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शास्त्रीय संगीत के पुरोधा ठाकुर वेदमणि सिंह का निधन

रायगढ़, 9 जून 2025 / छत्तीसगढ़ के सुप्रसिद्ध संगीतज्ञ और तबला वादक, कलागुरु ठाकुर वेदमणि सिंह का आज उनके गृहनगर रायगढ़ में 90 वर्ष की आयु में निधन हो गया। ठाकुर साहब बी.ए., बी.एड. तो थे ही, वे एम. म्यूज़िक, तबला, वादन, गायन और सितार में भी बी. म्यूज़ थे।

उनके निधन की सूचना साझा करते हुए रायगढ़ के साहित्यकार बसंत राघव ने बताया कि ठाकुर साहब ने आज दोपहर 12:30 बजे रायगढ़ के अपने निवास में अंतिम साँस ली। ठाकुर वेदमणि सिंह का जन्म 13 मार्च 1935 ई. को हुआ था। वे ठाकुर जगदीश सिंह के ज्येष्ठ पुत्र थे। उन्हें तबले की तालीम पिता ठाकुर जगदीश सिंह, पंडित भूषण महाराज, स्वामी पागल दास से मिली। नृत्य विषयक तबले के बोल की विशेष शिक्षा उन्होंने पंडित फिरतू महाराज से ली। वे पिछले चालीस वर्षों से प्रयाग संगीत समिति, इलाहाबाद के एम. म्यूज़िक तक के परीक्षक रहे। उन्होंने सन् 1953 से 1995 तक हायर सेकेंडरी स्कूल, रायगढ़ में शिक्षकीय कार्य भी किया।

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इलाहाबाद, दिल्ली, बम्बई, कलकत्ता, भुवनेश्वर, नागपुर, उज्जैन जैसे बड़े शहरों की उन्होंने सांगीतिक यात्राएं कर, अपने विलक्षण तबला वादन से दर्शकों को बार-बार चमत्कृत किया। रायगढ़ में शास्त्रीय नृत्य और संगीत के अखिल भारतीय आयोजन ‘चक्रधर समारोह’ में भी उनकी सक्रिय भूमिका हुआ करती थी।

साहित्यकार बसंत राघव ने यह भी बताया कि ठाकुर वेदमणि सिंह छोटे-बड़े सभी संगीतज्ञों की संगत सुगमता से कर लेते थे। उन्हें देश के नामी-गिरामी संगीतज्ञों के संपर्क में आने के कारण अनेक अवसर मिले। यहाँ तक कि भारत रत्न शहनाई वादक स्वर्गीय बिस्मिल्ला ख़ाँ साहब के साथ भी बैठने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था। ठाकुर साहब संगीत रचना में भी प्रवीण थे। उन्होंने अनेक नई बंदिशों की रचना की है, जिनमें दीनताल, मृदंगार्जुन ताल, विलास ताल, रेवती ताल, जगदीश ताल आदि विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं।

इसी प्रकार, उनके प्रिय राग रहे—जयजयवंती, बहार, पूरियाधनाश्री। तालों में सवारी ताल, रुद्र ताल और रूपक ताल उन्हें विशेष प्रिय थे। उनके आदर्श संगीतकारों में पंडित रविशंकर, गुदई महाराज, ओंकारनाथ ठाकुर, बड़े गुलाम अली ख़ाँ, अल्लारखा ख़ाँ थे। इनमें से कई संगीतकारों के दर्शन करने का उन्हें सौभाग्य प्राप्त हुआ था।

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ठाकुर साहब को समय-समय पर विभिन्न संस्थाओं द्वारा अनेक पुरस्कारों से सम्मानित किया गया था। भावनगर में महाराष्ट्र मंडल द्वारा उन्हें ‘संगीत सम्राट’ की उपाधि से नवाज़ा गया था। वे ‘चक्रधर सम्मान’ से भी सम्मानित हुए थे।

वे पिछले पैंसठ वर्षों से लक्ष्मण संगीत विद्यालय, रायगढ़ में विभिन्न पदों पर कार्यरत थे। वर्तमान में इस विद्यालय के प्राचार्य थे। उनके प्रमुख शिष्यों में महेंद्र सिंह ठाकुर, निमाई चरण पंडा, शुकमणि गुप्ता, नारायणलाल देवांगन, मोहन अग्रवाल, अलका आठले, जगदीश मेहर, मनहरण सिंह ठाकुर, केशव आनंद शर्मा, सुरेश दुबे, देवलाल, चन्द्रकला देवांगन, टेकचंद चौहान, आलोक बनर्जी, गरीबदास महंत, आशीष देवांगन तथा प्रियंका पटेल प्रमुख हैं।

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