराई गई। रायगढ़ में ही नहीं, उन्होंने देश के विभिन्न स्थानों जैसे दिल्ली, मथुरा, मेंहदीपुर (राजस्थान), भिवानी (हरियाणा), पचमढ़ी, रायपुर, किरोड़ीमल नगर आदि में अनेक धर्मशालाएँ, रैन बसेरे, और कॉलेजों का निर्माण कराया, जो उनके लोकापकारी कार्यों का जीवन्त उदाहरण हैं।

दिल्ली में सेठ किरोड़ीमल ट्रस्ट द्वारा स्थापित ‘किरोड़ीमल कॉलेज’ में, सदी के महानायक अमिताभ बच्चन ने अध्ययन किया था। उनके अलावा, मदनलाल खुराना (दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री), कुलभूषण खरबंदा, सतीश कौशिक, गिरिजा प्रसाद कोइराला (नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री), सुशांत सिंह और अश्वनी चाँद जैसे अनेक प्रसिद्ध व्यक्ति, किरोड़ीमल कॉलेज के छात्र रह चुके हैं।

रायगढ़ की बात चलती है, तो मुझे सन् 1975 की याद आती है। उस समय, हम लोग धर्मजयगढ़ में रहते थे और वहीं से जन्माष्टमी के दिन, झूला मेला देखने के लिए, सपरिवार रायगढ़ आए थे। उस समय, पूरा शहर रोशनी से नहाया हुआ लग रहा था। (आज भी झूला मेले में वही हाल रहता है।) झूला मेला देखने, छत्तीसगढ़ और उड़ीसा के अन्य शहरों से लाखों श्रद्धालु आए हुए थे। आज भी भक्तों की संख्या लाखों में होती है और भीड़ इतनी रहती है कि स्टेशन से लेकर मंदिर तक, कहीं भी पाँव रखने की जगह नहीं रहती।

मैं दो वर्ष पहले भी रायगढ़ आया था। पापा जी घर में नहीं थे। बीमार हालत में, अकेले मम्मी ने मुझे के.जी. हॉस्पिटल, रायगढ़ में भर्ती कराया था। यहीं मेरा निःशुल्क इलाज हुआ था। 1 जुलाई 1947 को, सेठ किरोड़ीमल ने महात्मा गांधी नेत्र चिकित्सालय का लोकार्पण, राजर्षि पुरुषोत्तमदास टंडन से करवाया था। (वे पं. मुकुटधर पांडेय के मित्रों में थे।) नेत्र चिकित्सालय के समीप ही, असर्फी देवी महिला चिकित्सालय है। सेठ किरोड़ीमल जी ने अपनी पत्नी के नाम से इसका निर्माण कराया था। इसका उद्घाटन भी पं. रविशंकर शुक्ल ने किया था। यह आधुनिक एक्स-रे मशीनों से सर्व-सुविधायुक्त अस्पताल था। यहाँ निःशुल्क इलाज किया जाता है। पहले, अस्पताल का सारा खर्च ट्रस्ट द्वारा उठाया जाता था।

शिक्षा के क्षेत्र में, सेठ जी अत्यंत उदार एवं जागरूक थे। मेरे जीवन की एक घटना मुझे याद है, जो आदर्श बाल मंदिर से जुड़ी है। नवांकुरों की शिक्षा के लिए, इसे भी सेठ जी ने शुरू किया था। इसके एक प्रखंड में, कथक नृत्य (तांडव पक्ष) की शिक्षा, पं. फिरतू महाराज यहाँ की बालिकाओं को वर्षों तक देते रहे। सन् 1975-76 की बात है। पापा जी, जब स्थानांतरण में कोड़ातराई आए, तब उन्होंने अपना निवास रायगढ़ में रखा। उन्होंने स्कूल में दाखिला के लिए, मुझे इसी बाल मंदिर में लाए।

वहाँ के वयोवृद्ध बोड़े गुरुजी ने, मेरा गठीला शरीर देखते ही, बिना कुछ सवाल-जवाब के कहा, “यह लड़का कमजोर है, यहाँ नहीं ले सकते।” पिताजी दुखी हुए और बोले, “बिना सवाल-जवाब के, जाँचे-परखे, आपने ऐसा कैसे कह दिया? क्या आपको पहलवानी करानी है?” स्काउट मास्टर के नाम से प्रसिद्ध बोड़े सर के मन में, चाहे जो रहा हो, जो भी परिस्थिति रही हो, उन्होंने मुझे भर्ती नहीं लिया। मुझे सरस्वती शिशु मंदिर में दाखिला मिला। नटवर हाईस्कूल से मैंने मैट्रिक और किरोड़ीमल विज्ञान कला महाविद्यालय के पी.जी. बिल्डिंग से, अपने बड़े भाई शरद के साथ, हिन्दी में एम.ए. तक की डिग्री ली। इस तरह, मैं इस शहर से जुड़ा रहा।

नटवर स्कूल, रायगढ़ के सामने, खेल का बड़ा मैदान था, जो अब कई प्रभावशाली लोगों द्वारा काट-छाँट कर छोटा कर दिया गया है। खैर, यह स्कूल और मैदान, पतंगबाजी, जालीदार भवन भी सेठ जी की ही कृपा का फल हैं। यहाँ यह भी ज्ञातव्य है कि रायगढ़ के गणेश उत्सव में, बाहर से आने वाले कला साधकों को, नटवर स्कूल में ठहराया जाता था। राजा भूपदेव सिंह ने सन् 1906 में, अपने बड़े बेटे नटवर सिंह के नाम पर, इस स्कूल की स्थापना की थी। सन् 1954 में, सेठ किरोड़ीमल ने इस स्कूल भवन का जीर्णोद्धार कराया और इसे भव्यता प्रदान की। तब से इसे किरोड़ीमल नटवर हाईस्कूल के नाम से जाना जाता है।

रायगढ़ के जिस कोने में चले जाइए, वहाँ सेठ किरोड़ीमल के नाम पर कई स्मारक इमारतें मिलेंगी। लेकिन, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, बिहार और उड़ीसा में, तथा अन्यान्य जगहों पर, सेठ किरोड़ीमल के नाम पर इमारतें खड़ी हैं। यदि पॉलिटेक्निक कॉलेज, रायगढ़ की चर्चा न की जाए, तो इस लेख का उद्देश्य अधूरा रह जाएगा। सेठ किरोड़ीमल ने रायगढ़ में, मध्यप्रदेश का प्रथम पॉलिटेक्निक कॉलेज का निर्माण कराया था, जो आकार में किसी छोटे-मोटे विश्वविद्यालय का स्मरण कराता है।

पॉलिटेक्निक कॉलेज का शिलान्यास, सन् 1955 में, म.प्र. के तत्कालीन मुख्यमंत्री पं. रविशंकर शुक्ल ने किया था, एवं उद्घाटन, देश के प्रथम राष्ट्रपति डाँ. राजेंद्र प्रसाद ने, 1956 में किया था। समारोह की अध्यक्षता, प्रख्यात साहित्यकार एवं पुरातत्ववेत्ता, पं. लोचन प्रसाद पांडेय ने की थी। अविभाजित मध्यप्रदेश के दौरान, कुल दो इंजीनियरिंग कॉलेज (रायपुर और बिलासपुर) और कुल तीन पॉलिटेक्निक थे, जिनमें किरोड़ीमल शासकीय पॉलिटेक्निक कॉलेज, रायगढ़ का नाम प्रमुख था। रायपुर और बिलासपुर के दोनों कॉलेजों में, एडमिशन न हो पाने वाले छात्रों के सामने, रायगढ़ का पॉलिटेक्निक कॉलेज ही विकल्प में बचता था। रायगढ़ के अतिरिक्त, अन्य दो पॉलिटेक्निक कॉलेज, धमतरी और दुर्ग में भी थे, लेकिन दोनों प्राइवेट थे। और यह भी सच था कि रायगढ़ पॉलिटेक्निक कॉलेज की बात ही कुछ और थी। इसकी भव्यता, आते-जाते लोगों को अपनी ओर खींचती थी।

रायगढ़ पॉलिटेक्निक कॉलेज के उद्घाटन के लिए, किरोड़ीमल अपने मुनीम को लेकर, जवाहरलाल नेहरू के यहाँ गए थे। जवाहरलाल नेहरू के स्टाफ ने उन्हें भाव नहीं दिया। किरोड़ीमल ने इसे अन्यथा नहीं लिया। लेकिन, मुनीम को यह सेठ जी का अपमान लगा। मुनीम ने सेठ जी को मरवाड़ी में कहा, “इब तो उद्घाटन राष्ट्रपति सेती होणा चईये।” और दोनों, राष्ट्रपति को आमंत्रित करने, राष्ट्रपति भवन चले गए। राष्ट्रपति डाँ. राजेंद्र प्रसाद जी, स्पेशल ट्रेन से रायगढ़ आए और सेठ किरोड़ीमल ने, महामहिम राजेंद्र प्रसाद जी से, सोने की कैंची से फीता कटवाया।

सेठ किरोड़ीमल के संदर्भ में, भारत के राष्ट्रपति, महामहिम डाँ. राजेंद्र प्रसाद ने अपने उद्बोधन में कहा, “देश को श्री किरोड़ीमल लुहारीवाला सदृश, मानव सेवा में आस्था रखने वाले लोगों की आवश्यकता है, जो संख्या में भले ही कम हों, पर सामने आकर यदि ऐसा अनुकरणीय कार्य करें, तो राष्ट्र का कल्याण होगा।” किरोड़ीमल पॉलिटेक्निक कॉलेज के पीछे, दो बड़े हॉस्टल भी हैं: एक विश्वेश्वरैया हॉस्टल और उसके पीछे तिलक हॉस्टल। इनके निर्माण में, आज करोड़ों रुपये लगेंगे। उस समय, यहाँ लगभग 600 छात्र विद्याध्ययन हेतु रहा करते थे। लेकिन, आज उसका उपयोग नहीं हो पा रहा है। यह खाली पड़ा हुआ है। जनहित में, इसका उपयोग जरूरी है। वर्तमान में, वहाँ सोलह-सत्रह सौ बच्चे पढ़ रहे हैं। इस लिहाज से, छात्रों के हित में, दोनों हॉस्टलों को काम में लिया जाना चाहिए।

छत्तीसगढ़-मध्यप्रदेश का पॉलिटेक्निक कॉलेज होने की वजह से, यहाँ अब तक लाखों इंजीनियर तैयार हो चुके हैं। यहाँ विश्व प्रसिद्ध शिक्षाशास्त्री, डाँ. आर.जी. बुलदेव भी, प्रथम प्राचार्य के रूप में सेवा दे चुके हैं। इसका परिसर, पेड़-पौधों से घिरा हुआ है। रंग-बिरंगे फूल-पौधे, इसकी शोभा बढ़ाते हैं। इसके तीन खंड हैं, जिनमें शताधिक कमरे हैं और जहाँ मौखिक, प्रैक्टिकल के साथ, प्रायः सभी विषयों की पढ़ाई होती है। पिछले पचास-पचपन वर्षों में, यहाँ लाखों इंजीनियर निकल चुके हैं और देश के विभिन्न भागों में, सेठ किरोड़ीमल का नाम राष्ट्रव्यापी कर चुके हैं। इसी बिल्डिंग में, एक ऑडिटोरियम भी है, जिसमें शहर तथा दूसरे शहरों के कवि, लेखक, एवं कलाकार शिरकत करते हैं।

किरोड़ीमल विज्ञान कला महाविद्यालय एवं पॉलिटेक्निक कॉलेज, रायगढ़ में, आचार्य विनयमोहन शर्मा, कविवर रामेश्वर शुक्ल अंचल जैसे नामी-गिरामी विद्वान, प्राचार्य के रूप में कार्य कर चुके हैं। पं. प्रभुदयाल अग्निहोत्री जैसे संस्कृत के महापंडित भी, यहाँ प्रोफेसरी कर चुके हैं। इस विद्यालय से, पं. मुकुटधर पांडेय और जनकवि आनंदी सहाय शुक्ल का भी गहरा संपर्क रहा है।

