\

नहीं रहीं बॉलीवुड की दिग्गज अभिनेत्री और कला की धरोहर वैजयंतीमाला बाली !

वैजयन्ती माला बाली (13 अगस्त 1936 –7 मार्च 2025) को अधिकांश रूप से एक ही नाम “वैजयन्ती” के नाम से जाना जाता है, वे एक हिन्दी फिल्मों की प्रसिद्ध अभिनेत्री रही और एक राजनीतिज्ञा भी। उन्होंने भरतनाट्यम की नृत्यांगना, कर्नाटक गायिका, नृत्य प्रशिक्षक और सांसद की भी भूमिका भी निभाई।

उन्होंने अपनी शुरुआत तमिल भाषी की फ़िल्म “वड़कई” से 1949 में की। इसके पश्चात उन्होंने तमिल फ़िल्म “जीवितम” में 1950 में काम किया। जिससे वह दक्षिण भारत की प्रमुख नायिकाओं में से एक बनीं। बॉलिवुड के सुनहरे दौर की अभिनेत्रियों में एक रही।

वैजयन्ती माला ने सबसे पहले हिन्दी फ़िल्म बहार और लड़की में काम किया। फ़िल्म की सफलता के पश्चात वे हिन्दी फ़िल्मों में पूर्णतः स्थापित अभिनेत्री बन गई और इसके साथ-साथ तमिल और तेलुगु फ़िल्मों में काम करती रहीं। बॉक्स-ऑफ़िस की फ़िल्मों में प्रसिद्ध होने के पश्चात वह देवदास में चन्द्रमुखी के चरित्र में 1955 में भूमिका निभा चुकी है। अपने पहले ड्रामाई चरित्र में उसे फ़िल्मफ़ेयर अवॉर्ड प्राप्त हुआ।

वैजयन्ती माला कई कामयाब फ़िल्मों में देखी गई जिनमें नई दिल्ली, नया दौर और आशा शामिल हैं। अपने करियर के परमशिखर पर 1958 में उसकी दो फ़िल्में साधना और मधुमति की फ़िल्म आलोचकों ने जमकर प्रशंसा की और व्यापारिक दृष्टि से काफ़ी सफल रही। उसे दो फ़िल्मों साधना और मधुमति के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के रूप में नामांकित किया गया था जिसमें उसे प्रथम फ़िल्म के लिए पुरस्कृत किया गया था।

ऐसे समय में वैजयन्ती माला तमिल फ़िल्मों में लौट आईं जहाँ उसे वंजीकोट्टई वालिबन, इरुम्बु थिरई, बग़दाद थिरु डॉन और निलावु में अपार सफलता मिली। 1961 में दिलीप कुमार की गंगा-जमुना फ़िल्म के बनने के बाद वैजयन्ती माला को एक देहाती लड़की धन्नो के रूप में देखा गया जो भोजपुरी में बात करती थी। आलोचकों ने उसके पात्र की प्रशंसा की और कुछ ने तो इसे उसका सर्वश्रेष्ठ अभिनय घोषित किया। गंगा-जमुना के कारण उसे फ़िल्मफ़ेयर का दूसरा पुरस्कार प्राप्त हुआ। 1962 से वैजयन्ती माला की अधिकांश फ़िल्में या तो औसत दर्जे की सफलता प्राप्त करने लगी या फिर नाकाम होने लगी।

1964 में संगम फ़िल्म की सफलता ने उसके कैरिअर को एक नई ऊँचाई पहुँचाई। वैजयन्ती माला ने इसके पश्चात एक आधुनिक महिला के रूप में स्थापित करते हुए बिकिनी अथवा दिखाई देने वाले कपड़े पहनकर फिल्मों में आने लगी। वैजयन्ती माला को बारहवीं फ़िल्मफ़ेयर समारोह में संगम फ़िल्म में राधा के रोल के लिए पुरस्कृत किया गया था।

ऐतिहासिक नाटक आम्रपाली में अपनी भूमिका के लिए उसे आलोचकों की प्रशंसा मिली। इसके बावजूद फिल्म नाकाम रही और वैजयन्ती माला ने फिल्मों को छोड़ने का निर्णय लिया। अपने करिअर के अंत में वैजन्ती माला ने मुख्य धारा की कुछ फिल्में जैसे कि सूरज, ज्वेल थीफ, प्रिन्स और संघर्ष में काम किया। इन में से अधिकांश फिल्में वैजयन्ती माला के फिल्म उद्योग को छोड़ने के पश्चात सिनेमाघरों में देखी गई।

वैजयंतीमाला बाली की स्मृति को नमन !

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *