योग और संगीत दो शरीर एक आत्मा
संगीत स्वयं ब्रह्म नाद है और योग ब्रह्म तक पहुंचने का सोपान। प्रकृति लय ताल युक्त संगीत मय है और यही लय ताल योग में भी होती है। देह के साथ योग की लय ताल बैठ जाए तो अंतर में संगीत बजने लगता है। कबीर ने भी कहा है “अनहद बाजे।” अनहद का तात्पर्य है अनाहत। जो बिना किसी आहत (चोट) के बजने लगे वो अनहद होता है। बस यही अनहद नाद प्रकृति में समाया है और यह योग से प्रकट होता है। एक आहत होने से बजता है और दूसरा अनाहत। योग और संगीत एक दूसरे के पूरक हैं।
शायद इसीलिए विश्व योग दिवस और विश्व संगीत दिवस दोनों 21जून को जाते हैं। हम अपनी बात संगीत पर केन्द्रित करते हैं, संगीत दिवस की शुरुआत फ़्रांस से हुई। यहां म्यूजिक फेस्टिवेल फेटे डी ला म्यूजिक नाम से जाना जाता है इसका श्रेय वहाँ के तत्कालीन सांस्कृतिक मंत्री जैक लो को माना जाता है। आज विश्व में 110 देश इस दिवस को मानता है। भारत में भी संगीत प्रेमियों द्वारा इस दिवस पर बहुत से कार्यक्रम आयोजित किये जाते है।
संगीत और प्रकृति का घनिष्ठ संबंध है। प्रकृति का कण-कण संगीतमय है। ॐ एक शाश्वत ध्वनि है जिससे ब्रह्मांड का जन्म हुआ। ॐ ध्वनि से अंतरिक्ष भी गूँज रहा हैं। नाद अर्थात ध्वनि यही सुर लय, तालबद्ध हो संगीत बन जाती है। गायन,वादन और नृत्य के संगम को ही संगीत कहते हैं। मनुष्य का जीवन बिना संगीत के अधूरा और नीरस है।
संगीत कला सबसे मनोहर कला है। संगीत का सम्बन्ध मधुरता से है। संगीत जाति, भाषा, धर्म के बंधनों से मुक्त होता है। मानव जाति के विकास क्रम में जब कोई अविष्कार नहीं हुआ था और वह प्रकृति में विचरण कर रहा था तब से मनोरंजन के लिए उसने आस-पास की ध्वनियों का अनुकरण किया।
विकास के साथ उसने धुनें बनाई, भाषा को पिरोकर लोकगीतों की रचना की और संगीत का स्वरुप निखरता चला गया। आधुनिक युग में तो संगीत का उद्योग ही स्थापित हो गया। मनुष्य ने मनोरंजन के लिए नए-नए वाद्ययंत्रों का निर्माण कर लिया। वैसे भारत में वैदिक काल से ही संगीत की परंपरा चली आ रही है।
संगीत और योग दोनों साधना है। भारतीय संगीत की मधुर ध्वनि योग प्रणाली की तरह ही काम करती है। जो सीधे तंत्रिका तंत्र को प्रभावित करती है। संगीत से मन-मस्तिष्क एकाग्र होता है और शारीरिक-मानसिक सुख-शांति मिलने के साथ जीवन को नई ऊर्जा प्रदान कर सकारात्मकता से भर देने की अद्भुत क्षमता भी होती है। संगीत जीवन जीने की कला सिखाता है।
भारतीय संगीत अपनी विविधता के लिए जाना जाता है। यहां विभिन्न अवसरों के लिए भिन्न-भिन्न संगीत की रचना की गई है, चाहे लोकगीत हो या शास्त्रीय संगीत। भारतीय संगीत में धार्मिक, देशभक्ति, सुख-दुःख जीवन के हर पहलु के गीतों की प्रधानता है जो विषम परिस्थितियों से भी लड़ने की शक्ति प्रदान करता है। संगीत लोगों को भावनात्मक रूप से जोड़ता है।
आत्माभिव्यक्ति का सबसे अच्छा तरीका संगीत है। पेड़-पौधों एवं पशु-पक्षियों पर भी संगीत का गहरा प्रभाव पड़ता है। नवजात शिशु को जब माँ लोरी गाकर थपकी दे सुलाती है तो शिशु के भावनात्मक और मानसिक विकास में वही संगीत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
आज की व्यस्ततम जीवन शैली से मनुष्य तनाव, अनिद्रा, ब्लडप्रेशर जैसी अनेक व्याधियों से ग्रस्त होता जा रहा है। ऐसे में संगीत एक थेरेपी की तरह का काम करता है। भारतीय शास्त्रीय संगीत में ऐसे राग है जिनसे अनेक रोगों की चिकित्सा भी होती है,क्योकि संगीत में रोग निरोधक क्षमता होती है।
संगीत तनाव कम कर जीवन जीने की कला सिखाता है। इससे ध्यान एवं योग साधना होने से शरीर स्वस्थ्य और दिमाग को शांति व प्रसन्नता मिलती है। विविधताओं में भी संगीत के सात सुर एक ही होते है। संगीत चाहे किसी देश काल, भाषा का हो संगीत का प्रमुख तत्व मधुर लय है जिसकी धुन सुन लोग स्वयं ही थिरकने लगते हैं।
योग और संगीत दोनों साधना हैं, दोनों में साधना से ही पारंगत हुआ जा सकता है। संगीत के महत्व व लाभ को देखते हुए संगीत समारोह को विभिन्न तरीके से मनाया जाता हैं। जिसमें नए कलाकारों को मंच प्रदान कर उन्हें प्रोत्साहित किया जाता है। विश्व संगीत दिवस का उद्देश्य विश्व को शांति, एकता, भाई-चारा, सदभावना का संदेश देना है। यही संदेश योग भी देता है, संगीत और योग का कार्य मनुष्य के शरीर एवं चित्त को निरोगी रखना है। तो योग करें और संगीत सुनें और तन मन को स्वस्थ रखें।
आलेख