वाकई, सेठ किरोड़ीमल ने रायगढ़ को बसाया, सजाया, संवारा। यहाँ के लोगों की बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के लिए, उन्होंने बहुत से काम किए। अगर सेठ किरोड़ीमल नहीं होते, तो रायगढ़ इतना पिछड़ा हुआ होता कि हम उसकी कल्पना भी नहीं कर सकते। आज का रायगढ़, अस्सी-पचासी साल पीछे चला जाता। आज भी, छत्तीसगढ़ दो मामलों में बहुत पिछड़ा हुआ है: एक, शिक्षा और दूसरा, स्वास्थ्य। उसके लिए, हमें बाहर जाना पड़ता है। उन्होंने उस समय, देश के बड़े संस्थानों की तर्ज पर, यहाँ हॉस्पिटल, कॉलेज, और स्कूल बनवाए।

जनचेतना के अग्रदूत, सेठ किरोड़ीमल ने, सभी सुविधाओं से युक्त, एक पुस्तकालय की स्थापना भी, 1954-55 में की थी। इसका निर्माण, नेत्र चिकित्सालय और बूजी-भवन (धर्मशाला) के बीच किया गया था। इस पुस्तकालय का परिवर्धन, पालूराम धनानिया कॉमर्स कॉलेज के प्राचार्य, श्री नंदलाल शर्मा ने, बड़ी निष्ठा से किया था। खेद है, रख-रखाव के अभाव में, वह प्रायः सभी विषयों की पुस्तकों का विशाल ग्रंथालय, दीमकों का आहार हो गया। धर्मशाला में ठहरने वाले यात्रियों के लिए, ट्रस्ट की ओर से, भोजन-पानी की व्यवस्था रहती थी। खेद है, इसका उपयोग, व्यावसायिक परिसर के रूप में किया जा रहा है। सेठ जी द्वारा निर्मित कॉलोनियों में, वर्षों से काबिज कुछ लोग, स्थायी रूप से कब्जा कर चुके हैं। लेकिन, प्रशासन अब तक, इन पर रोक नहीं लगा पाया है।

लोगों द्वारा यह भी बताया जाता है कि भारत के भूतपूर्व रक्षा मंत्री और हरियाणा के भूतपूर्व मुख्यमंत्री, बंशीलाल, अपने गर्दिश के दिनों में, रोजी-रोटी की तलाश में, रायगढ़ आए थे। लेकिन, बात नहीं बनी और वे वापस चले गए।

वैसे, छत्तीसगढ़ दानवीरों का गढ़ रहा है। रायपुर में दाऊ कल्याण सिंह, बिलासपुर में पं. देवकीनन्दन दीक्षित और रायगढ़ में सेठ किरोड़ीमल। छत्तीसगढ़ के विकास में, इन तीनों विभूतियों के योगदान को, कभी भुलाया नहीं जा सकता। इन्हीं का अनुसरण करते हुए, शक्ति के वरिष्ठ शिशु रोग विशेषज्ञ, डाँ. राजेश अग्रवाल ने, हाल के वर्षों में, नया बस स्टैंड के लिए, अपनी बेशकीमती जमीन, नगरपालिका, शक्ति को दान कर, एक मिसाल पेश की है, जो अनुकरणीय है।

शहर से छह किलोमीटर दूर, किरोड़ीमल नगर, किरोड़ीमल रेलवे स्टेशन, रायगढ़ शहर का एक और उपनगर है, जिसे सेठ किरोड़ीमल के नाम पर, शासन द्वारा बनाया गया है। आधुनिक रायगढ़ के इस महान शिल्पी का देहपतन, 2 नवंबर 1965 को हुआ था। पर, यशकाया रूप से, वे आज भी हमारे बीच जीवित हैं। ऐसे महान धर्मवलंबी, सेठ किरोड़ीमल का नाम, समाज द्वारा क्या कभी भुलाया जा सकता है? रायगढ़, उनका सदा ऋणी रहेगा।

बसन्त राघव
पंचवटी नगर, बोईरदादर, रायगढ़, छत्तीसगढ़
मो. नं. 8319939396
Email: basantsao52@gmail.com

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